For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (505)

कौन हुआ आजाद-(दोहा गीत)

किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।

प्रश्न खड़ा हर द्वार  पर,  आजादी के बाद।।

*

कहने को तो भर  गये, अन्नों  से गोदाम।

फिर भी भूखे पेट हैं, इतने क्योंकर राम।।



गर्म आज भी खूब है, क्यों काला बाजार।

हर चौराहे लुट  रही, बहुत आज भी नार।।



अन्तिम जन है आज भी, पहले जैसा दीन।

चोर उचक्के  हो  गये, खुशियों  में तल्लीन।।

*

हाथ लिए जो लाठियाँ, अब भी पाता दाद।

किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।।

*

देशभक्ति  अब  गौंण  है, गद्दारी …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 14, 2024 at 2:53pm — 8 Comments

बाबू जी (दोहे)

जिस को भी  कड़वे  लगे, बाबू जी के बोल

उसने समझो खो दिया, हर अमृत अनमोल।१।

*

बाबू जी ने क्या  किया, कह  दे जो औलाद

समझो उसने कर लिया, सकल पुण्य बर्बाद।२।

*

बाबू जी करते कहाँ, भौतिक सुख की आस

उन के मन  में  चाह   बस, सन्तानें  हों पास।३।

*

सोचा सब के चैन  की, खुद  रहकर बेचैन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2024 at 6:24am — 6 Comments

विरह के दोहे

विरही मन कहता फिरे, समझे पीड़ा कौन

आँगन,पनघट, राह सह, हँसी उड़ाये भौन।१।

*

करते   हैं   दो  चार   जो, परदेशी  से नैन

जले विरह की आग में, उन का मन बेचैन।२।

*

घुमड़ी बदली देखकर, मन में भड़की आग

जिस के पिय परदेश में, फूटे उस के भाग।३।

*

जब साजन परदेश में, शृंगारित ना केश

सावन दावानल लगे, जलता हर परिवेश।४।

*

पिया मिलन की प्यास जो, तन मन करे अधीर

रूठी-रूठी भूख  को, लगती  विष  सी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 3, 2024 at 11:30am — 2 Comments

पसीना बोलता है (गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



पसीना बोलता है (गीत)

****

चन्द सूखी रोटियाँ खाकर

कष्ट में हँस गीत नित गाकर

            खुशी वो घोलता है।

              पसीना बोलता है।।

*

देह मैली, पर  जगत  चमका

सब सुधारा, आ जहाँ धमका

हाथ  की  छैनी  कुदालों  से

नित द्वार सुख के खोलता है।

              पसीना बोलता है।।

*

स्वप्न जो है पोषता सब का

राह आगन देखता उस का

शौक से कब छोड़ घर अपना

परदेश  में  वह  डोलता  है।

             पसीना बोलता है।।

*

खेत  हों …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2024 at 2:35pm — 2 Comments

सुख-दुख / (दोहे)

पड़ते दुख के घाट पर, कभी न जिनके पाँव

समझ न आता  है  उन्हें, जग  में रोता गाँव।१।

*

चल आती है जो खुशी, दुख बैठा जिस राह

पुरखों से सुनते  वही, टिकती  बहुत अथाह।२।

*

सुख से सुख की कब हुई, तुलना जग में बोल

सुख का करते मान  हैं, बजकर दुख के ढोल।३।

*

दुख आकर देता सदा, सुख को रंग हाजार

उस बिन फीका ही रहे, सुख का घर संसार।४।

*

दुख तो ऐसा बौर है, जिस भीतर सुख बीच

जोर-जबर से कब  इसे, कोई  सका उलीच।५।

*…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 22, 2024 at 6:00am — 2 Comments

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना

आँखों को किसने सीखा है दिल से टटोलना ।१।

*

कौशल तुम्हें तो आते हैं ढब माप तौल के

जब चाहो खूब नींद को सपनों से तोलना।२।

*

कब जाग जाये कौन  सा  बदज़ात जानवर

सीमा के हर कपाट को खुलकर न खोलना ।३।

*

करना हमेशा अन्न का जीवन में मान तुम

चाहे पड़े  भकोसना  या फिर कि चोलना।४।

*

चक्का समय का घूम के लौटा है फिर वहीं

जिस में…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2024 at 5:44am — No Comments

बनो सब मीत होली में -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

निभाकर  रीत होली में

दिलों को जीत होली में।१।

*

भरें  जीवन  उमंगों से

चलो गा गीत होली में।२।

*

सभी सुख दुश्मनी छीने

बनो सब  मीत  होली में।३।

*

बहुत विरही तड़पता है

सफल हो प्रीत होली में।४।

*

किसी को याद मत आये

गयी  जो  बीत  होली  में।५।

*

लगे अब रोग कहते हैं

दुखों को पीत होली में।६।

*

गिरा दो  रंग  बरसाकर

खड़ी हर भीत होली में।७।

*

यही अरदास है पिघलें

दिलों की शीत होली…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2024 at 6:55am — No Comments

