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गीत: कौन हो तुम? ----- संजीव 'सलिल'

गीत:

कौन हो तुम?

संजीव 'सलिल'
*
कौन हो तुम?
मौन हो तुम?...
*
समय के अश्वों की वल्गा
निरंतर थामे हुए हो.
किसी को अपना किया ना
किसी के नामे हुए हो.

अनवरत दौड़ा रहे रथ
दिशा, गति, मंजिल कहाँ है?
डूबते ना तैरते, मझधार
या साहिल कहाँ है?

क्यों कभी रुकते नहीं हो?
क्यों कभी झुकते नहीं हो?
क्यों कभी चुकते नहीं हो?
क्यों कभी थकते नहीं हो?

लुभाते मुझको बहुत हो
जहाँ भी हो जौन हो तुम.
कौन हो तुम?
मौन हो तुम?...
*
पूछता है प्रश्न नाहक,
उत्तरों का जगत चाहक.
कौन है वाहन सुखों का?
कौन दुःख का कहाँ वाहक?

करो कलकल पर न किलकिल.
ढलो पल-पल विहँस तिल-तिल.
साँझ को झुरमुट से झिलमिल.
झाँक आँकों नेह हिलमिल.

क्यों कभी जलते नहीं हो?
क्यों कभी ढलते नहीं हो?
क्यों कभी खिलते नहीं हो?
क्यों कभी फलते नहीं हो?

छकाते हो बहुत मुझको
लुभाते भी तौन हो तुम.
कौन हो तुम?
मौन हो तुम?...
***************************







Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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Comment by sanjiv verma 'salil' on December 23, 2010 at 3:11pm
बहुत-बहुत धन्यवाद.

पुरा भी, नवीन हो तुम.
तुम्हीं नागिन, बीन हो तुम.
दिख रहे हो बेस्वाद लेकिन.
मधुर हो, नमकीन हो तुम.

तुम्हीं राना हो, प्रजा हो.
हो परेशानी, मजा हो.
फहरती श्रम-दंड पर जो-
तुम सफलता की ध्वजा हो.

जानकर भी पूछते हो.
फिर पहेली बूझते हो.
दामिनी जैसे दमककर-
हल सदृश तुम सूझते हो.

क्या कहूँ?, होकर नहीं हो
खाद्य में ज्यों नौंन हो तुम...

*




सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 14, 2010 at 7:51am
आदरणीय आचार्य जी सादर प्रणाम
इस प्रश्न में भी एक अपनापन झलक रहा है इसीलिए प्रश्न भी यही है और उत्तर भी यही है...कौन हो तुम?
मन प्रफुल्लित हो गया|

कृपया ध्यान दे...

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