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Sanjiv verma 'salil''s Blog – November 2010 Archive (11)

मुक्तिका: सबब क्या ? --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



सबब क्या ?



संजीव 'सलिल'



*

सबब क्या दर्द का है?, क्यों बताओ?

छिपा सीने में कुछ नगमे सुनाओ..



न बाँटा जा सकेगा दर्द किंचित.

लुटाओ हर्ष, सब जग को बुलाओ..



हसीं अधरों पे जब तुम हँसी देखो.

बिना पल गँवाये, खुद को लुटाओ..



न दामन थामना, ना दिल थमाना.

किसी आँचल में क्यों खुद को छिपाओ?



न जाओ, जा के फिर आना अगर हो.

इस तरह जाओ कि वापिस न आओ..



खलिश का खज़ाना कोई न देखे.

'सलिल' को… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 25, 2010 at 8:32pm — 1 Comment

मुक्तिका: जीवन की जय गायें हम.. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



जीवन की जय गायें हम..



संजीव 'सलिल'.

*

जीवन की जय गायें हम..

सुख-दुःख मिल सह जाएँ हम..

*

नेह नर्मदा में प्रति पल-

लहर-लहर लहरायें हम..

*

बाधा-संकट -अड़चन से

जूझ-जीत मुस्कायें हम..

*

गिरने से क्यों डरें?, गिरें.

उठ-बढ़ मंजिल पायें हम..

*

जब जो जैसा उचित लगे.

अपने स्वर में गायें हम..

*

चुपड़ी चाह न औरों की

अपनी रूखी खायें हम..

*

दुःख-पीड़ा को मौन सहें.

सुख बाँटें… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2010 at 8:49pm — 5 Comments

लीक से हटकर एक प्रयोग: मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

आत्मीय!



मुशायरे के लिए लिख रहा था की समय समाप्त हो गया. पूर्व में भेजा पथ निरस्त करदें. इसे जहाँ चाहें लगा दें.



लीक से हटकर एक प्रयोग:



मुक्तिका:



संजीव 'सलिल'

*

हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है.

कहा धरती ने यूँ नभ से, न क्यों सूरज उगाता है??

*

न सूरज-चाँद की गलती, निशा-ऊषा न दोषी हैं.

प्रभाकर हो या रजनीचर, सभी को दिल नचाता है..

*

न दिल ये बिल चुकाता है, न ठगता या ठगाता है.

लिया दिल देके दिल, सौदा नगद… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2010 at 12:53am — 5 Comments

अस्तित्व

अस्तित्व



शाम गहराने लगी थी। उसके माथे पर थकान स्पष्ट झलकने लगी थी- वह निरन्तर हथौड़ा चला-चलाकर कुंदाली की धार बनाने में व्यस्त था।



तभी निहारी ने हथौड़े से कहा कि तू कितना निर्दयी है मेरे सीने में इतनी बार प्रहार करता है कि मेरा सीना तो धक-धक कर रह जाता है, तुझे एक बार भी दया नहीं आती। अरे तू कितना कठोर है, तू क्या जाने पीड़ा-कष्ट क्या होता है, तेरे ऊपर कोई इस तरह पूरी ताकत से प्रहार करता तो तुझे दर्द का एहसास होता?



अच्छा तू ही बता तू इतनी शाम से चुपचाप जमीन पर पसरी… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2010 at 12:00am — 1 Comment

गीत: मैं नहीं.... संजीव 'सलिल'

गीत:





मैं नहीं....





संजीव 'सलिल'



*



मैं नहीं पीछे हटूँगा,



ना चुनौती से डरूँगा.



जानता हूँ, समय से पहले



न मारे से मरूँगा.....



*



जूझना ही ज़िंदगी है,



बूझना ही बंदगी है.



समस्याएँ जटिल हैं,



हल सूझना पाबंदगी है.



तुम सहायक हो न हो



खातिर तुम्हारी मैं लडूँगा.



जानता हूँ, समय से पहले



न मारे से… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 15, 2010 at 1:00am — 2 Comments

गीत: कौन हो तुम? ----- संजीव 'सलिल'

गीत:



कौन हो तुम?



संजीव 'सलिल'

*

कौन हो तुम?

मौन हो तुम?...

*

समय के अश्वों की वल्गा

निरंतर थामे हुए हो.

किसी को अपना किया ना

किसी के नामे हुए हो.



अनवरत दौड़ा रहे रथ

दिशा, गति, मंजिल कहाँ है?

डूबते ना तैरते, मझधार

या साहिल कहाँ है?



