बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास
चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास
ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास
इस झूठे बाजार में, टूटी सब की आस
पल भर में मेला लगे, पल भर में वनवास
अभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खास
रहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पास
छोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रास
श्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसास
रंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Aazi Tamaam on August 6, 2024 at 12:00am — 2 Comments
बाप बोला,'गलती हो जाती है।बच्चे हैं।'
फिर बेटा सयाना हुआ,बोला,'DNA तो कराते।फिर न्याय होता।'
उधर बारह की बिटिया तब से कराह रही है।
"मौलिक तथा अप्रकाशित"
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Added by Manan Kumar singh on August 4, 2024 at 5:50pm — 1 Comment
बस बहुत हुआ, अब जाने दो, साँस जरा तो आने दो,
घुटन भरे इस कमरे में, जरा धूप तो छट कर आने दो,
बस बहुत हुआ, अब जाने दो।
बहुत सुनी कटाक्ष तेरी, बात-बात पर दुत्कार तेरी,
शूल के जैसे बोल तेरे, चुन-चुन कर मुझे हटाने दो।
खामोशी में है…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 4, 2024 at 4:10pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . . ख्वाब(नुक्ते रहित सृजन )
कातिल उसकी हर अदा, कमसिन उसके ख्वाब ।
आतिश बन कर आ गया, भीगा हुआ शबाब ।।
रुक -रुक कर रुख पर गिरी, सावन की बरसात ।
छुप-छुप कर करती रही, नजर जिस्म से बात ।।
बार - बार गिरती रही, उड़ती हुई नकाब ।
प्यासी नजरों देखतीं, जैसे हसीन ख्वाब ।।
खड़ा रहा बरसात में , भीगा एक शबाब ।
रह - रह के होती रही, आशिक नज़र खराब ।।
भीगी बाला से हुआ, नजरों का संवाद ।
ख्वाबों से वो कर गई, इस दिल को आबाद…
Added by Sushil Sarna on August 4, 2024 at 3:46pm — No Comments
मंदिर क्या है? इक पत्थर है
मस्जिद क्या है? इक पत्थर है
क्या है गिरिजाघर-गुरुद्वारा?
इक पत्थर है, इक पत्थर है।
रहता है जो हर पत्थर में
इक ईश्वर है, इक ईश्वर है।…
ContinueAdded by Dharmendra Kumar Yadav on August 4, 2024 at 12:37pm — No Comments
दोहा सप्तक. . . . . मोबाइल
मोबाइल ने कर दिया, सचमुच बेड़ा गर्क ।
निजता पर देने लगे, युवा अनेकों तर्क । ।
मोबाइल के जाल में, उलझ गया संसार ।
सच्चा रिश्ता अब यही , बाकी सब बेकार ।।
संवादों का बन गया, मोबाइल संसार ।
सांकेतिक रिश्ते हुए, बौना सच्चा प्यार ।।
प्यार जताने के सभी, बदल गए हालात ।
मोबाइल पर साजना , दर्शन दे साक्षात ।
मोबाइल पर कीजिए, चाहे घंटों बात ।
पत्नी की मत भूलना,पर लाना सौगात ।।
मोबाइल के भूत ने, रिश्ते किये…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 3, 2024 at 8:29pm — No Comments
विरही मन कहता फिरे, समझे पीड़ा कौन
आँगन,पनघट, राह सह, हँसी उड़ाये भौन।१।
*
करते हैं दो चार जो, परदेशी से नैन
जले विरह की आग में, उन का मन बेचैन।२।
*
घुमड़ी बदली देखकर, मन में भड़की आग
जिस के पिय परदेश में, फूटे उस के भाग।३।
*
जब साजन परदेश में, शृंगारित ना केश
सावन दावानल लगे, जलता हर परिवेश।४।
*
पिया मिलन की प्यास जो, तन मन करे अधीर
रूठी-रूठी भूख को, लगती विष सी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 3, 2024 at 11:30am — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . . तूफान
चार कदम पर जिंदगी, बैठी थी चुपचाप ।
बारिश के संहार पर,करती बहुत विलाप ।।
रौद्र रूप बरसात का, लील गया सुख - चैन ।
