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Sushil Sarna's Blog (884)

2 लघु रचनाएँ : इंतज़ार

2 लघु रचनाएँ : इंतज़ार
1.
कितने अज़ाब हैं
उल्फ़त के सफ़हात में
मिलता नहीं
क्यूँ चैन
फाड़ के भी
इंतज़ार के सफ़हात को

..................................
2
आंखें
कर बैठीं
इंतज़ार से
बग़ावत
अश्क
कर बैठे
चश्म से अदावत
उल्फत करती रही
इंतज़ार
ख़ारी लकीरों में

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on March 19, 2019 at 5:30pm — 1 Comment

ख़्वाब ....

ख़्वाब ....

चोट लगते ही
छैनी की
शिला से आह निकली
जान होती है
पत्थर में भी
ये अहसास हुआ आज
छीलता रहा पत्थर को
निकालना था एक ख़्वाब
बुत की शक्ल में
उसके गर्भ से
रो दी शिला
जब
ख़्वाब
बुत में
धड़कने लगा
क्या हुआ
जो रिस रहा था खून
बुतगर के हाथ से

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on March 12, 2019 at 5:00pm — 4 Comments

अंतिम स्वीकार ....

अंतिम स्वीकार ....

जितना प्रयास किया
आँखों की भाषा को
समझने का
उतना ही डूबता गया
स्मृति की प्राचीर में
रिस रही थी जहाँ से
पीर
आँसूं बनकर
स्मृति की दरारों से
रह गया था शेष
अंतर्मन में सुवासित
अंतिम स्वीकार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on February 13, 2019 at 7:27pm — 4 Comments

अंतिम साँझ .......

अंतिम साँझ .......

लिख लेने दो
एक अंतिम साँझ
मुझे
साँझ के पन्नों पर
अभिलाषाओं की वेदी पर
साँसों की देहरी पर
व्योम के क्षितिज़ पर
स्मृति के बिम्बों पर
मौन की गुहा में
स्पर्शों की गंध पर
श्वासों के आलिंगन में
अन्तस् के दर्पण पर
बिंदु के अस्तित्व में
लिख लेने दो
मुझे
प्राणों में लीन प्राणों की
अंतिम
साआआआं ... झ


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on February 6, 2019 at 7:24pm — 4 Comments

एक सच ...

एक सच ...

एक सच
व्यथित रहा
अंतस के अनंत में
एक सच
लीन रहा
मिलन के बसंत में
एक सच
ठहर गया
दृष्टि के दिगंत में
एक सच
प्रकम्पित हुआ
आभासी कंत में
एक सच
बंदी बना
अभिलाषी कंज में
एक सच
शकुंत बना
अवसान के अंत में
एक सच
अदृश्य रहा
जीवन के प्रपंच में
एक सच
शून्य बना
अंत के अनंत में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित



Added by Sushil Sarna on February 4, 2019 at 5:44pm — 6 Comments

अनसोई कविता............

अनसोई कविता............

कभी देखे हैं
अनसोई कविताओं के चेहरे
अँधेरे में टटोटलना
मेरे साँझ से कपोलों पर
रुकी कविताओं के
सैलाब नज़र आएँगे
छू कर देखना
उसमें आहत
अनसोई कविताओं के चेहरे
बेनकाब
नज़र आएँगे

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on February 2, 2019 at 6:23pm — 2 Comments

इतनी सी बात थी ....

इतनी सी बात थी ....

एक शब के लिए

तुम्हें माँगा था

अपनी रूह का

पैरहन माना था

मेरी इल्तिज़ा

तुम समझ न सके

तुम ज़िस्म की हदों में

ग़ुम रहे

मेरा समर्पण

तुम्हारी रूह पर

दस्तक देता रहा

लफ्ज़

अहसासों की चौखट पर

दम तोड़ते रहे

रूह का परिंदा

करता भी तो क्या

हार गया

दस्तक देते -देते

उल्फ़त की दहलीज़ पर

तुम

समझ न सके

बे-आवाज़ जज़्बात को

ज़िस्म की हदों में कहाँ

उल्फ़त के अक़्स होते…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 30, 2019 at 6:39pm — 4 Comments

पूर्ण विराम :

