For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pawan Kumar's Blog – October 2014 Archive (6)

हाइकु

(1)

मोहक वन
सरि की कलकल
बहका मन

(2)

कोयल प्यारी
नित कूँ कूँ करती
जान हमारी

(3)

कार्तिक मास
झूम रही धरती
बुझेगी प्यास

(4)

यात्रा में रेल
दौड़ता सबकुछ
लगता खेल

(5)

मनवा भावे
सुन्दर है नईया
वायु हिलोर

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Added by Pawan Kumar on October 30, 2014 at 6:00pm — 12 Comments

अपनी दिवाली (लघुकथा)

"माँ ! आज मैं सुबह ही सभी के घर जाकर,  दियो में बचे हुए तेल इकठ्ठा कर लाया हूँ,
आज तो पूड़ी बनाओगी ना? "

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Pawan Kumar on October 18, 2014 at 3:30pm — 14 Comments

हास्य (तुकांत)

प्रथम प्यार की आस में

मैने किया प्रयास

सजनी एट्टीट्यूड में

तनिक न डाले घास

पोथी पढ़कर प्यार की

तनिक न असर बुझाय

जब-जब भी कोशिश किया

चप्पल-जूताखाय



हर महफिल हर रंग में

चेहरा जिसका भाय

उसने राखी बाँध के

भाई लिया बनाय



घरवालों की मान के

डाल दिया जयमाल

दो दो मेरे सालियाँ

पकड़ के खीचें गाल

मारा-मारा फिर रहा

जबसे हुआ विवाह

बीबी ऐसी मिल गई

रहती…

Continue

Added by Pawan Kumar on October 13, 2014 at 12:00pm — 8 Comments

स्नेह की छाँव (लघुकथा)

" बेटा, तुम जब भी शहर से आते हो तो घर में कम और इस पेंड़ के पास ज्यादे समय बिताते हो, घर में मन नही लगता क्या..."

" चाचा, यहाँ बड़ा सुकून मिलता है! याद है आपको जब मैं नर्सरी में पढता था! एक बार वहाँ पौधशाला वाले पौधे बाँट रहे थें, ये आम का पेंड़ मैं वहीं से लाया था, पिता जी पौधों के प्रति मेरा प्रेम देखकर बहुत खुश हुए थें!  इसे उन्होने अपने हाथों से लगाया था और खाद-पानी भी समय-समय से दिया करते थें! इसे वे बहुत प्यार करते थें,  इसीलिए कुछ पल इसकी छाया में बिताना, पिता जी के स्नेह की…

Continue

Added by Pawan Kumar on October 8, 2014 at 12:30pm — 16 Comments

तो क्या बात हो

अपने जज्बात दिखाओ तो क्या बात हो

खुल के हर बात बताओ तो क्या बात हो

सभी ने दिन में हैं तारे ही दिखाये मुझको

तुम कभी चाँद दिखाओ तो क्या बात हो

वो अकेला ही चल पड़ा राहे-सच्चाई

दो कदम साथ मिलाओ तो क्या बात हो

मेरे…

Continue

Added by Pawan Kumar on October 6, 2014 at 5:30pm — 4 Comments

अब ऐसा क्यूँ होता है

मिलती है तूँ ख्वाबो में,
अक्सर ऐसा क्यूँ होता है!
तेरी यादों के घेरे में,
ये दिल चुपके से रोता है!
आँखों का भी क्या कहना,
ना जाने कब सोता है!
दीदार तेरे कब होंगे,
सपने यही संजोता है!
मन रहता है विचलित सा,
क्या पाया, क्या खोता है!
तन भी लगता है मैला
पापो की गठरी ढ़ोता है!
खुद की भी परवाह नही,
अब ऐसा क्यूँ होता है!!

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Pawan Kumar on October 1, 2014 at 10:30am — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
6 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
15 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service