For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Amita tiwari's Blog (76)

ये जो है लड़की

ये जो है लड़की

उसकी जो आँखे

आँखों में सपना

सपने में घर

उसका अपना घर

जिसके बाहर

वो लिख सके

यह  मेरा घर है दुकान नहीं है…

Continue

Added by amita tiwari on October 16, 2018 at 12:30am — 7 Comments

कुछ भी नहीं बोलती जानकी कभी

कहने को तो बहुत कुछ है हमारे पास भी

ये बात अलग है कि कहते बनता नहीं

ऐसा भी नहीं कि कहना जानते नहीं

शब्द भंडार भी है अथाह अपार

वाक्य विन्यास का सारा सार

फिर भी ऐसा कुछ है निःसन्देह 

रोक लेता है जुबान को

लफ्ज़-ए - ब्यान को

 

ठीक वैसे ही  जैसे जानकी

सतीत्व- प्रमाणिकता बनाम  

विश्वास भरोसे संवारने  हेतु

अग्नि -परीक्षा के लिए तत्पर  

क्या क्या नहीं बोल सकती थी

पूरा मुख खोल सकती…

Continue

Added by amita tiwari on September 16, 2018 at 2:00am — 11 Comments

युद्ध के विरुद्ध

जी हाँ  ! युद्ध के विरुद्ध हूँ मैं-

इस लिए नहीं की नहीं देश से प्यार मुझे

अथवा की अपनों के लिए मन नहीं डोलता है 

मेरी धमनियों में भी रक्त है वो भी खौलता है 

अपनों की शहादत पर बहुत क्रोध जागता है 

मन जोश में सीमा की और भागता है 

बदले की आग जलाती है



लेकिन

एक बात यह भी समझ में आती है 

कि 

धरित्री जननी है रक्त नहीं पचाती 

गगन जनक है रणभेरी नहीं सुहाती 



और ये भी 

कि इधर रमेश गिरे अथवा उधर रहमान 

मरती तो दोनों और…

Continue

Added by amita tiwari on September 5, 2018 at 10:30pm — 9 Comments

विगत -गत

विगत -गत

कल कोने में दुबके सहमे

डरे डरे कुछ  लम्हे पाए

मैंने जा कर के सहलाया

झूठ सही पर जा बहलाया

कि मेरे होते न यूं डरो

परिचय दे ले बात करो  

 

सुन कर पल ने ली अंगडाई

व्यंग बुझी  सी हँसी थमाई

 

बोला कलंक से  कलुषित हो

आत्मग्लानि से झुका हुआ था

विगत साल हूँ रुका हुआ था

 

उत्सुक था क्या नया करोगे

मुझे भेज जब नया…

Continue

Added by amita tiwari on January 24, 2018 at 5:23am — 5 Comments

अब की बार दिल की सुन लो

Continue

Added by amita tiwari on February 16, 2017 at 8:30am — 3 Comments

वर्ष नया मंगलमय कहने

चले भी आओ की थोड़ी सी प्रीत निभा लें

वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें

कहना यह भी था कि

जाते साल के इतने तो उधार बाकी हैं

कुछ मुझ पर कुछ तुम पर उपकार बाकी हैं

शुकराने की सुरमय सरगम सजा लें

वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें

कहना यह भी था कि

कोई वादा अभी भी अधूरा सा है

आँखों में उम्मीद का चूरा सा है

वादे की हदों की हदें ही मिटा लें

वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें

कहना यह भी था कि

कुछ चुभने हैं बाकी जो कसकती…

Continue

Added by amita tiwari on December 30, 2016 at 4:11am — 6 Comments

नये साल का नया सूरज

नये साल का नया सूरज   
बहुत चाह है कि …
Continue

Added by amita tiwari on December 15, 2016 at 11:17pm — 2 Comments

स्वीकार कोई कैसे करे

स्वीकार तो पहले भी कहाँ था 
लेकिन तब स्थिति ऐसी कहाँ थी 
अब तक सर हिलाने की…
Continue

Added by amita tiwari on December 3, 2016 at 7:18pm — 7 Comments

कल की ही तो बात थी

अभी कल की  ही  तो बात  रही 

दो चार ही पल छीन पाए  
इक उगती  शाम  की  झोली से 
फिर न चाँद ऊगा न  सितारे ढल  पाए 
शर्मसार  हो  डूबा  सूरज स्वंय को स्वंय से  छिपाए
 …
Continue

Added by amita tiwari on November 1, 2016 at 10:00pm — 3 Comments

सीमा ने बलिदान क्यों माँगा

कभी विधि चले  साथ 

कभी झटक दिए हाथ
कैसा ये खेल कैसे खिलौने 
बिन बदरा…
Continue

Added by amita tiwari on September 30, 2016 at 8:30pm — 11 Comments

माँ !तो आज तुम्हारा पहला श्राद्ध भी हो गया !

