गुणीजनों के सुझाव के हेतु।
काफ़िया=आ
रदीफ़= *मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर*
1222×4
खता मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर,
सजा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना,
वफ़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
नशा ये देश-भक्ति का, रखे चौड़ी सदा छाती,
अना मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
रहे चोटी खुली मेरी, वतन में भूख है जब तक,
शिखा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 22, 2017 at 11:11am                            —
                                                            16 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      ग़ज़ल (दीपावली)
212×4
जगमगाते दियों से मही खिल उठी,
शह्र हो गाँव हो हर गली खिल उठी।
लायी खुशियाँ ये दीपावली झोली भर,
आज चेह्रों पे सब के हँसी खिल उठी।
आप देखो जिधर नव उमंगें उधर,
हर महल खिल उठा झोंपड़ी खिल उठी।
सुर्खियाँ सब के गालों पे ऐसी लगे,
कुमकुमे हँस दिये रोशनी खिल उठी।
ओ बी' ओ को बधाई 'नमन' पर्व की
मंच पर आज दीपावली खिल उठी।
मौलिक व अप्रकाशित                                          
                    
                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 19, 2017 at 9:42am                            —
                                                            8 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      1222 1222 122
तिजारत हुक्मरानी हो गई है।
कहीं गुम शादमानी हो गई है।।
न अब गांधी न शास्त्री से हैं रहबर।
शहादत उनकी फ़ानी हो गई है।।
तेरा तो हुश्न ही दुश्मन है नारी।
कठिन इज्जत बचानी हो गई है।।
लगी जब बोलने बिटिया हमारी।
वो घर में सबकी नानी हो गई है।।
हमीं से चार लेकर एक दे कर।
'नमन' सरकार दानी हो गई है।।
मौलिक व अप्रकाशित                                          
                    
                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 2, 2017 at 4:00pm                            —
                                                            8 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      बहर - 2112
काफ़िया - आम; रदीफ़ - चले
जाम चले
काम चले।
मौत लिये
आम चले।
खुद का कफ़न
थाम चले।
सांसें आठों
याम चले।
सुब्ह हो या
शाम चले।
लोग अवध
धाम चले।
मन में बसा
राम चले।
पैसा हो तो
नाम चले।
जग में 'नमन'
दाम चले
मौलिक व अप्रकाशित                                          
                    
                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 24, 2017 at 3:30pm                            —
                                                            8 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      भाषा बड़ी है प्यारी जग में अनोखी हिन्दी,
 चन्दा के जैसे सोहे नभ में निराली हिन्दी।
 
 पहचान हमको देती सबसे अलग ये जग में,
 मीठी जगत में सबसे रस की पिटारी हिन्दी।
 
 हर श्वास में ये बसती हर आह से ये निकले,
 बन के लहू ये बहती रग में ये प्यारी हिन्दी।
 
