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Neelam Upadhyaya's Blog (56)

हाइकू

फिर आ गया

नववर्ष लेकर

नयी उमंग ।

 

नयी सौगात

उम्मीद की किरण

नव वर्ष में ।

 

जन जीवन

चमकें उल्लास में

नव वर्ष में ।

 

यादों का रेला

खामोश समंदर

बहा जो पाता ।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on January 2, 2018 at 2:44pm — 6 Comments

कुछ हाइकू

 

सूखी सी शाख

बैठा पंछी अकेला

पतझड़ में ।

 

नयी नवेली

लाजवंती वधू सी

सिमटी धूप ।

 

सूरज जब

अलसाया, चल पड़ा

क्षितिज पार ।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on December 21, 2017 at 2:34pm — 9 Comments

हाइकु

ठिठुरी अम्मा
धूप तो लाजवंती
दुपहरी में ।

कच्ची सी उम्र
नौकरी खँगालता
खाली है झोली

मान न मान
जिंदगी के दो रंग
जीना मरना


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on December 14, 2017 at 4:00pm — 8 Comments

रजिस्ट्री

"चाचा, ईहाँ हमनीके बानी सन । तूँ कतहीं अऊरी जा के सूत जा ।"



नन्द किशोर जी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । बड़े भाई की जो लड़कियां उनके कंधों पर खेल कूद कर बड़ी हुयी आज उन्होंने ही उन्हें घर से बाहर जाने के लिए कह दिया, वो भी ऐसे मौके पर जब बड़े भाई की तेरहवीं का सारा काम उन्होने आज ही निपटाया था ।



नन्द किशोर जी अपने पिता के एकलौते पुत्र थे और श्रीनाथ जी, जिनकी आज तेरहवी थी, उनके ताऊजी के पुत्र थे। समय के साथ परिवार बड़ा हुआ तो संयुक्त परिवार का भी बटवारा हो गया । बटवारे के… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on December 12, 2017 at 3:48pm — 2 Comments

भाग्य

एक कार आकर रज़ाई बनाने वाले की दुकान के आगे खड़ी हुयी । कार के पिछले दरवाजे से साहबनुमा व्यक्ति बाहर निकला । दुकान वाले की बांछें खिल गईं । भला कौन इस तरह उसकी दुकान पर इतनी बड़ी गाड़ी लेकर आता है ।

दुकानदार से उन्मुख होते हुए साहब ने छोटे साइज़ के रज़ाई, गद्दा, तकिया और चद्दर दिखने को कहा । दुकानदार ने सोचा साहब को अपने छोटे बच्चे के लिए ये सब चाहिए, सो बड़े उत्साह से चीजें दिखने लगा । पर साहब ने बताया कि उन्हें ये सब समान अपने "डौगी" के लिए लेना है ।…

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Added by Neelam Upadhyaya on December 7, 2017 at 10:30am — 8 Comments

लघु कथा - पगडंडी

काले कोलतार की चमक लिए पक्की सड़क । वहीं बगल में थोड़ी निचाई पर पक्की सड़क के साथ-साथ ही चलती एक पगडंडी ।

सड़क पर लोगों की खूब आमोदरफ्त रहती, गाड़ियों का आवागमन रहता । अपना मान बढ़ता देख सड़क इतराती रहती । एक दिन उसने पगडंडी से कहा – "मेरे साथ चल कर क्या तू मेरी बराबरी कर लेगी ।  कहाँ मैं चमकती हुयी चिकनी सड़क और कहाँ तू कंकड़-पत्थर से अटी हुयी बदसूरत सी पगडंडी । महंगी से महंगी और बड़ी से बड़ी गाडियाँ मेरे ऊपर से आराम से गुजर जाती हैं । और तू...हुंह... ।" क्यों अपना समय बेकार करती है । यहीं रुक…

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Added by Neelam Upadhyaya on March 27, 2017 at 2:00pm — 3 Comments

