For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रविकर's Blog (76)

रविकर कैसा मोह, नहीं दे पाऊँ झिड़की

मन की खिड़की पर जमा, छली कुल-जमा एक |
तीनों पाली में छले, बरबस रस्ता छेंक |


बरबस रस्ता छेंक, आह-उच्छ्वास छोड़ती |
पाऊँ कष्ट अनेक, व्यस्त हर कष्ट जोड़ती |


रविकर कैसा मोह, नहीं दे पाऊँ झिड़की |
चिदानन्द सन्दोह, बंद कर मन की खिड़की ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 5, 2013 at 9:33am — 9 Comments

रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया-

बखियाने से साड़ियाँ, बने टिकाऊ माल |
लेकिन खोंचा मार के, कर दे दुष्ट बवाल |

कर दे दुष्ट बवाल, भूख नहिं देखे जूठा |
सोवे टूटी खाट, नींद का नियम अनूठा |

खोंच नींद तन भूख, कभी भी देगा लतिया |
रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 4, 2013 at 4:25pm — 7 Comments

हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे-

ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |


पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |


तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 2, 2013 at 6:46pm — 15 Comments

रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की-

गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दोहरे पर, व्यवहारिक भरपूर |


व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |


करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जैसे ढलती |
रोज करे फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||

मौलिक/अप्रकाशित

Added by रविकर on September 2, 2013 at 10:00am — 6 Comments

चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये -

माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |


आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |


रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||

*ईश्वर ना करे -
आदरणीय पाठक गण-कृपया नौज के उपयोग पर कुछ कहें-

मौलिक/अप्रकाशित-

Added by रविकर on September 1, 2013 at 9:00pm — 3 Comments

अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस-

टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |


खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |


नाबालिग को छूट, बढ़ाए विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, अगर यूँ टला फैसला ||

.

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on August 31, 2013 at 6:30pm — 11 Comments

चोरों की बारात, बजाये रविकर वंशी-

वंशीधर का मोहना, राधा-मुद्रा मस्त । 

नाचे नौ मन तेल बिन, किन्तु नागरिक त्रस्त । 

 

किन्तु नागरिक त्रस्त, मगन मन मोहन चुप्पा । 

पाई रहा बटोर, धकेले लेकिन कुप्पा । 

 

बीते बाइस साल, हुई मुद्रा विध्वंशी । 

चोरों की बारात, बजाये रविकर वंशी ॥ 

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on August 29, 2013 at 8:30am — 12 Comments

हाकी काकी सी सरस, क्रिकेट बुआ हमार-

मौलिक / अप्रकाशित

हाकी काकी सी सरस, क्रिकेट बुआ हमार |
राखी भैया-द्वीज पर, पा विशेष उपहार |


पा विशेष उपहार, हार हीरों का पाई |
जाए हीरो हार, करोड़ों किन्तु कमाई |


काकी का कर्तव्य, करे नित सेवा माँ की |
लेडी मेवा खाय, खूब चीयर हा हा की ||

Added by रविकर on August 27, 2013 at 12:00pm — 6 Comments

उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े-

मौलिक / अप्रकाशित

"पक्के-बाड़े" में पिले , जबसे सु-वर तमाम ।

मल-मलबा से माल तक, खाते सुबहो-शाम ।

खाते सुबहो-शाम, गगन-जल-भूमि सम्पदा ।

करें मौज अविराम, इधर बढ़ रही आपदा ।

उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े ।

"मत" हिम्मत से मार, शुद्ध कर "पक्के-बाड़े" ।।

Added by रविकर on August 22, 2013 at 8:58am — 6 Comments

हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े -

मौलिक / अप्रकाशित

उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।

आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।


गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए ।

डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए ।

बहरा मोहन मूक, नहीं सुन पाए दुखड़े ।

हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥

Added by रविकर on August 20, 2013 at 1:42pm — 5 Comments

सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी--रविकर

मौलिक / अप्रकाशित

गुड्डी-गुड़ी गुमान में, ऊँची भरे उड़ान |
पेंच लड़ाने लग पड़ी, दुष्फल से अन्जान |


दुष्फल से अन्जान, जान जोखिम में डाली |
आये झँझावात, काट दे माँझा-माली |


लग्गी लेकर दौड़, लगाने लगे उजड्डी |
सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी ||