तुम्हारी तरह

आज तुम्हारी बहू भी सुबह अँधेरे उठ जायेगी



ठीक तुम्हारी तरह

साफ़ सुथरे चौके को फिर से बुहारेगी 

नहा धो कर साफ़ अनछूई एक्वस्त्रा हो

तुलसी को अनछेड़ जल चढ़ायेगी

ठीक तुम्हारी तरह 

आज फूल द्रूब लाने को भी बेटी को नहीं कहेगी

ठाकुर जी के बर्तन भी स्वय मलेगी

ज्योती को रगड़ -रगड़ जोत सा चमकायेगी

महकते घी से लबलाबायेगी

घर के बने शुद्ध घी शक्कर में लिपटा

चिड़िया चींटी गैया को हाथ से…

Continue

Added by amita tiwari on September 27, 2016 at 9:00pm — 1 Comment

अथ से अभी तक

अथ से अभी तक जो जैसा मिला

सर माथे ले कर के जीते रहे

विधाता की झोली सुदामा भी हो गयी

तो बन कर के कान्हा सीते रहे

गिला है न शिकवा ज़माने से

कोई तकदीर से भी तकाज़ा नहीं

जीना कही जब ज़हर भी हुआ

तो मीरा बने प्याले पीते रहे

इन्द्रधनुष दिया कुरुक्षेत्र पाया

सत्ता से सत्ता की पायी लड़ाई

सिंहासन से चस्पा वफादारी देखी

 विदुरों के तरकश तो  रीते रहे

जतनों से बुनचुन जो सपना संजोया

तकिये बेचारे…

Continue

Added by amita tiwari on September 21, 2016 at 11:30pm — 2 Comments

ऐसा भी हो

ऐसा भी हो 
स्वंय से मिले निगाहें जब- जब 
गर्व से सीना तन पाए 
ग्लानि  हो न मीलों  तक 
इतिहास भले न रच पाए …
Continue

Added by amita tiwari on September 14, 2016 at 3:05am — 5 Comments

पिता -प्रणाम

पिता 

परिवार -नैया पिता  पतवार  

तूफान-आंधी में  खेते जाते 

बोते जाते  श्रम -कण फसलें 

साधिकार पल जाती  नस्लें 

पिता के काँधे …

Continue

Added by amita tiwari on June 19, 2016 at 7:18pm — 3 Comments

हमारे पास भी

हमारे पास  भी 
 
कहने को तो बहुत कुछ है हमारे पास भी 
ये बात अलग है कि कहते बनता नहीं 
ऐसा भी नहीं कि कहना नहीं जानते 
शब्द भंडार भी है अपार 
जानते हैं खूब वाक्य विन्यास 
फिर भी ऐसा कुछ है निःसन्देह  
रोक लेता है जुबान को 
लफ्ज़-ए - ब्यान को 
 
ठीक वैसे ही  जैसे 
सतीतत्व- प्रमाणिकता बनाम   
विश्वास भरोसे संवारती जानकी
अग्नि -परीक्षा के लिए…
Continue

Added by amita tiwari on June 15, 2016 at 10:00pm — 5 Comments

हाँ !चुनाव तुम्हारा है

आते है गंदले कीचड़े उथले नारे नदी

मिलते है गंगा में और गंगा हो जाते हैं

पर गंगा बन मिलते है जब सागर में

गंगा के नामो निशाँ मिट जाते हैं .....…

Continue

Added by amita tiwari on June 5, 2016 at 8:00pm — 7 Comments

तीर लगता आज सूना

बादल सा पल फिसल गया  

बिन बरसे ही निकल गया 
जाने गया किस व्यथित तीरे 
चुपके चुपके धीरे  धीरे 
धरा धरी सी अवाक रह गयी 
विरहनी सी निर्वाक  रह गयी 
बदरा जाने क्या कह  गया 
अश्रू ठहरा फिर बह गया  
उर्मिला की  इक आस सी 
अमावस में उजास सी 
गले सा कुछ रुद्ध गया 
दिया जला और बुझ गया 
कागा भी  कगराये तो क्या 
पलक…
Continue

Added by amita tiwari on May 30, 2016 at 10:30pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service