For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Usha Awasthi's Blog (93)

कुछ उक्तियाँ

पृथ्वी सम्हलती नहीं

मंगल सम्हालेंगे

यहाँ ऑक्सीजन नष्ट की

वहाँ डेरा डालेंगे

बहुत मनाईं देवियाँ

बहुत मनाए देव

कर्म-लेख मिटता कहाँ ?

भाग्य लिखा सो होय

बुज़ुर्ग बेमिसाल होते हैं

समस्त जीवन के अनुभवों की

अलिखित किताब होते हैं

बुज़ुर्ग बेमिसाल होते हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on May 3, 2021 at 8:04pm — No Comments

आतंकी कोरोना

कौन आँसू पोंछे , कौन सान्त्वना दे ?

स्वजन की मौत पर अकेले ही रोए हैं

आतंकी कोरोना के, मुश्किल हालातों में

स्वयं सांत्वना दी , स्वयं नेत्रनीर धोए हैं

ना ही चेहरा देखा , ना मरघट जा पाए

कैसी विडम्बना ; जो मन को झुलसाए

संचित स्मृतियों को , प्रेमपूर्ण भाव में

सजा लिया है अपने अन्तर के गाँव में 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on April 28, 2021 at 4:00pm — No Comments

बलि नित्य चढ़ाई जाती है

आशाओं , आकांक्षाओं की

जीवन की और प्रतिभाओं की

इस लोकतन्त्र के मन्दिर में

बलि नित्य चढ़ाई जाती है

कोरोना की महमारी में

त्रासद स्थिति, लाचारी में

लाशों पर राजनीति करके

जनता भरमाई जाती है

जिस समय मुसीबत ने घेरा

चँहु ओर काल का है डेरा

वीभत्स घड़ी में आन्दोलन

रैली करवाई जाती है

नज़रें गड़ाए सब वोटों पर

टिकती निगाह बस नोटों पर

शासन में भागीदारी की

कामना जगाई जाती…

Continue

Added by Usha Awasthi on April 24, 2021 at 9:47am — 4 Comments

कुछ उक्तियाँ

कैसी फ़ितरत के लोग होते हैं ?

दूसरे की आँखों में धूल झोंकने हेतु

नम्बर वही मोबाइल पर

नाम कुछ और जोड़ लेते हैं

दुर्जनों के दुर्वचन

सहिष्णुता की परख होते हैं

अपनी नहीं खुद उनकी

औक़ात बता देते हैं

उनकी माँ नहीं थीं, मेरे पिता

वे मुझमें माँ ढूँढते रहे,मैं उनमें पिता

उन्हे ना माँ मिलीं, ना मुझे पिता

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on April 16, 2021 at 10:43am — 4 Comments

कुछ अतुकान्त

बच्चे सरायों में नहीं

घरों में पलते हैं

व्यक्तित्व आया से नहीं 

माँओं से बनते हैं

कितनी जल्दी लोग

पाला बदल लेते हैं

आज गँठजोड़ किसी से

कल,किसी और से कर लेते हैं

क्या कहें वक्त के सफ़र को हम

जहाँ निजता की चाह होती है

एक ही घर के बन्द कमरों में

अब,मोबाइल से बात होती है

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on March 6, 2021 at 1:25am — 8 Comments

मनुज कभी न हारेगा

समय का चक्र घूमता

कठोर काल झूमता

प्रचंड वेग धारता

दहाड़ता , पछाड़ता

लपक- लपक, झपक - झपक

नगर - नगर , डगर- डगर

मृत्यु - बिगुल फूँकता

बन के वज्र टूटता

सिरिंज की कमान से

वैक्सिन के वाण से

संक्रमण को नष्ट कर

यह कोरोना ध्वस्त कर

निकालेगा जहान से

खड़ा हुआ वो शान से

विजय ध्वजा को धारेगा

मनुज कभी न हारेगा

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on January 8, 2021 at 7:44pm — 2 Comments

डरे भला क्यों मौत से ?

जब तक इन्द्रिय भोग में होती मन की वृत्ति

सकल दुखों ,भव - ताप से मिलती नहीं निवृत्ति

उस असीम की शक्ति से संचालित सब कर्म

परम विवेकी संत ही जाने उसका मर्म

पंच तत्व के मेल से बनें प्रकृति के रूप

यह दर्पण , इसमें दिखे सत्य ,'अरूप' , अनूप

दृढ़ संकल्पित यदि रहे नित्य , सनातन जान

डरे भला क्यों मौत से ? अजर , अजेय , अमान

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on December 23, 2020 at 11:03am — 2 Comments

