2122 1212 22
आसमाँ हम भी छू ही लेते,मगर
काट डाले गए हमारे पर
हमको काँटों की राह प्यारी है
आप ही कीजे रास्तों पे सफ़र
अपनी आँखों में जुगनू बसते हैं
हम पे होगा न तीरगी का असर
हम तो रहते हैं आप के दिल में
खुद का अपना नहीं है कोई घर
इस क़दर खो गया है होश-ओ-हवास
आजकल है न हमको अपनी ख़बर
मर्ज़ पहुँचा है उस मुक़ाम पे अब
हो गया खुद बिमार चाराग़र
नक़्श उसका बसा लिया दिल में
कौन मंदिर को जाए…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on June 6, 2016 at 9:32pm                            —
                                                            12 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      2122 1212 22
क्या लगी मैक़शी पे पाबंदी
यूँ लगे, ज़िन्दगी पे पाबंदी
जो लगा दे तो मर ही जाऊँ मैं
गर कोई शाइरी पे पाबंदी
ग़म की सीमा रही नहीं कोई
कितनी ज़्यादा ख़ुशी पे पाबंदी
वो लगाते ज़ुबान पर ताला
और फिर ख़ामुशी पे पाबंदी
बम-पटाखों पे कोई रोक नहीं
आजकल छुरछुरी पे पाबंदी
खेल लो खेल ख़ूब क़ुदरत से
क्यूँ लगे त्रासदी पे पाबंदी
मेरे दुश्मन हैं इंतज़ार में "जय"
कब लगे दोस्ती पे…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on May 17, 2016 at 6:58pm                            —
                                                            11 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
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फ़लक पर के सभी दिलकश नज़ारे छोड़ आया हूँ
सदा सुन के ज़मीं की, चाँद-तारे छोड़ आया हूँ
मैं अपने बोरिये-बिस्तर शहर ले के तो आया, पर
वो पनघट,बाग़,पोखर,खेत...सारे छोड़ आया हूँ
जहाँ अपनी वफ़ा का मुस्कुराता एक गुलशन था
वहीं अश्कों के कुछ तालाब खारे छोड़ आया हूँ
वज़ूद उसका न मिट जाए कहीं दरिया के दलदल में
तड़पती मीन को सागर किनारे छोड़ आया हूँ
पिछड़ जाए न बेटा रेस में, ज्यों गोद से उतरा
उसे हॉस्टल प्रतिस्पर्धा के…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on May 12, 2016 at 8:46am                            —
                                                            5 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      1222 1222 1222 1222
गगन मेरा पिता है और ये धरती है मेरी माँ
मैं जिसमें लोटता रहता हूँ वो मिट्टी है मेरी माँ
कुशलता से सभी रिश्तों के मनकों को पिरोती है
बड़ी ही नर्म और' मजबूत-सी डोरी है मेरी माँ
ज़माने के सभी रिश्तों को पल-भर में भुला दूँ,पर
मैं उसकी कोख से जन्मा, मेरी अपनी है मेरी माँ
फ़िज़ा में गूंजता हर ओर मातम,जब सिसकती है
दहल जाती है पृथ्वी, जब कभी रोती है मेरी माँ
यही कारण है शायद, मैं कभी मंदिर नहीं जाता
मेरी…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on May 8, 2016 at 7:00am                            —
                                                            5 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      2122 2122 2122 212
ज़िन्दगी से जो मिला हमको गवारा हो गया
कुछ गिला-शिकवा किये बिन ही गुज़ारा हो गया
टूटकर ख़ुद पूर्ण करता है जो औरों की मुराद
मेह्रबानी से किसी की मैं वो तारा हो गया
सत्य-अहिंसा साथ लेकर हम भटकते ही रहे
फ़ोटो से बापू की, उसका काम सारा हो गया
कल तलक जो मेरे सीने में धड़कता था,वो दिल
आज ये ऐलान करता हूँ, तुम्हारा हो गया
क़ैद कर दो प्रेम को इतिहास के पन्नों में अब
आजकल के प्रेमियों को 'काम' प्यारा हो…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on May 7, 2016 at 6:44am                            —
                                                            6 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      2122 2122 212
नेक-नीयत रख के आखिर क्या मिला
हर कदम पर हाँ मगर धोखा मिला
कौन दुश्मन,किसको कहते खैरख्वाह
हर कोई क़ातिल से मेरे था मिला
मांगने वालों की झोली ना भरी
जिसने ना माँगा उसे ज़्यादा मिला
यूं लगा कोई खज़ाना मिल गया
बीस पैसे का जब इक सिक्का मिला
बेवफ़ाई, बेबसी, ग़म, शाइरी
ज़िन्दगी से जो मिला अच्छा मिला
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(मौलिक व अप्रकाशित)                                          
                    
