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Sanjiv verma 'salil''s Blog (225)

समीक्षात्मक आलेख : डॉ. महेंद्र भटनागर के गीतों में अलंकारिक सौंदर्य

समीक्षात्मक आलेख:



डॉ. महेंद्र भटनागर के गीतों में अलंकारिक सौंदर्य







रचनाकार:आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'



जगवाणी हिंदी को माँ वीणापाणी के सितार के तारों से झंकृत विविध रागों से उद्भूत सांस्कृत छांदस विरासत से समृद्ध होने का अनूठा सौभाग्य मिला है. संस्कृत साहित्य की सरस विरासत को हिंदी ने न केवल आत्मसात किया अपितु पल्लवित-पुष्पित भी किया. हिंदी सहित्योद्यान के गीत-वृक्ष पर झूमते-झूलते सुन्दर-सुरभिमय अगणित पुष्पों में अपनी पृथक पहचान और ख्याति से संपन्न डॉ.… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 22, 2010 at 9:30am — No Comments

त्रिपदिक कविता : प्रात की बात -----संजीव 'सलिल'

त्रिपदिक कविता :



प्रात की बात



संजीव 'सलिल'

*

सूर्य रश्मियाँ

अलस सवेरे आ

नर्तित हुईं.

*

शयन कक्ष

आलोकित कर वे

कहतीं- 'जागो'.

*

कुसुम कली

लाई है परिमल

तुम क्यों सोये?

*

हूँ अवाक मैं

सृष्टि नई लगती

अब मुझको.

*

ताक-झाँक से

कुछ आह्ट हुई,

चाय आ गयी.

*

चुस्की लेकर

ख़बर चटपटी

पढ़ूँ, कहाँ-क्या?

*

अघट घटा

या अनहोनी हुई?

बासी… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 22, 2010 at 8:00am — 2 Comments

मुक्तिका सत्य संजीव 'सलिल'

सत्य



संजीव 'सलिल'

*

सत्य- कहता नहीं, सत्य- सुनता नहीं?

सरफिरा है मनुज, सत्य- गुनता नहीं..

*

ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी.

सिर्फ कहता रहा, सत्य- चुनता नहीं..

*

आह पर वाह की, किन्तु करता नहीं.

दाना नादान है, सत्य- धुनता नहीं..

*

चरखा-कोशिश परिश्रम रुई साथ ले-

कातता है समय, सत्य- बुनता नहीं..

*

नष्ट पल में हुआ, भ्रष्ट भी कर गया.

कष्ट देता असत, सत्य- घुनता नहीं..

*

प्यास हर आस दे, त्रास सहकर… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 17, 2010 at 10:30pm — 2 Comments

दोहा सलिला: नैन अबोले बोलते..... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:



नैन अबोले बोलते.....



संजीव 'सलिल'

*

*

नैन अबोले बोलते, नैन समझते बात.

नैन राज सब खोलते, कैसी बीती रात.

*

नैन नैन से मिल झुके, उठे लड़े झुक मौन.

क्या अनकहनी कह गए, कहे-बताये कौन?.

*

नैन नैन में बस हुलस, नैन चुराते नैन.

नैन नैन को चुभ रहे, नैन बन गए बैन..

*

नैन बने दर्पण कभी, नैन नैन का बिम्ब.

नैन अदेखे देखते, नैनों का प्रतिबिम्ब..

*

गहरे नीले नैन क्यों, उषा गाल सम लाल?

नेह नर्मदा… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 17, 2010 at 6:30pm — 4 Comments

अभियंता दिवस पर मुक्तिका: हम अभियंता --अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'

अभियंता दिवस पर मुक्तिका:



हम अभियंता



अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'

*

कंकर को शंकर करते हैं हम अभियंता.

पग-पग चल मंजिल वरते हैं हम अभियंता..



पग तल रौंदे जाते हैं जो माटी-पत्थर.

उनसे ताजमहल गढ़ते हैं हम अभियंता..



मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, मठ, आश्रम तुम जाओ.