भाड़ा

 

"साहेब, कोई पुराना चद्दर हो तो दे दीजिये । बहुत ठंढा गिरने लगा है । कोई पुराना चद्दर दे दीजिये ।"

 

यूं तो वर्किंग डे पर रात के किसी भी आयोजनों में जाने का प्रोग्राम कम ही बनता है । लेकिन फिर भी कभी-कभी कुछ ऐसे मौके भी आ ही जाते हैं जब इस तरह के किसी आयोजन में जाना पड़ जाता है । ऐसे ही एक आयोजन को अटेण्ड कर वापस आते-आते रात के साढ़े ग्यारह बज गए । गोल्फ कोर्स मेट्रो स्टेशन से घर तक जाने के लिए आटो…

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Added by Neelam Upadhyaya on March 14, 2017 at 4:23pm — 4 Comments

हाइकू

पहाड़ पर

चढ़ना भी पहाड़

सोचा ही नहीं

 

 

स्नेह आशीष

से भरा रहा सदा   

माँ का आंचल

 

xxxxx

 

 

महकी हवा

वासंती हैं नजारे

फागुन आया ।

 

 

मादक टेसू  

रंग गई चूनर

फागुन आया ।…

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Added by Neelam Upadhyaya on February 22, 2017 at 4:48pm — 2 Comments

कुछ हाइकू

सहमी सर्दी

कारागृह में अब

फागुन आया

 

सड़क संग

चलती ही रहती

पगडंडी भी

 

टंगे रहते

सोने के झूमर से

अमलतास

 …

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Added by Neelam Upadhyaya on February 16, 2017 at 4:00pm — 4 Comments

कमली -- लघु कथा

सुबह-सुबह कॉलेज जाने की तैयारी कर ही रही थी कि ऊपर वाली चाची की सीढ़ियों से उतरने की धमक के साथ ही उनकी आवाज सुनाई दी – "ए नीलम, सुनलू ह· कि ना, कमली म·र गइल ।" मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया पर संस्कारगत  आदत के मारे कुछ जतला नहीं पायी । इतना तो समझ आ ही गया कि अब आज का पहला पीरियड अटेण्ड नहीं कर पाऊँगी । अब चाची आ ही गयी हैं तो थोड़ा बैठना ही ठीक होगा और मैंने उन्हें बैठा कर झट पानी का ग्लास पकड़ाया ।…

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Added by Neelam Upadhyaya on February 15, 2017 at 3:30pm — 10 Comments

कुछ हाइकू

मन की बात
करते, कभी जाना
मन की बात

समझौते हैं
समझ का फेर, जो
समझ सको


रिश्ते नाते तो
ज्यों पतंग की डोर
उलझे जाते

मौलिक एवं अप्रकाशित.

Added by Neelam Upadhyaya on February 6, 2017 at 5:02pm — 3 Comments

कुछ हाइकू

सिमटी रही

दो रोटियों के बीच
पूरी जिंदगी

ढूँढते रहे
जिंदगी भर सार
पर निस्सार

किसका बस
आज है कल नहीं
जिंदगी का क्या

आदि से अंत
बने अनंत, दूर
क्षितिज पर
 
 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on January 31, 2017 at 4:00pm — 6 Comments

कुछ हाइकू

व्यस्त है हवा
रुक जाए चिंगारी
दावानल से

बीमार पिता
बेटों का झगड़ना
इतना खर्च!

महानगर
भूल गये अपने
पुराने दिन

भूख ग़रीबी
क्या जाने, महलों में
पैदा हुआ जो.

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on January 19, 2017 at 4:57pm — 8 Comments

कुछ हाइकू

शामिल हुआ

मौसम की दौड़ में  

नव वर्ष भी।

 

चंचल नदी

उछली कहीं गिरी 

बहती चली।

 

जीवन सांझ

यादों में डूबा मन

खुला झरोखा।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on January 13, 2017 at 1:00pm — 11 Comments

कुछ हाइकू

जीवन का क्या 

कब झड़े ज्यूँ सूखे

पेड़ के पत्ते

माँ का दुलार

कितना भी हो, लगे

ओस की बूँद

मन बावरा

कभी जो मान जाता

मन की बात

नदी डालती

भले ही मीठा जल

सागर खारा

.