 इस देश में है भाषा मजहब अनेकों प्रचलित,
 धुन एकता की डाले सब में सुहानी हिन्दी।
 
 शोभा हमारी इससे करते 'नमन' हम इसको,
 सबसे रहे ये ऊँची मन में हमारी हिन्दी।
 
 
 आज हिन्दी दिवस…
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 14, 2017 at 11:30am                            —
                                                            65 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      "आज़ादी का गीत"
(2212 122 अंतरा 22×4 // 22×3)
(तर्ज़- दिल में तुझे बिठा के)
भारत तु जग से न्यारा, सब से तु है दुलारा,
मस्तक तुझे झुकाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।
सन सैंतालिस मास अगस्त था, तारिख पन्द्रह प्यारी,
आज़ादी जब हमें मिली थी, भोर अज़ब वो न्यारी।
चारों तरफ खुशी थी, छायी हुई हँसी थी,
ये पर्व हम मनाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।
आज़ादी के नभ का यारों, मंजर था सतरंगा,
उतर गया था जैक वो काला, लहराया था तिरंगा।
भारत की जय थी गूँजी, अनमोल…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on August 15, 2017 at 1:29pm                            —
                                                            5 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      "कृष्णावतार"
रास छंद। 8,8,6 मात्रा पर यति। अंत 112 से आवश्यक और 2-2 पंक्ति तुकांत आवश्यक।)
हाथों में थी, मात पिता के, सांकलियाँ।
घोर घटा में, कड़क रही थी, बीजलियाँ
हाथ हाथ को, भी ना सूझे, तम गहरा।
दरवाजों पर, लटके ताले, था पहरा।।
यमुना मैया, भी ऐसे में, उफन पड़ी।
विपदाओं की, एक साथ में, घोर घड़ी।
मास भाद्रपद, कृष्ण पक्ष की, तिथि अठिया।
कारा-गृह में, जन्म लिया था, मझ रतिया।।
घोर परीक्षा, पहले लेते, साँवरिया।
जग को करते,…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on August 14, 2017 at 11:35am                            —
                                                            5 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      "राखी" (चौपइया छंद)
पर्वों में न्यारी, राखी प्यारी,
सावन बीतत आई।
करके तैयारी, बहन दुलारी,
घर आँगन महकाई।
पकवान पकाए, फूल सजाए,
भेंट अनेकों लाई।
वीरा जब आया, वो बँधवाया,
राखी थाल सजाई।।
मन मोद मनाए, बलि बलि जाए,
नव उमंग है छाई।
भाई मन भाए, गीत सुनाए,
खुशियों में बौराई।
डाले गलबैयाँ, लेत बलैयाँ,
छोटी बहन लडाई।
भाल पे बिंदिया, ओढ़ चुनरिया,
जीजी मंगल गाई।।
जब जीवन चहका, बचपन महका,
तुम थी तब…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on August 7, 2017 at 6:21pm                            —
                                                            6 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      ग़ज़ल (मधुर मास सावन लगा है)
बहर:- 122 122 122
मधुर मास सावन लगा है,
दिवस सोम लगते पड़ा है।
महादेव को सब रिझाएँ,
ये संयोग अद्भुत हुआ है।
तेरा रूप सबसे निराला,
गले सर्प माथे जटा है।
कुसुम बिल्व चन्दन चढ़ाएँ,
ये शुभ फल का अवसर बना है।
शिवाले में अभिषेक जल से,
करें भक्त मोहक छटा है।
करें कावड़ें तुझको अर्पित,
सभी पुण्य पाते महा है।
करो पूर्ण आशा मेरी शिव,
'नमन' हाथ जोड़े खड़ा…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 10, 2017 at 12:00pm                            —
                                                            10 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      221 1221 1221 122
रमजान गया आई नज़र ईद मुबारक,
खुशियों का ये दे सबको असर ईद मुबारक।
घुल आज फ़िज़ा में हैं गये रंग नये से,
कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक।
पाँवों से ले सर तक है धवल आज नज़ारा,
दे कर के दुआ कहता है हर ईद मुबारक।
सब भेद भुला ईद गले लग के मनायें,
ये पर्व रहे जग में अमर ईद मुबारक।
ये ईद है त्योहार मिलापों का अनोखा,
दूँ सब को 'नमन' आज मैं कर ईद मुबारक।
मौलिक व अप्रकाशित                                          
                    