क्यों कभी रुकते नहीं हो?

क्यों कभी झुकते नहीं हो?

क्यों कभी चुकते नहीं हो?

क्यों कभी थकते नहीं हो?



लुभाते मुझको बहुत हो

जहाँ भी हो जौन हो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:32pm — 2 Comments

नवगीत :: शेष धर संजीव 'सलिल'

नवगीत ::



शेष धर



संजीव 'सलिल'

*

किया देना-पावना बहुत,

अब तो कुछ शेष धर...

*

आया हूँ जाने को,

जाऊँगा आने को.

अपने स्वर में अपनी-

खुशी-पीर गाने को.



पिया अमिय-गरल एक संग

चिंता मत लेश धर.

किया देना-पावना बहुत,

अब तो कुछ शेष धर...

*

कोशिश का साथी हूँ.

आलस-आराती हूँ.

मंजिल है दूल्हा तो-

मैं भी बाराती हूँ..



शिल्प, कथ्य, भाव, बिम्ब, रस.

सर पर कर केश धर.

किया देना-पावना… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:55am — 3 Comments

बाल कविता: अंशू-मिंशू संजीव 'सलिल'

बाल कविता:



अंशू-मिंशू



संजीव 'सलिल'

*

अंशू-मिंशू दो भाई हिल-मिल रहते थे हरदम साथ.

साथ खेलते साथ कूदते दोनों लिये हाथ में हाथ..



अंशू तो सीधा-सादा था, मिंशू था बातूनी.

ख्वाब देखता तारों के, बातें थीं अफलातूनी..



एक सुबह दोनों ने सोचा: 'आज करेंगे सैर'.

जंगल की हरियाली देखें, नहा, नदी में तैर..



अगर बड़ों को बता दिया तो हमें न जाने देंगे,

बहला-फुसला, डांट-डपट कर नहीं घूमने देंगे..



छिपकर दोनों भाई चल दिये हवा… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 8, 2010 at 6:14pm — 5 Comments

नवगीत: --- संजीव 'सलिल'

नव गीत



संजीव 'सलिल'



मौन देखकर

यह मत समझो,

मुंह में नहीं जुबान...



शांति-शिष्ट,

चिर नवीनता,

जीवन की पहचान.

शांत सतह के

नीचे हलचल

मचल रहे अरमान.

श्याम-श्वेत लख,

यह मत समझो

रंगों से अनजान...



ऊपर-नीचे

हैं हम लेकिन

ऊँच-नीच से दूर.

दूर गगन पर

नजर गड़ाये

आशा से भरपूर.

मुस्कानों से

कर न सकोगे

पीड़ा का अनुमान...



ले-दे बढ़ते,

ऊपर चढ़ते,

पा लेते हैं… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:38pm — 2 Comments

बोधकथा ''भाव ही भगवान है'' ---संजीव 'सलिल'

बोधकथा



''भाव ही भगवान है''.



संजीव 'सलिल'



*

एक वृद्ध के मन में अंतिम समय में नर्मदा-स्नान की चाह हुई. लोगों ने बता दिया की नर्मदा जी अमुक दिशा में कोसों दूर बहती हैं, तुम नहीं जा पाओगी. वृद्धा न मानी... भगवान् का नाम लेकर चल पड़ी...कई दिनों के बाद उसे एक नदी... उसने 'नरमदा तो ऐसी मिलीं रे जैसे मिल गै मतारे औ' बाप रे' गाते हुए परम संतोष से डुबकी लगाई. कुछ दिन बाद साधुओं का एक दल आया... शिष्यों ने वृद्धा की खिल्ली उड़ाते हुए बताया कि यह तो नाला है. नर्मदा जी तो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:29am — 2 Comments

गीत: आँसू और ओस संजीव 'सलिल'

गीत:



आँसू और ओस



संजीव 'सलिल'

*

हम आँसू हैं,

ओस बूँद मत कहिये हमको...

*

वे पल भर में उड़ जाते हैं,

हम जीवन भर साथ रहेंगे,

हाथ न आते कभी-कहीं वे,

हम सुख-दुःख की कथा कहेंगे.

छिपा न पोछें हमको नाहक

श्वास-आस सम सहिये हमको ...

*

वे उगते सूरज के साथी,

हम हैं यादों के बाराती,

अमल विमल निस्पृह वे लेकिन

दर्द-पीर के हमीं संगाती.

अपनेपन को अब न छिपायें,

कभी कहें: 'अब बहिये' हमको...

*

ऊँच-नीच… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 1, 2010 at 9:25am — 1 Comment

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