(मौलिक-अप्रकाशित)

Added by Neelam Upadhyaya on December 7, 2013 at 6:00pm — 6 Comments

कुछ हाइकू

चाँद से दूर
चाँद का एहसास
चाँद की आस
 
चाँद पर ही
बनाते आशियाना
घर बसाते
 
चाँद से कहें…
Continue

Added by Neelam Upadhyaya on September 26, 2012 at 10:30am — 2 Comments

कुछ हाइकू

 
मन भ्रमर
उड़ता जाता, पर
पंख हैं कहाँ
 
 
 
सुख हैं कम
अनगिनत दुःख
जीना तो है ही
 
 
 
डूबता सूर्य
चूमता ज्यों धरा को
क्षित्तिज पर
 
 
 
 
सड़क पर
चमचमाती धूप
ज्यों…
Continue

Added by Neelam Upadhyaya on July 6, 2012 at 10:00am — 6 Comments

लघु कथा - बैकवर्ड

 
कैलाश एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सीईओ हैं सो ऑफिस में बहुत सारी जिम्मेदारियां उन्हें निभानी पड़ती है.
सुबह दफ्तर पहुँचने के बाद दिन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता.  लेकिन इन सब के बीच भी दूर गाँव रह
रहे माता-पिता से फ़ोन पर बात कर के उनका हाल चाल लेना नहीं भूलते.  रोज रात को सोने से पहले  उनसे
बात करने का उन्होंने नियम बना लिया था.
कैलाश जी के दफ्तर के हेड ऑफिस से आये हुए चेयरमैन के सम्मान में पार्टी का…
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Added by Neelam Upadhyaya on June 29, 2012 at 10:00am — 1 Comment

इज्जत

वो एक बड़ा अफसर है. अफसर है तो जाहिर सी बात है शहर में रहता है. पिता एक साधारण से किसान है. खेती करते हैं, सो गाँव में रहते है. अफसर बेटा अपने परिवार में बहुत व्यस्त है इसलिए गाँव जाकर पिता का हाल-समाचार लेने का समय नहीं है. बेटे से मिले बहुत दिन हो गए तो पिता ने विचार किया शहर जाकर खुद ही उससे मिल आया जाये. शहर में बेटे के रहन सहन को देख कर पिता बहुत खुश हुवे. अगले दिन गाँव वापस आने का विचार था लेकिन पोते-पोती की जिद से और रुकना पड़ा. एक - दो दिन तो ठीक ठाक बीत गए. किन्तु फिर बेटे के अफसरी…

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Added by Neelam Upadhyaya on June 20, 2012 at 10:00am — 11 Comments

लघु कथा - सूचना तकनीक

जतिन जी ने बहुत ही लाड़-प्यार से अपने दो बेटों और एक बेटी को पाला. तीनो को बराबर उच्च शिक्षा दिलवाई, दोनों बेटे इंजिनियर और बेटी डॉक्टर बन गयी. उचित और उपयुक्त समय पर तीनो बच्चों का विवाह भी कर दिया. लड़की अपने पति के साथ विदेश चली गयी. लड़के भी बड़े बड़े शहरों में बड़ी कंपनियों में नौकरियां पाकर अपने-अपने परिवार को साथ लेकर वहीँ रहने लग गए. जतिन जी स्कूल की नौकरी पूरी करके सेवा निवृत्त हो गए और अपनी पत्नी के साथ अपने गाँव के घर में अकेले रह गए.



जब बच्चे छोटे थे तो उनके साथ बिताने…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 15, 2012 at 10:00am — 9 Comments

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