योग क्षेम नाशित ना हो

किसी समय मानवी सनक से

यह धरणी शापित ना हो

करे ध्वंस क्षण में अवनी का

वह कुशस्त्र चालित ना हो

ज्ञान,शक्ति,आनन्द त्रिवेणी

की धारा बाधित ना हो

जाति-धर्म की सीमाओं में

बंध कोई त्रासित ना हो

रहे सदा वसुधा का आँचल 

हरा - भरा तापित ना हो

फैले नव प्रकाश जीवन में

योग क्षेम नाशित ना हो

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on December 6, 2020 at 9:43am — 2 Comments

सृष्टि का संगीत

उस असीम , विराट में 
इस सृष्टि का संगीत
ताल,लय,सुर से सुसज्जित 
नित्य नव इक गीत

नृत्य करती रश्मियाँ 
उतरें गगन से भोर
मृदु स्वरों की लहरियों पर
थिरकतीं चँहु ओर

गगन पर जब विचरता 
आदित्य , ज्योतिर्पुंज
विसहँते सब वृक्ष,पर्वत,
नदी ,पाखी , कुन्ज

.

मौलिक  एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on December 4, 2020 at 7:30pm — 3 Comments

केवल ऐसी चाह

द्वापर युग में कृष्ण ने

पान्डव का दे साथ

हो विरुद्ध कुरुवंश के

रचा एक इतिहास

कलियुग की अब क्या कहें?

जिन्हे मिला अधिकार

धन-बल के अभिमान में

प्रति पल चढ़े ख़ुमार

हक़ जिसका हो,मार लें

जाति धर्म के नाम

आपस में झगड़ा करा

आप बनें सुल्तान

वंशवाद का घुन लगा

आज हमारे देश

करे खोखला राष्ट्र को

धर नेता का वेष

राष्ट्र एकता की उन्हे

तनिक नहीं…

Continue

Added by Usha Awasthi on November 29, 2020 at 9:02am — 2 Comments

रखिहै सबका तुष्ट

जब तब अजिया कहत रहिं

दूध पूत हैं एक

जैस पियावहु दूध तस

बढ़िहै ज्ञान विवेक

गइयन केरी सेवा कयि

करिहौ जौ संतुष्ट

पइहैं पोषण पूर जब

हुइहैं तब वह पुष्ट

अमृत  जैसन दूध बनि

निकसी बहुत पवित्र

रोग दोष का नास करि

रखिहै सबका तुष्ट

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on November 27, 2020 at 7:22pm — 2 Comments

घटे न उसकी शक्ति

परम ज्योति , शाश्वत , अनन्त

कण - कण में सर्वत्र

विन्दु रूप में क्यों भला

बैठेगा अन्यन्त्र ?

सबमें वह , उसमें सभी

चहुँदिशि उसकी गूँज

क्या यह संभव है कभी

सिन्धु समाए बूँद ?

ज्ञान नेत्र से देखते

संत , विवेकी व्यक्ति

आत्मा ही परमात्मा

घटे न उसकी शक्ति

मौलिक एवं  अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on October 18, 2020 at 10:53pm — 4 Comments

आए , तोड़े गर्व

धरणी को बरबाद कर

चन्द्र करो जा नष्ट

फिर ढूँढो घर तीसरा

जहाँ न कोई कष्ट

यह क्रम चलता ही रहे

मानव ही जब दुष्ट

आपस में लड़ कर करे

सर्व विभूति विनष्ट

समझे मालिक स्वयं को

बन बैठा भगवान

हिरनकशिपु सम सोच रख

औरों का अपमान

करते बम के परीक्षण

खुशी मने ज्यों पर्व

राम , कृष्ण सदृश कोई

आए , तोड़े गर्व

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on September 3, 2020 at 7:26pm — 3 Comments

आलस करैं न नेक

कपड़ा-लत्ता बाँधि कै

जावैं अपने देस

कितने दिनन बिता गए

तबहुँ लगै परदेस

पहुचैं अपने द्वार-घर

लक्ष्य यही बस एक

जा खेती - बाड़ी करैं

आलस करैं न नेक

धूप - ताप मा बिन रुके

चले जाँय सब गाँव

सोचत जात , थमें नहीं

मिले जो चाहे छाँव

नदियन नाला केर सब

कचरा देब हटाय

लहर-लहर बहियैं सबै

धरती पियै अघाय

बबुआ से कहिबै चलौ

गइया लेइ खरीद

दूध, दही , मट्ठा…

Continue

Added by Usha Awasthi on August 30, 2020 at 11:27pm — 2 Comments

गीत , चाँद हमारे अँगना

झाँका , झाँका , देखो झाँका

चाँद हमारे अँगना

आने वाला है कोई 

बाजे मेरा कँगना

हो, हो , हो , हो

झाँका, झाँका , देखो झाँका

सुहाना समां है

खुला आसमां है

करतीं ठिठोली

तारों की टोली

झूमे , झूमे , देखो झूमे

आज हमारे अँगना 

आने....