                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on April 30, 2016 at 9:01pm                            —
                                                            14 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      22 1212 1122 1212
मैं तो भुला चुका था,मगर याद आ गया
आखिर में ऐ ख़ुदा,तेरा दर याद आ गया
दुनिया की ख़ाक छान के जब ठोकरें मिलीं
जो छोड़ के गया था,वो घर याद आ गया
जब फूल हर डगर पे ही मुझको बिछे मिले
काँटों पे जो किया,वो सफ़र याद आ गया
पतझड़ के रुत में भी था हरा एक वो दरख़्त
किसकी दुआओं का था असर, याद आ गया
पल-भर की बेखुदी ने सफीना डुबो दिया
साहिल पे नैनों का वो भँवर याद आ गया
तूफ़ाँ में मुझको थाम के अविचल खड़ा…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on April 12, 2016 at 8:50pm                            —
                                                            3 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      212   212   212   212
ये है आलम अब आपस की तकरार से
गुफ़्तगू   हो   रही   सबकी   दीवार  से
फिर  हमें  कब रहा  डर किसी  वार से
लफ्ज़  अपने  हुए  जब से हथियार से
कुछ ख़बर  हो न पाई  हमें,  इस क़दर
जिस्म से  दिल निकाला गया  प्यार से
सोचिये,  स्वस्थ   तब   देश   कैसे  रहे
ख़ैरख़्वाह  आज  सारे   हैं  बीमार - से
जीत को जब बनाया है मक़सद,तो फिर
मैं  भला   क्यों  डरूं   एक - दो  हार…
                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on April 5, 2016 at 10:08pm                            —
                                                            1 Comment
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      1222   1222   1222   1222
निगाहों  में  किसी की  चंद-पल  रुक कर चला आया
परिंदा   क़ैद  का  आदी   नहीं  था,   घर  चला  आया
सितमगर  की  ख़िलाफ़त  में  उछाला था  जिसे हमने
हमारे   आशियाने   तक   वही   पत्थर   चला   आया
सभी  क़समों,  उसूलों,  बंदिशों  को  तोड़कर,आखिर
मैं  अरसे  बाद आज उसकी  गली होकर  चला आया
दनादन   लीलता   ही   जा   रहा   है   कैसे  हरियाली
कि चलकर शह्र से अब गाँव तक अजगर चला…
                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on March 9, 2016 at 9:59pm                            —
                                                            10 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      1222  1222  1222  1222
धरा   है  घूर्णन  में  व्यस्त,  नभ   विषणन  में  डूबा  है
दशा  पर  जग  की, ये  ब्रह्माण्ड  ही  चिंतन  में डूबा है
हर इक शय  स्वार्थ  में आकंठ  इस  उपवन में डूबी है
 कली   सौंदर्य   में   डूबी,  भ्रमर   गुंजन   में   डूबा  है
बयां   होगी   सितम  की  दास्तां,  लेकिन  ज़रा  ठहरो
 सुख़नवर   प्रेयसी   के   रूप   के   वर्णन  में   डूबा  है
उदर के आग  की  वो  क्या  जलन  महसूस  कर  पाए
 जो  चौबीसों…
                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on February 24, 2016 at 9:17pm                            —
                                                            18 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      212  212  212  212
शेर-सा, बाघ-सा, तेंदुआ-सा लगा
शह्र में हर कोई भागता-सा लगा
अक्स उसने दिखाया मेरा हू-ब-हू
आज कोई मुझे आइना-सा लगा
यूं मुझे ज़ीस्त के तज़्रिबे थे कई
तज़्रिबा इश्क़ का पर नया-सा लगा
क़ामयाबी मुक़द्दर के हाथ आ गई
कोशिशों से कोई ढूंढता-सा लगा
त्यौरियां हुक्मरानों की चढ़ने लगीं
जब भी आम-आदमी खुश ज़रा-सा लगा
जिस्म-ओ-जां एक कब के हुए…
                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on February 19, 2016 at 8:59pm                            —
                                                            13 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      2122 2122 212
भीड़ में दुनिया के हम भी खो गए
ख़ुद से जैसे अजनबी-से हो गए
ज़ख़्म-ए-दिल में थे तेरे बाकी निशां
अश्कों के सैलाब वो भी धो गए
आदमीयत होश में आने लगी
आदमी जब शह्र के सब सो गए
काटता हूँ फ़स्ल अम्न-ओ-चैन की
जो कभी पुरखे थे मेरे बो गए
आसमां ने सुन ली मेरी दास्तान
मेघ भी आके दो आंसू रो गए
लौटकर आए नहीं हैं आजतक
इस नगर से उस नगर तक जो गए
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जयनित कुमार…                      
Continue
                                          
