For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

narmadashtak : aadi shankaracharya - sanjiv 'salil'


हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : १                                                                               

       भगवत्पादश्रीमदाद्य शंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं

 सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं, द्विषत्सुपापजात-जातकारि-वारिसंयुतं
 कृतांतदूत कालभूत-भीतिहारि वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .१. 

त्वदंबु लीनदीन मीन दिव्य संप्रदायकं, कलौमलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकं
सुमत्स्य, कच्छ, तक्र, चक्र, चक्रवाक् शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .२.

महागभीर नीरपूर - पापधूत भूतलं, ध्वनत समस्त पातकारि दारितापदाचलं.
जगल्लये महाभये मृकंडुसूनु - हर्म्यदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .३. 

गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा, मृकंडुसूनु शौनकासुरारिसेवितं सदा.
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धि दु:खवर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .४.

अलक्ष्य-लक्ष किन्नरामरासुरादि पूजितं, सुलक्ष नीरतीर - धीरपक्षि लक्षकूजितं.
वशिष्ठ शिष्ट पिप्पलादि कर्ममादिशर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .५.  

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपादि षट्पदै, घृतंस्वकीय मानसेषु नारदादि षट्पदै:,
रवींदु रन्तिदेव देवराज कर्म शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .६. 

अलक्ष्यलक्ष्य लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं, ततस्तु जीव जंतु-तंतु भुक्ति मुक्तिदायकं.
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीयधाम वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .७.

अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे, किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे.
दुरंत पाप-तापहारि सर्वजंतु शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .८.

इदन्तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा, पठंति ते निरंतरं न यांति दुर्गतिं कदा.
सुलक्ष्य देह दुर्लभं महेशधाम गौरवं, पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं. ९. 

           इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं

श्रीमद आदि शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'

              उठती-गिरती उदधि-लहर की, जलबूंदों सी मोहक-रंजक
            निर्मल सलिल प्रवाहितकर, अरि-पापकर्म की नाशक-भंजक
                 अरि के कालरूप यमदूतों, को वरदायक मातु वर्मदा.
            चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.१.

               दीन-हीन थे, मीन दिव्य हैं, लीन तुम्हारे जल में होकर.
            सकल तीर्थ-नायक हैं तव तट, पाप-ताप कलियुग का धोकर.
              कच्छप, मक्र, चक्र, चक्री को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
            चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.२.
             
            अरिपातक को ललकार रहा, थिर-गंभीर प्रवाह नीर का.
             आपद पर्वत चूर कर रहा, अन्तक भू पर पाप-पीर का.
              महाप्रलय के भय से निर्भय, मारकंडे मुनि हुए हर्म्यदा.
           चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.३.

           मार्कंडे-शौनक ऋषि-मुनिगण, निशिचर-अरि, देवों से सेवित.
             विमल सलिल-दर्शन से भागे, भय-डर सारे देवि सुपूजित.
                बारम्बार जन्म के दु:ख से, रक्षा करतीं मातु वर्मदा.
           चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.४.

           दृश्य-अदृश्य अनगिनत किन्नर, नर-सुर तुमको पूज रहे हैं.
              नीर-तीर जो बसे धीर धर, पक्षी अगणित कूज रहे हैं.
          ऋषि वशिष्ठ, पिप्पल, कर्दम को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
          चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.५.

           सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप आदि संत बन मधुकर.
          चरणकमल ध्याते तव निशि-दिन, मनस मंदिर में धारणकर.
           शशि-रवि, रन्तिदेव इन्द्रादिक, पाते कर्म-निदेश सर्वदा.
          चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.६.

           दृष्ट-अदृष्ट लाख पापों के, लक्ष्य-भेद का अचूक आयुध.
          तटवासी चर-अचर देखकर, भुक्ति-मुक्ति पाते खो सुध-बुध.
         ब्रम्हा-विष्णु-सदा शिव को, निज धाम प्रदायक मातु वर्मदा.
           चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.७.

        महेश-केश से निर्गत निर्मल, 'सलिल' करे यश-गान तुम्हारा.
         सूत-किरात, विप्र, शठ-नट को,भेद-भाव बिन तुमने तारा.
         पाप-ताप सब दुरंत हरकर, सकल जंतु भाव-पार शर्मदा.
        चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.८.

          श्रद्धासहित निरंतर पढ़ते, तीन समय जो नर्मद-अष्टक.
         कभी न होती दुर्गति उनकी, होती सुलभ देह दुर्लभ तक.
        रौरव नर्क-पुनः जीवन से, बच-पाते शिव-धाम सर्वदा.
        चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.९.

श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.

              @#@#@#@$#@@#%$#@#$%$#@$#@@$$

Views: 6730

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
1 hour ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service