कार्यस्थल की पूजा करते हम अभियंता..



टन-टन घंटी बजा-बजा जग करे आरती.

श्रम का मन्त्र, न दूजा पढ़ते हम अभियंता..



भारत माँ को पूजें हम नव निर्माणों… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 16, 2010 at 10:17am — 5 Comments

तरही मुक्तिका:: कहीं निगाह... संजीव 'सलिल'

आत्मीय!

यह मुक्तिका १०.९.१० को भेजी थी. दी गयी पंक्ति न होने से सम्मिलित नहीं की गयी. संशोधन सहित पुनः प्रेषित.



तरही मुक्तिका::



कहीं निगाह...

संजीव 'सलिल'

*

कदम तले जिन्हें दिल रौंद मुस्कुराना है.

उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है



कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.

हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..



न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.

करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..



पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 16, 2010 at 9:19am — 10 Comments

नवगीत: अपना हर पल है हिन्दीमय... --संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'

*

*

अपना हर पल

है हिन्दीमय

एक दिवस

क्या खाक मनाएँ?



बोलें-लिखें

नित्य अंग्रेजी

जो वे

एक दिवस जय गाएँ...



*



निज भाषा को

कहते पिछडी.

पर भाषा

उन्नत बतलाते.



घरवाली से

आँख फेरकर

देख पडोसन को

ललचाते.



ऐसों की

जमात में बोलो,

हम कैसे

शामिल हो जाएँ?...



हिंदी है

दासों की बोली,

अंग्रेजी शासक

की… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 15, 2010 at 7:54am — 3 Comments

तीन पद: संजीव 'सलिल'

तीन पद:

संजीव 'सलिल'

*

धर्म की, कर्म की भूमि है भारत,

नेह निबाहिबो हिरदै को भात है.

रंगी तिरंगी पताका मनोहर-

फर-फर अम्बर में फहरात है.

चाँदी सी चमचम रेवा है करधन,

शीश मुकुट नगराज सुहात है.

पाँव पखारे 'सलिल' रत्नाकर,

रवि, ससि, तारे, शोभा बढ़ात है..

*

नीम बिराजी हैं माता भवानी,

बंसी लै कान्हा कदम्ब की छैयां.

संकर बेल के पत्र बिराजे,

तुलसी में सालिगराम रमैया.

सदा सुहागन अँगना की सोभा-

चम्पा, चमेली, जुही में… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 13, 2010 at 11:33pm — 3 Comments

भजन : एकदन्त गजवदन विनायक ..... संजीव 'सलिल'

भजन :



एकदन्त गजवदन विनायक .....



संजीव 'सलिल'

*

*

एकदन्त गजवदन विनायक, वन्दन बारम्बार.

तिमिर हरो प्रभु!, दो उजास शुभ, विनय करो स्वीकार..

*

प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!

रिद्धि-सिद्धि का पूजनकर, जन-जीवन सफल बनाओ रे!...

*

प्रभु गणपति हैं विघ्न-विनाशक,

बुद्धिप्रदाता शुभ फलदायक.

कंकर को शंकर कर देते-

वर देते जो जिसके लायक.

भक्ति-शक्ति वर, मुक्ति-युक्ति-पथ-पर पग धर तर जाओ रे!...

प्रभु गणेश की… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 11, 2010 at 9:09am — 2 Comments

मुक्तिका: चुप रहो... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



चुप रहो...



संजीव 'सलिल'

*

महानगरों में हुआ नीलाम होरी चुप रहो.

गुम हुई कल रात थाने गयी छोरी चुप रहो..



टंग गया सूली पे ईमां मौन है इंसान हर.

बेईमानी ने अकड़ मूंछें मरोड़ी चुप रहो..



टोफियों की चाह में है बाँवरी चौपाल अब.

सिसकती कदमों तले अमिया-निम्बोरी चुप रहो..



सियासत की सड़क काली हो रही मजबूत है.

उखड़ती है डगर सेवा की निगोड़ी चुप रहो..