रोते- रोते दिन कटा, रोते -रोते रैन ।।
कच्चे पक्के झोंपड़े , बारिश गई समेट ।
जन - जीवन तूफान के, चढ़ा वेग की भेंट ।।
मंजर वो तूफान का, कैसे करूँ बयान ।
खौफ मौत का कर गया, आँखों को वीरान ।।
उड़ जाऐंगे होश जब, देखोगे तस्वीर ।
देख बाढ़ का दृश्य वो , गया कलेजा चीर ।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 2, 2024 at 9:19pm — 4 Comments
पसीना बोलता है (गीत)
****
चन्द सूखी रोटियाँ खाकर
कष्ट में हँस गीत नित गाकर
खुशी वो घोलता है।
पसीना बोलता है।।
*
देह मैली, पर जगत चमका
सब सुधारा, आ जहाँ धमका
हाथ की छैनी कुदालों से
नित द्वार सुख के खोलता है।
पसीना बोलता है।।
*
स्वप्न जो है पोषता सब का
राह आगन देखता उस का
शौक से कब छोड़ घर अपना
परदेश में वह डोलता है।
पसीना बोलता है।।
*
खेत हों …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2024 at 2:35pm — 2 Comments
दोहा सप्तक . . . . सावन
सावन में अच्छी नहीं, आपस की तकरार ।
प्यार जताने के लिए, मौसम हैं दो चार ।।
बरसे मेघा झूम कर, खूब हुई बरसात ।
बाहुबंध में बीत गई, भीगी-भीगी रात ।।
गगरी छलकी नैन की, जब बरसी बरसात।
कैसे बीती क्या कहूँ, बिन साजन के रात।।
थोड़े से जागे हुए, थोड़े सोये नैन ।
हर करवट पर धड़कनें, रहती हैं बैचैन ।।
बिन साजन सूनी लगे, सावन वाली रात ।
सुधि सागर ऐसे बहे, जैसे बहे प्रपात ।।
जितनी बरसें…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 1, 2024 at 3:34pm — No Comments
दोहा सप्तक. . . . नेता
संसद में लो शोर का, शुरू हुआ नव सत्र ।
आरोपों की फैलती, बौछारें सर्वत्र ।।
अपशब्दों से गूँजता, अब संसद का सत्र ।
परिणामों से पूर्व ही, फाड़े जाते पत्र ।।
पावन मन्दिर देश का, संसद होता मित्र ।
नेता लड़ कर देश का, धूमिल करते चित्र ।।
कितने ही वादे करें, नेता चाहे आज ।
नग्न नयन के स्वप्न तो, टूटें बिन आवाज । ।
संसद में नेता करें, बात -बात पर तर्क ।
जनता की हर आस का, होता बेड़ा गर्क ।।
नेताओं के पास कब ,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 31, 2024 at 2:19pm — No Comments
2122 1122 1122 22
आँख से अश्कों का दरिया तो बहाया हमने
राज़-ए-दिल पर न किसी से भी बताया हमने
उन का हर एक सितम हँसते हुए सह डाला
इस तरह रस्म-ए-मुहब्बत को निभाया हमने
शम्मा उल्फ़त की जो तुम ने थी जलाई दिल में
उस को बुझने से कई बार बचाया हमने
हैफ़ उस ने ही न की क़द्र वफ़ाओं की मेरी
जिस की उल्फ़त में ही दुनिया को भुलाया हमने
नक़्श मिटते ही नहीं दिल से मुहब्बत के तेरी
कितनी ही बार मगर इन को मिटाया…
Added by Mamta gupta on July 30, 2024 at 9:10pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . वक्त
हर करवट में वक्त की,छिपी हुई है सीख ।
आ जाए जो वक्त तो, राजा मांगे भीख ।।
डर के रहना वक्त से, ये शूलों का ताज ।
इसकी लाठी तो सदा, होती बे-आवाज ।।
पल भर की देता नहीं, वक्त किसी को भीख ।
अन्तिम पल की वक्त में , गुम हो जाती चीख ।।
बिना वक्त मिलता नहीं, किस्मत का भी साथ ।
कभी पहुँच कर लक्ष्य पर , लौटें खाली हाथ ।।
सुख - दुख सब संसार में, रहें वक्त आधीन ।
काल पाश में आदमी, लगता कितना दीन…
Added by Sushil Sarna on July 29, 2024 at 1:30pm — 6 Comments
दोहा अष्टम ......प्रश्न
उत्तर सारे मौन हैं, प्रश्न सभी वाचाल ।
किसने जानी आज तक,भला काल की चाल ।।
यह जीवन तो शून्य का, आभासी है रूप ।
पग - पग पर संघर्ष की, फैली तीखी धूप ।।
तोड़ सको तो तोड़ दो, प्रश्नों का हर जाल ।
यह जीवन तो पूछता, हरदम नया सवाल ।।
हर मोड़ पर जिंदगी, पूछे एक सवाल ।
क्या पाने की होड़ में, जीवन दिया निकाल ।।