Added by रविकर on August 17, 2013 at 2:43pm — 5 Comments

पर परिवर्तन नहीं सुहाए -

नकारात्मक ग्रोथ से, होवे बेडा गर्क । 

सकल घरेलू मस्तियाँ, इन्हें पड़े नहिं फर्क-

आम जिंदगी नर्क बनाए  । 

पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥ 

रोटी थाली की छिने, चाहे रोजी जाय । 

छद्म धर्म निरपेक्षता, मौला-ना मन भाय -

फिर भी फिर सरकार बनाये । 

पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥ 

पाक बांग्लादेश से, दुश्मन की घुसपैठ । 

सीमा में घुस चाइना, रहा रोज ही ऐंठ -

अन्दर वह सीमा सरकाए । 

पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥   

चला…

Continue

Added by रविकर on July 14, 2013 at 8:00pm — 4 Comments

बोध गया / प्रेस कांफ्रेंस

हम ले दे के चार मन, दिग्गी मम्मी पूत ।

हमले रो के रोक लें, पर कैसे यमदूत ।

पर कैसे यमदूत, नस्ल कुत्ते की इनकी ।

मार काट का पाठ, पढ़े ये कातिल सनकी ।

मन्दिर मस्जिद हाट, पहुँच जाते हैं बम ले ।

पुलिस जोहती बाट,  भाग जाते कर हमले ॥

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on July 11, 2013 at 11:01am — 12 Comments

पाये अध्यादेश से, भोजन जन गन देश -

पाये अध्यादेश से, भोजन जन गन देश |
चारो पाये तंत्र के, दिये हमें पर क्लेश |


दिये हमें पर क्लेश, दिये टिमटिमा रहे हैं |
हुआ तैल्य नि:शेष, काल ने प्राण गहे हैं |


है आश्वासन झूठ, मूठ हल की जब आये |
पाये हल हर हाल, जियें मानव चौपाये ||

मौलिक/अप्रकाशित

Added by रविकर on July 5, 2013 at 9:01pm — 4 Comments

बिपदा बढ़ती बहु-गुणा, बा-शिंदे बेहाल -

 बिपदा बढ़ती बहु-गुणा, बा-शिंदे बेहाल |
बस-बेबस बहते बहे, बज-बंशी भूपाल |  
बज बंशी भूपाल, बहर बंदिशें सुरीली |
मनमोहन मदमस्त, मगन मीरा शर्मीली |
चले अचल छल-चाल, भयंकर नदी बिगडती  |   
चारो तरफ बवाल, हमारी बिपदा बढ़ती ||  

मौलिक / अप्रकाशित
 

Added by रविकर on July 4, 2013 at 11:00pm — 7 Comments

धिक्कारो ऐसा नेता-

हो जाती कुदरत खफा, देती मिटा वजूद ।

उलथ उत्तराखंड ज्यों, होय नेस्तनाबूद ।।

क्या मूरख मानव चेता ।।

विस्फोटों से तोड़ते, ऊंचे खड़े पहाड़ ।

हाड़ कुचलते शैलखंड, अपना मौका ताड़ ।।

ऐसे ही बदला लेता ।।

सरिता-झरना का करे, मनुज मार्ग अवरुद्ध ।

कुछ वर्षों में ही मगर, कर दे वर्षा शुद्ध ।।

जीव-जंतु घर बार समेता ॥

विजय होय बहु-गुणों से, किन्तु चेतना सून।

मार जाय लाखों मनुज, ज्यों तेरह का जून ॥

धिक्कारो ऐसा…

Continue

Added by रविकर on July 2, 2013 at 11:11am — 11 Comments

विपत-प्रबंधन ढील, बहे घर-ग्राम-कबीला-

थोथी-थूल दलील दे, भाँजे लापरवाह |
लीला लाखों जिंदगी, कातिल है नरनाह |
कातिल है नरनाह, दिखाए दुर्गति-लीला |
विपत-प्रबंधन ढील, बहे घर-ग्राम-कबीला |
धरे हाथ पर हाथ, मजे में बाँचे पोथी |
छी छी सत्ता स्वार्थ, थुड़ी थू थोथा-थोथी ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on July 1, 2013 at 7:33pm — 12 Comments

होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध-

होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।

पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।

बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।

रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ।

अंधाधुंध विकास, खड़ी प्रायश्चित रोवे ।

भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।

त्रिसोता = गंगा जी

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on June 29, 2013 at 10:50am — 9 Comments

नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल

मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।

आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥

आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |

अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥

घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।

सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥

नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |

ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on June 28, 2013 at 4:44pm — 8 Comments

धारिणि धारि महाकलिका कर धारण खप्पर मारत यूँ

सवैया -

(1)

बाँध बनावत हैं सरकार वहाँ पर मूर्ति हटावत त्यूँ |

गान्धि सरोवर हिंसक हो मलबा-जल ढेर बहावत क्यूँ |

शंकर नेत्र खुला तिसरा करते धरती पर तांडव ज्यूँ |

धारिणि धारि महाकलिका कर धारण खप्पर मारत यूँ |

(2)

सवैया -

नष्ट हुवा घर-ग्राम कुटी जब क्रोध करे दल बादल देवा |



कष्ट बढ़ा गतिमान नदी करती कलिका किलकार कलेवा |



दूर रहे सरकार जहाँ बस खाय रही कुरसी-कर-मेवा |



हिम्मत से तब फौज…

Continue

Added by रविकर on June 28, 2013 at 9:30am — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service