पूर्ण विराम :

ओल्ड हो जाता है जब इंसान

ऐज हो जाती है लहूलुहान अपने ही खून के रिश्तों से

होम में जल जाते हैं सारे कोख के रिश्ते

बदल जाता है

एक घर

जब

ढाँचा चार दीवारों का

पुराना ज़िस्म

जब

पुराना सामान हो जाता है

वो

ओल्ड ऐज होम का

सामान हो जाता है

अपनों के हाथों पड़ी खरोंचों के

झुर्रीदार चेहरे

मृत संवेदनाओं की

कंटीली झाड़ियों के साथ

शेष जीवन व्यतीत करने वालों के लिए

अंतिम सोपान हो जाता…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 28, 2019 at 1:30pm — 6 Comments

अनरोई आँखें ...

अनरोई आँखें ...


बहुत रोईं
अनरोई आँखें
मन की गुफाओं में
अनचाहे गुनाहों में
शमा की शुआओं में
अंधेरों की बाहों में
बेशजर राहों में
किसी की दुआओं में
प्यासी निगाहों में
खामोश आहों में
सच
बहुत रोईं
ये कम्बख़्त
अनरोई आँखें

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 26, 2019 at 5:30pm — 4 Comments

तुम्हारी अगुवानी में

तुम्हारी अगुवानी में.... 

ज़रा ठहरो

मुझे पहले

तुम्हारी अगुवानी में

इन कमरों की बंद खिड़कियों को

खोल लेने दो

जब से तुम गए हो

हवा ने भी आना छोड़ दिया

अब तुम आये हो तो

साँसों को

ज़िंदगी का मतलब

समझ आया है

ज़रा ठहरो

पहले मुझे

तुम्हारी अगुवानी में

मन की दीवारों से

सारी उलझनों के जाले

उतार लेने दो

ताकि तुम्हें

बाहर जैसी खुली हवा का

अहसास दिला सकूं

इन घर की दीवारों…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 23, 2019 at 2:06pm — 6 Comments

तीन क्षणिकाएं :

तीन क्षणिकाएं :

बन जाती हैं

बूँदें

घास पर

ओस की

जब कभी

रोता है मयंक

कौमुदी के वियोग में

.............................

एक भारहीन अतीत

हृदय कलश में

पिउनी पुष्प सा

सुवासित होता रहा

मैं

देर तक

समर्पित रही

अधर तटों के

क्षितिज पर

.........................

जीत दम्भ की

प्राचीर को तोड़ते

जब

दोनों हार गए

तो

प्रचीर भी

हार गई

जीत की

स्वीकार पलों…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 21, 2019 at 7:13pm — 4 Comments

मेरे आसमान का चाँद ...

आसमान का चाँद :

शीत रैन की

धवल चांदनी में

बैचैन उदास मन

बैठ जाता है उठकर

करने कुछ बात

आसमान के चाँद से

मैं अकेली

छत की मुंडेर पर

उसकी यादों में

स्वयं को आत्मसात कर

मांगती हूँ अपना प्यार

आसमान के चाँद से

केसरिया चांदनी में

उसका प्यार

लेकर आया था

मेरे पास

मौन चाहतें

उदास प्यास

अदृश्य समर्पण

कहती रही

मौन व्यथा

देर तक

आसमान के चाँद…

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Added by Sushil Sarna on January 18, 2019 at 5:30pm — 3 Comments

३ क्षणिकाएं :

३ क्षणिकाएं :

तृप्त हो गए

चक्षु

पिघला कर

एक पाषाण से बोझ को

हृदय की

स्मृति श्रृंखला से

.......................

मृत्यु

किसी जीवंत स्वप्न का

यथार्थ है

ज़िंदगी

यथार्थ का

आभास है

प्रीत

आभास में निहित

विश्वास है

...............................

कुछ टूटा

कुछ छूटा

प्रीत पथ के

अंतस से

वेदना साकार हुई

बुत बनी आँखों से …

Continue

Added by Sushil Sarna on January 8, 2019 at 2:30pm — 10 Comments

कलम ....

कलम ....