बहे पुरवइया

डोले मन की नैया

मौसम की घड़ियाँ

जादू की छड़ियाँ

फेरें , फेरें , जादू फेरें

आज हमारे…

Continue

Added by Usha Awasthi on August 21, 2020 at 11:35pm — 8 Comments

सारा हिन्दुस्तान

पढ़ी - लिखी जो गृहणियाँ

देखें निज परिवार

घर में बूढ़ी सास हैं

और श्वसुर लाचार

शिशु जिनके हैं पालने

सेवा की दरकार

आया पर छोड़ें नहीं

सहें स्वयं सब भार

गढ़ती हैं व्यक्तित्व वह

जिस विधि कोई कुम्हार

खोट सुधार सहन करें

चाहे विघ्न हजार

सदा करें निष्काम हो

सबके सुख की वृद्धि

प्रेम , हर्ष , ऐश्वर्य की

होती तभी समृद्धि

घर कुटुम्ब के हेतु जो

अपना सुख दे…

Continue

Added by Usha Awasthi on August 19, 2020 at 7:24pm — 8 Comments

शिवत्व

जब मन वीणा के तारों पर 

स्वर शिवत्व झन्कार हुआ

चिरकालिक,शाश्वत ,असीम

प्रकटा , अमृत संचार हुआ

निर्गत हुए भविष्य  , भूत

वर्तमान अधिवास हुआ

कालातीत, निरन्तर,अक्षय

महाकाल का भास हुआ

शव समान तन,आकर्षण से

मन विमुक्त आकाश हुआ

काट सर्व बन्धन इस जग के

परम तत्व , निर्बाध हुआ

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on August 3, 2020 at 10:30am — 4 Comments

उरिझै कवनेउ मंद

सत्य सुनावै मनई कोउ

भरि साँसैं जमुहाईं

झूठि जहाँ पर चलि रहा

हुइ चैतन मुसुकाहिं

बहुतै मजा मिलै जहाँ

चुगली खावैं लोग

नमक, खटाई, मिरचि जब

चटकि , तबहिं मन मोद

का कलजुग ना दिखावै

सत्पथ धरहि जो पाँव

तपति मरूथल रेत जसि

दीखै कहूँ न छाँव

मौनी अब तौ साधिहौं

वाहै मा आनन्द

ई सांसारिक जालि मा

उरझै कवनेउ मंद

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on July 8, 2020 at 6:28pm — 3 Comments

क्यों ना जड़ पर चोट ?

पैसों से क्या जान को

हम पाएगें तोल ?

सदा - सदा को बुझ गए

जब चिराग़ अनमोल

किन-किन के थे वरद हस्त

जो पनपी यह खोट

खोज-खोज उनकी करें

क्यों ना जड़ पर चोट ?

इस बढ़ती विष बेल पर

यदि ना डली…

Continue

Added by Usha Awasthi on July 4, 2020 at 5:50pm — 6 Comments

रिमझिम - रिमझिम बदरा बरसे

रिमझिम - रिमझिम बदरा बरसे

अजहूँ न आए पिया रे..

ये बदरा कारे - कजरारे 

बार- बार आ जाएँ दुआरे

घर आँगन सब सूना पड़ा रे

सूनी सेजरिया रे

रिमझिम....

तन-मन ऐसी अगन लगाए

जो बदरा से बुझे न बुझाए )

अब तो अगन बुझे तबही जब

आएँ साँवरिया रे

रिमझिम...

छिन अँगना छिन भीतर आऊँ

दीप बुझे सौ बार जलाऊँ

पिया हमारे घर आएगें

छाई अँधियारी रे

रिमझिम .....

मौलिक…

Continue

Added by Usha Awasthi on June 30, 2020 at 9:00pm — 2 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्श के लिए आभार। तीसरे शेर पर…"
23 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
44 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी हुई। बाहर भी निकल दैर-ओ-हरम से कभी अपने भूखे को किसी रोटी खिलाने के लिए आ. दूसरी…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी निबाही है आपने। मेरे विचार:  भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आ इन्सान को इन्सान…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122 1 मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।वादे जो किए तू ने निभाने के लिए…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपने ठीक ध्यान दिलाया. ख़ुद के लिए ही है. यह त्रुटी इसलिए हुई कि मैंने पहले…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी, आपकी प्रस्तुति का आध्यात्मिक पहलू प्रशंसनीय है.  अलबत्ता, ’तू ख़ुद लिए…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी की विस्तृत विवेचना के बाद कहने को कुछ नहीं रह जाता. सो, प्रस्तुति के लिए हार्दिक…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"  ख़्वाहिश ये नहीं मुझको रिझाने के लिए आ   बीमार को तो देख के जाने के लिए आ   परदेस…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत सुंदर यथार्थवादी सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई सर"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी..ख़ुर्शीद (सूरज) ..उगता है अत: मेरा शब्द चयन सहीह है.भूखे को किसी ही…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service