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Sanjiv verma 'salil''s Blog – February 2013 Archive (10)

दोहा मुक्तिका: नेह निनादित नर्मदा संजीव 'सलिल'

दोहा मुक्तिका:

नेह निनादित नर्मदा

संजीव 'सलिल'

*

नेह निनादित नर्मदा, नवल निरंतर धार.

भवसागर से मुक्ति हित, प्रवहित धरा-सिंगार..



नर्तित 'सलिल'-तरंग में, बिम्बित मोहक नार.

खिलखिल हँस हर ताप हर, हर को रही पुकार..



विधि-हरि-हर तट पर करें, तप- हों भव के पार.

नाग असुर नर सुर करें, मैया की जयकार..



सघन वनों के पर्ण हैं, अनगिन बन्दनवार.

जल-थल-नभचर कर रहे, विनय करो उद्धार..



ऊषा-संध्या का दिया, तुमने रूप निखार.

तीर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 27, 2013 at 6:30am — 26 Comments

लघुकथा: बड़ा / संजीव 'सलिल'

लघुकथा: बड़ा
*
बरसों की नौकरी के बाद पदोन्नति मिली.

अधिकारी की कुर्सी पर बैठक मैं खुद को सहकर्मियों से ऊँचा मानकर डांट-डपटकर ठीक से काम करने की नसीहत दे घर आया. देखा नन्ही बिटिया कुर्सी पर खड़ी होकर ताली बजाकर कह रही है 'देखो, मैं सबसे अधिक बड़ी हो गयी.'

जमीन पर बैठे सभी बड़े उसे देख हँस रहे हैं. मुझे कार्यालय में सहकर्मियों के चेहरों की मुस्कराहट याद आई और तना हुआ सिर झुक गया.

*****

Added by sanjiv verma 'salil' on February 20, 2013 at 6:30pm — 5 Comments

ढपोरशंख (लघुकथा) / संजीव ’सलिल’

सामयिक लघुकथा:

ढपोरशंख                                                                             '

                                                                                       *

कल राहुल के पिता उसके जन्म के बाद घर छोड़कर सन्यासी हो गए थे, बहुत तप किया और बुद्ध बने. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर इतिहास में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.



 आज राहुल के किशोर होते ही उसके पिता आतंकवादियों द्वारा मारे गए. राहुल की माँ ने उसे…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 17, 2013 at 10:00am — 16 Comments

गीत : ... सच है संजीव 'सलिल'

*

कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.

फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...

*

ढाई आखर की पोथी से हमने संग-संग पाठ पढ़े हैं.

शंकाओं के चक्रव्यूह भेदे, विश्वासी किले गढ़े है..

मिलन-क्षणों में मन-मंदिर में एक-दूसरे को पाया है.

मुक्त भाव से निजता तजकर, प्रेम-पन्थ को अपनाया है..

ज्यों की त्यों हो कर्म चदरिया मर्म धर्म का इतना जाना-

दूर किया अंतर से अंतर, भुला पावना-देना सच है..



कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 16, 2013 at 7:30pm — 10 Comments

हिंदी छन्द : त्रिभंगी / संजीव सलिल

त्रिभंगी सलिला:

ऋतुराज मनोहर...

संजीव 'सलिल'

*

ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.

पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..

लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.

पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..

*

ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.

बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..

सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.

दस दिशा तरंगित, भू-नभ…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 12, 2013 at 8:30pm — 12 Comments

द्विपदियाँ; संजीव 'सलिल'

चंद द्विपदियाँ;

संजीव 'सलिल'

*

जब तक था दूर कोई इसे जानता न था.

तुमको छुआ तो लोहे से सोना हुआ 'सलिल'.

*

वीरानगी का क्या रहा आलम न पूछिए.

दिल ले लिया तुमने तभी आबाद यह हुआ..

*

जाता है कहाँ रास्ता? कैसे बताऊँ मैं??

मुझ से कई गए न तनिक रास्ता हिला..

*

बस में नहीं दिल के, कि बस के फिर निकल सके.

परबस न जो हुए तो तुम्हीं आ निकाल दो..

*

जो दिल जला है उसके दिल से दिल मिला 'सलिल'

कुछ आग अपने दिल में लगा- जग उजार दे.. ..…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 12, 2013 at 11:00am — 6 Comments

गीत : आशियाना ... संजीव 'सलिल'

गीत :

आशियाना ...

संजीव 'सलिल'

*

धरा की शैया सुखद है, 

नील नभ का आशियाना ...

संग लेकिन मनुज तेरे 

कभी भी कुछ भी न जाना ...

*

जोड़ता तू फिर रहा है,

मोह-मद में घिर रहा है।

पुत्र है परब्रम्ह का पर 

वासना में तिर रहा है।

पंक में पंकज सदृश रह-

सीख पगले मुस्कुराना ...

*

उग रहा है सूर्य नित प्रति,

चाँद संध्या खिल रहा है। 

पालता है जो किसी को, 

वह किसी से पल रहा…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 6, 2013 at 5:00pm — 8 Comments

अभिनव प्रयोग- उल्लाला मुक्तक: -संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग-

उल्लाला मुक्तक:

संजीव 'सलिल'

*

उल्लाला है लहर सा,

किसी उनींदे शहर सा.

खुद को खुद दोहरा रहा-

दोपहरी के प्रहर सा.

*

झरते पीपल पात सा,

श्वेत कुमुदनी गात सा.

उल्लाला मन मोहता-

शरतचंद्र मय रात सा..

*

दीप तले अँधियार है,

ज्यों असार संसार है.

कोशिश प्रबल प्रहार है-

दीपशिखा उजियार है..

*

मौसम करवट बदलता,

ज्यों गुमसुम दिल मचलता.

प्रेमी की आहट सुने -

चुप प्रेयसी की…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 3, 2013 at 2:30pm — 6 Comments

उल्लाला मुक्तिका: दिल पर दिल बलिहार है -संजीव 'सलिल'

उल्लाला मुक्तिका:

दिल पर दिल बलिहार है

संजीव 'सलिल'

*

दिल पर दिल बलिहार है,

हर सूं नवल निखार है..



प्यार चुकाया है नगद,

नफरत रखी उधार है..



कहीं हार में जीत…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 2, 2013 at 4:30pm — 9 Comments

उल्लाला गीत: जीवन सुख का धाम है -संजीव 'सलिल

अभिनव प्रयोग-

उल्लाला गीत:

जीवन सुख का धाम है

संजीव 'सलिल'

*

जीवन सुख का धाम है,

ऊषा-साँझ ललाम है.

कभी छाँह शीतल रहा-

कभी धूप अविराम है...*

दर्पण निर्मल नीर सा,

वारिद, गगन, समीर सा,

प्रेमी युवा अधीर सा-

हर्ष, उदासी, पीर सा.

हरी का नाम अनाम है

जीवन सुख का धाम है...

*

बाँका राँझा-हीर सा,

बुद्ध-सुजाता-खीर सा,

हर उर-वेधी तीर सा-

बृज के चपल अहीर सा.

अनुरागी निष्काम है

जीवन सुख का धाम…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 1, 2013 at 10:30am — 6 Comments

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