कहाँ

चल सकती है

बिना बैसाखी के

कागज़ पर

कलम

पडी रहती है

निर्जीव सी

किसी के इंतज़ार में

कलमदान में

कलम

लेकिन

ये न हो तो

आसमान की ऊंचाईयों को

ज़मीन नहीं मिलती

शब्दों को पंख नहीं मिलते

सोच को साकार का माध्यम नहीं मिलता

भाव अन-अंकुरित ही रह जाते हैं

यथार्थ में देखा जाए तो

कलम को बैसाखी की नहीं

अपितु

भाव

बिना कलम की बैसाखी के

मृत समान होते…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 7, 2019 at 2:46pm — 2 Comments

विलीन ...


विलीन ...

क्या
मिटते ही काया के
सब कुछ मिट जाता है
शायद नहीं
जीवित रहते हैं
सृष्टि में
चेतना के कण
काया के
मिट जाने के बाद भी
मेरी चेतना
तुम्हारी चेतना से
अवशय मिलेगी
इस सृष्टि में
विलीन हो कर भी
काया के मिट जाने के बाद

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 6, 2019 at 2:09pm — 2 Comments

नए वर्ष की भोर ....

नए वर्ष की भोर  ....

क्षण

दिन, महीने

सब को बांधे

चल दिया

पुराना वर्ष

तम के गहन सागर को पार कर

दूर क्षितिज पर

नव वर्ष के गर्भ से

अंकुरित होते

सूरज की अगवानी करने



अच्छा बीता

बुरा बीता

जैसा भी बीता बीत गया

एक स्वप्न

स्वप्न रहा

एक यथार्थ जीत गया

नए वर्ष की भोर हुई

वर्ष पुराना बीत गया

जीती ख़ुशी

या दर्द जीता

जो भी जीता जीत गया

दर्द पुराना रीत गया

नए वर्ष की…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 4, 2019 at 7:49pm — 7 Comments

एक क्षणिका :

एक क्षणिका :

कल
फिर एक कल होगा
भूख के साथ
छल होगा
आसमान होगा
फुटपाथ होगा
आस गर्भ में

बिलखता
कोई पल
विकल होगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 1, 2019 at 7:32pm — 6 Comments

तीन क्षणिकाएं :

तीन क्षणिकाएं :

दूर होगई

हर बाधा

निजी स्वतंत्रता की

माँ-बाप को

वृद्धाश्रम

भेजकर

...................

रूकावट था

ईश मिलन में

अपनों का

मोह बंधन

देह दाह से

श्वास प्रवाह

मुक्त हुआ

अंश,

अंश में

विलुप्त हुआ

.........................

निकल पड़ी

पाषाणों से लड़ती

कल कल करती

निर्मल जल धार

हर रुकावट को रौंदती

मिलने

अपने सागर से

पाषाणों के

उस…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 28, 2018 at 7:56pm — 6 Comments

विरासत ...

विरासत ...

तुम

देर तक

ठहरे रहे

मेरे संग

बरसात में भीगते हुए

जो सोचा था

वो कह न सकी

जो कहा

वो सोचा न था



लबों की जुम्बिश से

यूँ लगता था जैसे

तुमने भी

मुझसे मिलकर

कुछ कहना था शायद

जो कह न सके

मेरी तरह

देर तक

तुम्हारी नज़रों के

लम्स

ख़ामोश अहसासात का

तर्ज़ुमा करते रहे

बरसात होती रही

अलफ़ाज़

इश्क की इबारत गढ़ते रहे

अपनी अपनी खामोशी में

हम…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 24, 2018 at 7:51pm — 4 Comments

बे-हया निशानी .....

बे-हया निशानी .....

हिज़्र की रातों में

तन्हा बरसातों में

खामोश बातों में

अश्कों की सौगातों में

मेरे नफ़्स में

साँसों के क़फ़स में

चांदनी बन कसमसाती

धड़कनों से बतियाती

सच, ओर कोई नहीं

सिर्फ, तुम ही तुम हो

बारिशों के पानी में

प्यासी कहानी में

नादान जवानी में

लहरों की रवानी में

अंगड़ाई की बेचैनी में

लबों की निशानी में

सच, ओर कोई नहीं

सिर्फ, तुम ही तुम…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 21, 2018 at 5:30pm — 8 Comments

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