                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on February 17, 2016 at 9:35pm                            —
                                                            8 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      212 212 212 212
दिन गुज़रता रहा, रात ढलती रही
दिल में उम्मीद की शम्अ जलती रही
सोचकर,किस क़दर फ़ासला ये मिटे
रात-दिन ज़िंदगानी पिघलती रही
वाकया शह्र में आम ये हो गया
आदमी मर गया,साँस चलती रही
आदमी, आदमी को चबाता रहा
आदमीयत खड़ी हाथ मलती रही
बेक़ली, बेबसी, बेख़ुदी ना गई
सिर्फ कहने को ही रुत बदलती रही
कर गया था वो पूरी मेरी हर कमी
फिर,कमी उसकी ताउम्र खलती रही
एक गिरते हुए को उठा क्या…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2016 at 8:34pm                            —
                                                            11 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      1222 1222 1222 1222
गया है सींचकर जो बाग़-ए-दिल को, इक नज़र कोई
ख़िज़ाओं का नहीं होता दरख़्तों पर असर कोई
दिलों के दरमिया इक़रार कोई हो गया था,पर
न थी उनको ख़बर कोई, नहीं मुझको ख़बर कोई
मुक़द्दर हर किसी पे मेह्रबां होता नहीं यारो
कहीं क़दमों में है मंज़िल, भटकता दर-ब-दर कोई
भरोसा है हमें चारागरी पर हद से भी ज़्यादा
मरीज़-ए-इश्क़ पालेगा न मर्ज़ अब उम्र-भर कोई
सियासत खून पीने की बड़ी शौक़ीन लगती है
छुड़ा पाता ये चस्का खून का ऐ काश अगर…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on February 2, 2016 at 8:30pm                            —
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                      122 122 122 12
सज़ा इश्क़ की बेवफाई न दे
भले मौत दे पर जुदाई न दे
है मंज़ूर रहना हमें क़ैद में
वो आँखों से जबतक रिहाई न दे
ये इंसाफ़ कैसा है तेरा ख़ुदा
तू जाड़ा तो दे पर रजाई न दे
कहेगा जो सच तो कटेगी जुबां
छुपा बेगुनाही, सफाई न दे
मचा शोर कैसा शहर में, सदा
किसी को किसी की सुनाई न दे
बहुत दूर है मेरी मंज़िल अभी
सफ़र देख मेरा, बधाई न दे
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जयनित कुमार मेहता
(मौलिक व…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on January 28, 2016 at 8:58pm                            —
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                      2122 1122 22
उनकी महफ़िल से शरम से निकले
दिल जो टूटा तो वहम से निकले
आदमी से वो बने फिर शैतान
जैसे ही दैरो-हरम से निकले
मेरे लफ़्ज़ों में कोई बात नहीं?
आप शायर क्या जनम से निकले
आप खरगोश थे,उछले जी भर
हम तो कछुए-से कदम से निकले
आइना सामने जो आया तो
उसमें चेहरे कई हम-से निकले
मौत आए, तो ये ग़म का मारा
ज़ीस्त के ज़ुल्मो-सितम से निकले
======================
(मौलिक व अप्रकाशित)                                          
                    