बचा रखना है अगर किस्सा-ए-बाबा भारती.

खड़कसिंह ले… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 4, 2010 at 8:30am — 5 Comments

बाल गीत: लंगडी खेलें..... -संजीव 'सलिल'

*

बाल गीत:



लंगडी खेलें.....



आचार्य संजीव 'सलिल'

*

आओ! हम मिल

लंगडी खेलें.....

*

एक पैर लें

जमा जमीं पर।

रखें दूसरा

थोडा ऊपर।

बना संतुलन

निज शरीर का-

आउट कर दें

तुमको छूकर।

एक दिशा में

तुम्हें धकेलें।

आओ! हम मिल

लंगडी खेलें.....

*

आगे जो भी

दौड़ लगाये।

कोशिश यही

हाथ वह आये।

बचकर दूर न

जाने पाए-

चाहे कितना

भी भरमाये।

हम भी चुप रह

करें… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 1, 2010 at 10:18pm — 6 Comments

बाल गीत: माँ का मुखड़ा -- संजीव वर्मा 'सलिल'

बाल गीत



माँ का मुखड़ा



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

मुझको सबसे अच्छा लगता -

अपनी माँ का मुखड़ा!

*

सुबह उठाती गले लगाकर,

नहलाती है फिर बहलाकर,

आँख मूँद, कर जोड़ पूजती ,

प्रभु को सबकी कुशल मनाकर. ,

देती है ज्यादा प्रसाद फिर

सबकी नजर बचाकर.



आँचल में छिप जाता मैं ज्यों

रहे गाय सँग बछड़ा.

मुझको सबसे अच्छा लगता -

अपनी माँ का मुखड़ा.

*

बारिश में छतरी आँचल की ,

ठंडी में गर्मी दामन की.,

गर्मी में… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 28, 2010 at 5:19pm — 4 Comments

गीत: आराम चाहिए... संजीव 'सलिल'

गीत:



आराम चाहिए...



संजीव 'सलिल'

*

हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं

हमको हर आराम चाहिए.....

*

प्रजातंत्र के बादशाह हम,

शाहों में भी शहंशाह हम.

दुष्कर्मों से काले चेहरे

करते खुद पर वाह-वाह हम.

सेवा तज मेवा के पीछे-

दौड़ें, ऊँचा दाम चाहिए.

हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं

हमको हर आराम चाहिए.....

*

पुरखे श्रमिक-किसान रहे हैं,

मेहनतकश इन्सान रहे हैं.

हम तिकड़मी,घोर छल-छंदी-

धन-दौलत अरमान रहे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 26, 2010 at 9:52pm — 3 Comments

मुक्तिका: समझ सका नहीं संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



समझ सका नहीं



संजीव 'सलिल'

*

*

समझ सका नहीं गहराई वो किनारों से.

न जिसने रिश्ता रखा है नदी की धारों से..



चले गए हैं जो वापिस कभी न आने को.

चलो पैगाम उन्हें भेजें आज तारों से..



वो नासमझ है, उसे नाउम्मीदी मिलनी है.

लगा रहा है जो उम्मीद दोस्त-यारों से..



जो शूल चुभता रहा पाँव में तमाम उमर.

उसे पता ही नहीं, क्या मिला बहारों से..



वो मंदिरों में हुई प्रार्थना नहीं सुनता.

नहीं फुरसत है उसे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 22, 2010 at 3:25pm — 4 Comments

गीत: आपकी सद्भावना में... संजीव 'सलिल'

निवेदन:



आत्मीय !



वन्दे मातरम.



जन्म दिवस पर शताधिक मंगल कामनाएँ भाव विभोर कर गयी. सभी को व्यक्तिगत आभार इस रचना के माध्यम से दे रहा हूँ.



मुझसे आपकी अपेक्षाएँ भी इन संदेशों में अन्तर्निहित हैं. विश्वास रखें मेरी कलम सत्य-शिव-सुन्दर की उअपसना में सतत तत्पर रहेगी. विश्व वाणी हिन्दी के सभी रूपों के संवर्धन हेतु यथाशक्ति उनमें सृजन कर आपकी सेवा में प्रस्तुत करता रहूँगा.