है खुश खूब झकझोर डाली हवा- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२

नगर भर  चले  दौड़  काली हवा

है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।

*

गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर

बजा  पात  कहती  है  ताली हवा।२।

*

कभी दान जीवन सभी को दिया

हुई  आज  लेकिन  सवाली  हवा।३।

*

कहाँ  से  प्रदूषण  धरा  का  मिटे

नहीं  सीख  पायी  जुगाली  हवा।४।

*

कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन

गयी   लौट   कुल्लू मनाली   हवा।५।

*

तनिक तो कहीं बात होती है कुछ

किसी की चली कब है…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2024 at 11:04am — 6 Comments

चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२

*

हमें  एक  नदिया  मिली  नाम की

न थी वो किसी प्यास के काम की।१।

*

जिसे देश कहते  हैं  सब राम का

वहीं  पर  फजीहत  हुई  राम की।२।

*

दुखाती है मन जो  महज याद से

करो अब न  बातें  उसी शाम की।३।

*

बिना उस के ये भी परायी गली

शरण में चलें  कौन  से धाम की।४।

*

मिटायेगी  वाणी  सभी  दूरियाँ

मिठासें रखो बस पके आम की।५।

*

चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर

घड़ी आ गयी तन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 29, 2024 at 10:42pm — No Comments

यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



१२२ १२२/ १२२/१२

जिन्हें भाव जग में खले दीप के

वही  कहते  आरे  चले  दीप के।१।

*

यहाँ बाँध  घन्टी  गले दीप के

तमस जी रहा है तले दीप के।२।

*

बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को

नहीं एक  हम  ही  छले  दीप के।३।

*

चले है तमस  यूँ  दिखा आँख जो

लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।

*

कहाँ कब जले घर नहीं है पता

इरादे  कहाँ  अब  भले  दीप के।५।

*

परायों से बढ़ आज अपनो से भय

न बाती ही  कालिख …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2024 at 2:42pm — No Comments

अँधेरे उजाले मिले प्यार से- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२



अँधेरे    उजाले    मिले   प्यार   से

चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।

*

नहीं काम  आता  किसी  के कोई

मिटे  दुख  भला   कैसे  संसार  से।२।

*

हटा मैल मन का तनिक भी नहीं

नहा कर चले  नित्य  हरिद्वार से।३।

*

न बदला है  कोई  किसी के कहे

जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।

*

अकेले न  तुम  हो  असंतुष्ट अब

हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।

*

शिखर चाहते   हैं  सजाना बहुत…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2024 at 11:14pm — No Comments

जाते वर्ष के दोहे

करुण  रुदन  करता  नहीं, कोई  जाता देख

चाहे लिखता वो रहा, हर दिन सुख का लेख।१।

*

कैसे मुख अब फेर  लूँ, मन में लिए सवाल

इस से भी बदतर कहीं, ना हो आगत साल।२।

*

यादें छोड़ तमाम फिर, गया और इक वर्ष

लाभ हानि का लोग क्यों, करते हैं निष्कर्ष।३।

*

स्वागत को हर्षित  हुए, करें  विदा तो हर्ष

क्या बोलूँ अब मैं भला, कैसा था यह वर्ष।४।

*

साथ समय के नित जिसे, कोसा दसियों बार

वही  बिछड़ते  दे   रहा,  नया  साल  उपहार।५।

*

नये …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 10:00pm — No Comments

दिल तो बेचैन उस की बातों से- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122/१२१२/२२

***

दिल की कालिख सँवार आँखों में

कह  रहे  सब  खुमार  आँखों में।१।

*

फिर सुहाता न कोई भी उस को

उग गया जिस के खार आँखों में।२।

*

वार  करती  है  जानलेवा  वो

क्या लिए है  कटार  आँखों में।३।

*

दिल तो बेचैन उस की बातों से

दिख रहा पर  करार  आँखों में।४।

*

सिर्फ दुख से न होती नम लोगो

हर्ष भी  लाता  धार  आँखों में।५।

*

मन की चाहत सुबास सरसों की

खिल गयी  पर …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:29pm — 1 Comment

लौटा है कौन देख के जन्नत हरी भरी-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



रहती हो जिसके साथ मुसीबत हरी भरी

कैसे हो उस की  यार  तबीयत हरी भरी।१।

*

वो भाग्यवान तात से जिसको मिले सदा

आशीष  लाड़  डाँट  नसीहत  हरी भरी।२।

*

सबने है आग द्वेष की सुलगा रखी बहुत

रखता है मन में  कौन मुहब्बत हरी भरी।३।

*

बढ़ता न ताप दुनिया का ऐसे कभी नहीं

रखते धरा को लोग जो औसत हरी भरी।४।

*

बाँटें दुखों के बोझ को मिलके सदा यहाँ

दो ईश खूब सब को ही…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:22pm — 2 Comments

उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/१२१२/२२

*

सूनी आँखों  की  रोशनी बन जा

ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।

*

अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती

चैन  पाऊँ  कि  तू  नदी  बन  जा।२।

*

हो गया जग  ये  शीत का मौसम

धूप सी  तू  तो  गुनगुनी  बन जा।३।

*

मौत आकर खड़ी है द्वार अपने

एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।

*

मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल

आ के अधरों  पे  शायरी बन जा।५।

*

इस नगर  में  तो  सिर्फ  मसलेंगे

फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा।६।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2023 at 7:00am — 5 Comments

सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221/2121/1221/212

****

सब से हसीन ख्वाब  का मंजर सँभालकर

नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।

*

उर्वर करेगा कोई  तो  फिर  से ये सोच बस

सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।

*

कीटों  के  प्रेत   नोच  के  हर  शब्द  ले  गये

रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।

*

पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम

नफरत के  दौर  प्यार  के  तेवर  सँभालकर।४।

*

फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा

जिस ने रखा है हाथ में…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2023 at 12:39pm — 3 Comments

सरकार नित ही वोट से मेरी बनी मगर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

***

ये सच नहीं कि रूप  से वो भा गयी मुझे

बारात उस के वादों की बहका गयी मुझे।१।

*

सरकार नित ही वोट  से  मेरी बनी मगर

कीमत का भार डाल के दफना गई मुझे।२।

*

दंगो की आग दूर थी कहने को मीलों पर

रिश्तों की ढाल भेद  के  झुलसा गई मुझे।३।

*

अच्छे बहुत थे नित्य के यौवन में रत जगे

पर नींद ढलते काल में अब भा गयी मुझे।४।

*

नद झील ताल सिन्धु पे है तंज प्यास यूँ

दो एक…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2023 at 7:58am — No Comments

शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२ २२२२ २२२२ २

**

पर्वत पीछे गाँव पहाड़ी निकला होगा चाँद

हमें न पा यूँ कितने दुख से गुजरा होगा चाँद।१।

*

आस नयी जब लिए अटारी झाँका होगा चाँद

मन कहता है झुँझलाहट से बिफरा होगा चाँद।२।

*

हम होते तो कोशिश करते बात हमारी और

शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद।३।

*

चाँद बिना हम यहाँ  नगर  में जैसे काली रात

अबके पूनौ हम बिन भी तो आधा होगा चाँद।४।

*

बातें करती होगी बैठी याद हमारी पास

कैसे कह दें तन्हाई  में तन्हा होगा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 1, 2023 at 12:33pm — 4 Comments

कुछ हो मत हो नेता दिख -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२

*

कुछ हो मत  हो  नेता दिख

मुख से निकला वादा दिख।१।

*

दुनिया को  गर  खुश रखना

उसके हित बस खटता दिख।२।

*

शीष  नवायें  सब  तुझ  को

इच्छा  है   तो   दादा  दिख।३।

*

लोकतन्त्र  की   रीत  निभा

राजा  होकर  जनता  दिख।४।

*

खबरों   में   गर   आना   है

नियमित से बस उल्टा दिख।५।

*

भीड़  जुटानी  अगल बगल

जीने  से  बढ़  मरता  दिख।६।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2023 at 7:49am — 4 Comments

जब दंगों का मंजर देखा -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/ २२२२


जब  दंगों  का  मंजर  देखा
सब आँखों में बस डर देखा।१।
*
जलती बस्ती  अनजानी थी
पर उसमें भी निज घर देखा।२।
*
मानव तो  मानव  जैसे ही
मंदिर मस्जिद अन्तर देखा।३।
*
अपने दुख  तब  से बौने हैं
औरों का दुख ढोकर देखा।४।
*
चीख उठीं दीवारें सारी
सन्नाटा जब छूकर देखा।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 31, 2023 at 5:40am — No Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई। "
4 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
".कितनी सदियों से चाक पर हूँ मैंमेरी मिट्टी का कुछ बना तो नहीं.हासिल-ए-ग़ज़ल शेर रहा।  टूट कर…"
6 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अभी समय मॉंगती है। आपने फ़लक को एक से अधिक मानते हुए शेर कहा, बहुत से आकाशों की कल्पना ग़लत…"
10 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय तिलक राज कपूर जी, मतले पर आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार। शेष शेर पर भी कुछ मार्गदर्शन…"
33 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। आ. नीलेश भाई ने अच्छा मार्गदर्शन किया है। इससे यह…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यूँ तो पूरी गजल ही लाजवाब हुई है पर ये दो शेर पर अतिरिक्त बधाई…"
7 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी नमस्कार बहुत खूब ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें सभी शैर बहुत अच्छे…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, ग़ज़ल पर अपकी टिप्पणी के लिए आभार पर कुछ विस्तार से मार्ग दर्शन करते तो अच्छा…"
7 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका अपने समय दिया कुछ त्रुटियों की…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास है। तीन शेर 4,5, व 6 तो बहुत अच्छे लगे। बधाई…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं में कुछ ग़ल़त नहीं है। हुआ अपने आप में पूर्ण शब्द…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी टिप्पणी के अनुसार काफिया में कोई कमी हे तो स्पष्ट समझायें। कुछ उदाहरण…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service