                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on January 17, 2016 at 2:42pm                            —
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                      रात की सूनी पगडंडी पर
मैं और मेरी तनहाई
निकल पड़ते हैं अक्सर अनंत यात्रा पर
बहुरंगी सपनों के पीछे,नंगे पाँव
चाँद गवाह होता है इस सफ़र का
और हमसफ़र अनगिनत जुगनू
मुसलसल सफ़र के बीच
अचानक!सामने बहने लगती है एक नदी
मैं तैराकी से अनजान
डूबते-उभरते पहुँचता हूँ उस पार
चार कदम आगे बढ़ती है यात्रा
तभी, पगडंडी पर उग आते हैं जहरीले काँटें
लौट जाता हूँ हर बार
अपने प्रारब्ध को कोस कर
कौन बिछाता है जाल काँटों का?
क्या है,इस तिलस्मी नदी का…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on January 13, 2016 at 9:06pm                            —
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                      1222 1222 122
अगर दिल में तेरे करूणा नहीं है
तू जीता है, मगर ज़िंदा नहीं है
वो क्या समझे किसी की अहमियत को
कि जिसने कुछ,कभी खोया नहीं है
तेरी आँखों के मयखाने में बैठा
कहे ये दिल,कोई तुझ सा नहीं है
उगाते हैं जो दाना,उनके घर में
कभी चावल,कभी आटा नहीं है
मिलेगा फल यहीं कर्मों का तेरे
अलग कोई,कहीं दुनिया नहीं है
मेरी मंज़िल खड़ी है जिस जगह पर
वहां तक रास्ता जाता नहीं…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on January 10, 2016 at 10:14pm                            —
                                                            23 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      22 22 22 22 22 2
सबके मन की गांठें खोले साल नया
बिखरे रिश्तों को फिर जोड़े साल नया
भूखे को दे रोटी, निर्धन को धन दे
सबकी खाली झोली भर दे साल नया
ग़म से आहत दिल डूबा है आशा में
शायद थोड़ी खुशियाँ लाए साल नया
नभ में कदम बढ़ाता वो सूरज ही है
निकल पड़ा है या मुस्काए साल नया
मधु-हाला निःशुल्क मिलेगा मालिक से
कहता 'हरिया' जल्दी आए साल नया
जीवन का हर क्षण हो जाए सुरभित "जय"
बीज नए पुष्पों के बोए साल…                      
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on January 1, 2016 at 7:56pm                            —
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                      छोड़ शहर की रौनक,जिसके
 गाँव में बसते प्राण।
 जिसकी पावन धरती ने है
 जने वीर संतान।
 जिसकी गौरव-गाथा का
 करे विश्व गुणगान।
 
 है देशों में वो देश महान।
 अपना प्यारा हिन्दुस्तान।।
 
 सूरत से भी ज़्यादा उनकी
 होती सीरत प्यारी।
 हृदय में जिनके बहती है
 करुणा जग की सारी।
 वक़्त पड़े तो रणभूमि में
 जौहर दिखलाती नारी।
 
 अत्याचार को देख के जिनके
 दिल में उठता है तूफ़ान।।
 
 राजतंत्र को मिटा जिन्होंने
 गणतंत्र हमें…
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                                                        Added by जयनित कुमार मेहता on December 13, 2015 at 9:30pm                            —
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