फिसला जाता रेत सा, जीवन जरा संभाल ।
क्या जानें किस मोड़ पर, मिले अचानक काल ।।
बहुतेरे…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 25, 2024 at 3:31pm — No Comments
बात कुछ और सोची थी, बात कुछ और निकली है
मेरे दिलबर के दिल की कहानी कुछ और निकली है
बड़ी फुर्सत से उस रब ने करी थी कारीगरी लेकिन
जो बन के है आई वो जवानी कुछ और निकली है
सुनाई थी जो तुमने ही कहानी, फिर से दोहरा दो
मेरे वीरान गुलिस्तां में डाली फूलों की लहरा दो
तेरे आने से जो खुशबू हवा में घुल सी जाती थी
तू है अब भी वही, लेकिन वो खुशबू कुछ और निकली है
खनक थी चूड़ियों में जो, झनक थी पायलों में जो
बिना…
Added by AMAN SINHA on July 23, 2024 at 8:03pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . . मेघ
हाथ जोड़ विनती करे, हलधर बारम्बार।
धरती की जलधर सुनो, अब तो करुण पुकार।।
अवनी से क्यों रुष्ट हो, जलधर बोलो आज ।
हलधर बैठा सोच में, कैसे उगे अनाज ।।
अम्बर के हर मेघ में, हलधर की है आस ।
बिन जलधर कैसे मिटे, तृषित धरा की प्यास ।।
सावन में अठखेलियाँ, नभ में करे पयोद ।
धरा तरसती वृष्टि को, मेघा करते मोद ।।
श्वेत हंस की टोलियाँ, नभ में उड़े स्वछंद ।
धूप - छाँव का हो रहा, ज्योँ आपस में द्वन्द्व…
Added by Sushil Sarna on July 22, 2024 at 12:50pm — 2 Comments
पड़ते दुख के घाट पर, कभी न जिनके पाँव
समझ न आता है उन्हें, जग में रोता गाँव।१।
*
चल आती है जो खुशी, दुख बैठा जिस राह
पुरखों से सुनते वही, टिकती बहुत अथाह।२।
*
सुख से सुख की कब हुई, तुलना जग में बोल
सुख का करते मान हैं, बजकर दुख के ढोल।३।
*
दुख आकर देता सदा, सुख को रंग हाजार
उस बिन फीका ही रहे, सुख का घर संसार।४।
*
दुख तो ऐसा बौर है, जिस भीतर सुख बीच
जोर-जबर से कब इसे, कोई सका उलीच।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 22, 2024 at 6:00am — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . . गिरगिट
बात- बात पर आदमी ,बदले रंग हजार ।
गिरगिट सोचे क्या करूँ, अब इसका उपचार ।।
गिरगिट माँगे ईश से, रंगों का अधिकार ।
लूट लिए इंसान ने, उसके रंग अपार ।।
गिरगिट तो संसार में, व्यर्थ हुई बदनाम ।
रंग बदलना आजकल, इंसानों का काम ।।
गिरगिट बदले रंग जब , भय का हो आभास।
मानव बदले रंग जब, छलना हो विश्वास ।।
शायद अब यह हो गया, गिरगिट को आभास ।
नहीं सुरक्षित आजकल, इंसानों में वास ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 16, 2024 at 8:30pm — 3 Comments
रात के हुस्न पर थी टँकी चाँदनी
पर घटाओं से ही मैं उलझता रहा
चाँद पाने की कोशिश नहीं थी मगर
चाँद छूने को ही मैं मचलता रहा
सिक्त आँचल हिलाती रही रात भर
फिर भी गुमसुम हवा ही बही रात भर
कुछ सितारे ही बस झिलमिलाते रहे
धैर्य की ही परीक्षा चली रात भर
प्रीति के दर्द को भी दबाये हुए
घूँट आँसू के ही मैं निगलता रहा
चाँद आया नहीं देर तक सामने
स्याह बादल लगे चादरें…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 16, 2024 at 5:43pm — 6 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
हमारे दर्द-ए-जिगर का भी किसको क्या मालूम
करेगा दर्द से आज़ाद या जिगर छलनी
तुम्हारे तीर-ए-नज़र की किसे रज़ा मालूम
न जाने कैसे थमेगा ये सिलसिला ग़म का
कोई बताये किसी को हो गर ज़रा मालूम
झुकाएं कौन से दर पर ज़बीं ये दीवाने
वफ़ा का कौन सा घर है किसी को क्या मालूम
क़फ़स में क़ैद परिंदे की बेबसी देखो
न हश्र-ए-क़ैद पता है न है ख़ता…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on July 14, 2024 at 11:30am — 10 Comments
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