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सतविन्द्र कुमार राणा's Blog – September 2017 Archive (3)

तरही ग़ज़ल

122 122 122 12

उन्हें देखकर ये बदलने लगा
नहीं टिक सका दिल फिसलने लगा

नदी से मिलन की घड़ी आ गयी
*समन्दर खुशी से मचलने लगा*

जमाने से मिलती रही ठोकरें
उन्हीं की बदौलत सँभलने लगा

लगा संग दिल ही था जो अब तलक
वो किलकारियों से पिघलने लगा

पड़ोसी लगाता रहा आग जो
वही आज खुद देखो जलने लगा

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 24, 2017 at 6:46am — 8 Comments

तरही गजल

1222 1222 122

.

नही हमको जो भाता क्यों करें हम

कोई झूठा बहाना क्यों करें हम



हमीं से रौशनी है चार सू जब

तो बुझने का इरादा क्यूँ करें हम



खमोशी की सदा अक्सर सुनी है

न सुनने का बहाना क्यूँ करें हम



भरोसा जब नहीं खुद पे हमें ही

*वफ़ादारी का दावा क्यूँ करें हम*



हो झगड़ा आपसी सुलझाएँ खुद ही

ज़माने में तमाशा क्यों करें हम



न होता झूठ का कोई ठिकाना

फिर उसको ही तराशा क्यूँ करें हम



मौलिक…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 19, 2017 at 6:00am — 12 Comments

दूर है वह मग़र जुदा न हुआ

2122 1212 22/(112)

साथी उससे कोई खरा न हुआ

साथ गम ने दिया जुदा न हुआ



रोकती बस रही रज़ा तेरी

हमने चाहा बुरा,बुरा न हुआ



छल कपट से रहा कमाता जिसे

जऱ यूँ ही बह गया तेरा न हुआ



बस बनावट भरा लगा रिश्ता

जिसमें कोई कभी खफ़ा न हुआ



डोर दिल की बँधी रही जिससे

दूर है वह मग़र जुदा न हुआ



जिंदगी को सही समझ न सके

मुश्किलों से जो सामना न हुआ



बंद आँखों ने जो किया दीदार

आँखें खोली वो देखना न… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 3, 2017 at 8:00am — 3 Comments

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