                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on June 26, 2017 at 10:38am                            —
                                                            15 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      आओ सब मिल कर संकल्प करें।
चैत्र शुक्ल नवमी है आज, नूतन कुछ तो करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
मर्यादा में रहना सीखें, सागर से बन कर हम सब।
मर्यादा में रहना सिखलाएं, तोड़े कोई इसको जब।
मर्यादा के स्वामी की, धारण तो यह सीख करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
मात पिता गुरु और बड़ों की, सेवा का ही मन हो।
भIई मित्र और सब के, लिए समर्पित ये तन हो।
समदर्शी सा बन कर हम, सबसे व्यवहार करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
उत्तम आदर्शों को हम,…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 5, 2017 at 11:49am                            —
                                                            3 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      बह्र-- 2212 2212 2212 2212
जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा,
राहों में आए कष्ट जो सहते चलो तुम सर्वदा।
अनजान सी राहें तेरी मंजिल कहीं दिखती नहीं,
काँटों भरी इस राह में हँसते चलो तुम सर्वदा।
बीते हुए से सीख लो आयेगा उस को थाम लो,
मुड़ के कभी देखो नहीं बढ़ते चलो तुम सर्वदा।
बहता निरंतर जो रहे गंगा सा निर्मल वो रहे,
जीवन में ठहरो मत कभी बहते चलो तुम सर्वदा।
मासूम कितने रो रहे अबला यहाँ नित लुट रही,
दुखियों के मन…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 3, 2017 at 7:24pm                            —
                                                            14 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      ग़ज़ल (इंसानियत)
2212 2212 2212 2212
इंसान के खूँ की नहीं प्यासी कभी इंसानियत,
फिर भूल तुम जाते हो क्यों अक्सर यही इंसानियत।
जो जिंदगी तुम दे नहीं सकते उसे लेते हो क्यों,
पर खून बहता ही रहा रोती रही इंसानियत।
जब गोलियाँ बरसा जमीं को लाल खूँ से तुम करो,
संसार में आतंक को ना मानती इंसानियत।
हे जालिमों जब जुल्म तुम अबलों पे हरदम ही करो,
मजलूम की आहों में दम को तोड़ती इंसानियत।
थक जाओगे तुम जुल्म कर जिंदा रहेगी ये…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 21, 2017 at 12:33pm                            —
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                      "होली" सायलीछंद
शिल्प- 1 2 3 2 1 शब्द
(1)
होली
का त्योहार
जीवन में लाया
रंगों की
बौछार।
(2)
होली
में जलते
अत्याचार, कपट, छल
निष्पाप भक्त
बचते।
(3)
होली
लाई रंग
हों सभी लाल
खेलें पलास
संग।
(4)
होली
देती छेद
ऊँच नीच के
मन से
भेद।
(5)
सत्रह
की होली
भाजपा की तूती
देश…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 12, 2017 at 1:22pm                            —
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                      1222 1222 1222 1222
चढ़ी है एक धुन मन में पढ़ेंगे जो भी हो जाए,
बड़े अब इस जहाँ में हम बनेंगे जो भी हो जाए।
कोई कमजोर ना समझे नहीं हम कम किसी से हैं,
सफलता की बुलन्दी पे चढ़ेंगे जो भी हो जाए।
हमारे दरमियाँ जो भेद कुदरत का बड़ा गहरा,
बराबर उसको करने में लगेंगे जो भी हो जाए।
बहुत देखा हिक़ारत से न देखो और अब आगे,
नहीं हक जो मिला लेके रहेंगे जो भी हो जाए।
जमीं हो आसमां चाहे समंदर हो या पर्वत हो,
मिला कदमों को तुम से हम…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 8, 2017 at 10:30am                            —
                                                            10 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      ग़ज़ल (प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम)
2122 1212 22,
प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम,
जान ले लो न पर सताओ तुम।
पास आ के जरा सा बैठो तो,
फिर गले चाहे ना लगाओ तुम।
दिल को समझाना है बड़ा मुश्किल,
बेरुखी और ना दिखाओ तुम।
गिर गया हूँ मैं खुद की नज़रों से,
और नज़रों से मत गिराओ तुम।
चोट खाई बहुत जमाने से,
यूँ बहाने न फिर बनाओ तुम।
मिल सका वो न जिस को भी चाहा,
अनबुझी प्यास को बुझाओ…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 14, 2017 at 4:30pm                            —
                                                            13 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      "शारदा वंदना"
मा वास बना कर मेरे हृदय में
श्वेत पद्म सा निर्मल कर दो ।
शुभ्र ज्योत्स्ना छिटका उसमें
अपने जैसा उज्ज्वल कर दो ।।
हे शुभ्र रूपिणी शुभ्र भाव से
मेरा हृदय पटल भर दो ।
हे वीणावादिनी स्वर लहरी से
मेरा कण्ठ स्वरिल कर दो ।।
मन उपवन में हे मा मेरे
कविता पुष्प प्रस्फुटित हों ।
नव भावों के मा मेरे मन में
अंकुर सदा ही अंकुरित हों ।।
जनहित की पावन सौरभ
मेरे काव्य कुसुम में भर दो ।
करूँ कल्याण…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 1, 2017 at 11:42am                            —
                                                            3 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      ग़ज़ल (जनवरी के मास की)
2122 2122 2122 212
जनवरी के मास की छब्बीस तारिख आज है,
आज दिन भारत बना गणतन्त्र सबको नाज़ है।
ईशवीं उन्नीस सौ पंचास की थी शुभ घड़ी,
तब से गूँजी देश में गणतन्त्र की आवाज़ है।
आज के दिन देश का लागू हुआ था संविधान,
है टिका जनतन्त्र इस पे ये हमारी लाज है।
सब रहें आज़ाद हो रोजी कमाएँ खुल यहाँ,
हक़ बराबर का हमारी एकता का राज है।
राजपथ पर आज दिन जब फ़ौज़ की देखे झलक,
छातियाँ दुश्मन की दहले उसकी…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 26, 2017 at 10:00am                            —
                                                            3 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      नेताजी (मुक्तक - बहर 2122×4)
आज तेइस जनवरी है याद नेताजी की कर लें,
हिन्द की आज़ाद सैना की दिलों में याद भर लें,
खून तुम मुझको अगर दो तो मैं आज़ादी तुम्हें दूँ,
इस अमर ललकार को सब हिन्दवासी उर में धर लें।
मौलिक व अप्रकाशित                                          
                    
                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 23, 2017 at 1:30pm                            —
                                                            7 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      बहर 2212 2212 की रचना।
हिन्दी हमारी जान है,
ये देश की पहचान है।
है मात जिसकी संस्कृत,
मा शारदा का दान है।
साखी कबीरा की यही,
केशव की न्यारी शान है।
तुलसी की रग रग में बसी,
रसखान की ये तान है।
ये सूर के वात्सल्य में,
मीरा का इसमें गान है।
सब छंद, उपमा और रस
की ये हमारी खान है।
उपयोग में लायें इसे,
अमृत का ये तो पान है।
ये मातृभाषा विश्व में,
सच्चा हमारा मान…                      
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                                                        Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 10, 2017 at 6:24pm                            —
                                                            7 Comments