पाँच वर्ष पूर्व हिन्दीभाषियों की संख्या के आधार पर हिन्दी का विश्व में दूसरा… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 21, 2010 at 9:39am — 5 Comments

सामयिक गीत: आज़ादी की साल-गिरह / संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:



आज़ादी की साल-गिरह



संजीव 'सलिल'

*

*

आयी, आकर चली गयी

आज़ादी की साल-गिरह....

*

चमक-दमक, उल्लास-खुशी,

कुछ चेहरों पर तनिक दिखी.

सत्ता-पद-धनवालों की-

किस्मत किसने कहो लिखी?

आम आदमी पूछ रहा

क्या उसकी है कहीं जगह?

आयी, आकर चली गयी

आज़ादी की साल-गिरह....

*

'पट्टी बाँधे आँखों पर,

अंधा तौल रहा है न्याय.

संसद धृतराष्ट्री दरबार

कौरव मिल करते अन्याय.

दु:शासन… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 17, 2010 at 8:00pm — 5 Comments

मुक्तिका: कब किसको फांसे संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



कब किसको फांसे



संजीव 'सलिल'

*

*

सदा आ रही प्यार की है जहाँ से.

हैं वासी वहीं के, न पूछो कहाँ से?



लगी आग दिल में, कहें हम तो कैसे?

न तुम जान पाये हवा से, धुआँ से..



सियासत के महलों में जाकर न आयी

सचाई की बेटी, तभी हो रुआँसे..



बसे गाँव में जब से मुल्ला औ' पंडित.

हैं चेलों के हाथों में फरसे-गंडांसे..



अदालत का क्या है, करे न्याय अंधा.

चलें सिक्कों जैसे वकीलों के झाँसे..



बहू… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 17, 2010 at 7:36pm — 2 Comments

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: गीत भारत माँ को नमन करें.... संजीव 'सलिल'

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:



गीत



भारत माँ को नमन करें....



संजीव 'सलिल'

*



आओ, हम सब एक साथ मिल

भारत माँ को नमन करें.

ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ

इस धरती को चमन करें.....

*

नेह नर्मदा अवगाहन कर

राष्ट्र-देव का आवाहन कर

बलिदानी फागुन पावन कर

अरमानी सावन भावन कर



राग-द्वेष को दूर हटायें

एक-नेक बन, अमन करें.

आओ, हम सब एक साथ मिल

भारत माँ को नमन करें......

*

अंतर में अब रहे न… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 14, 2010 at 11:39pm — 5 Comments

गीत: कब होंगे आजाद... ----संजीव 'सलिल'

गीत:

कब होंगे आजाद

संजीव 'सलिल'

*

*

कब होंगे आजाद?

कहो हम

कब होंगे आजाद?....

*

गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.

भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..

मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-

नोच-खा रहे

भारत माँ को

ले चटखारे स्वाद.

कब होंगे आजाद?

कहो हम

कब होंगे आजाद?....

*

नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.

धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..

आँख दिखाते सभी… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 10, 2010 at 5:02pm — 2 Comments

गीत: हर दिन मैत्री दिवस मनायें..... संजीव 'सलिल'

गीत:

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

संजीव 'सलिल'

*

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

*

होनी-अनहोनी कब रुकती?

सुख-दुःख नित आते-जाते हैं.

जैसा जो बीते हैं हम सब

वैसा फल हम नित पाते हैं.

फिर क्यों एक दिवस मैत्री का?

कारण कृपया, मुझे बतायें

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

*

मन से मन की बात रुके क्यों?

जब मन हो गलबहियाँ डालें.

अमराई में झूला झूलें,

पत्थर मार इमलियाँ खा लें.

धौल-धप्प बिन मजा नहीं है

हँसी-ठहाके… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 8, 2010 at 11:32am — 3 Comments

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