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Veerendra Jain's Blog (35)

वो क्यूँ चुप हैं जिन्हें गुमाँ है ...

एक बार मैं ढूंढने को चला वो लोग जिन्हें है ये गुमाँ

सारे जहाँ से अच्छा है हिन्दोस्ताँ....



मैं हूँ विदर्भ का इक किसान

संग पत्नी दो बच्चों की जान

झेला सूखा और अकाल

उस पर पड़ी कर्जे की मार

ना ज़मीन बची ना मकान

करता हूँ ख़ुदकुशी देता हूँ अपनी जान ...

अब मेरा उनसे है सवाल

जो ड्राइंग रूम में बैठकर

बातें करें दें

इंडिया शाइनिंग की मिसाल



वो क्यूँ चुप थे जिन्हें ये गुमाँ है

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ है

वो क्यूँ चुप हैं… Continue

Added by Veerendra Jain on October 12, 2011 at 6:00pm — No Comments

इश्क है तो इश्क का इज़हार होना चाहिये....

 

ज़ख्म खाने को सदा तैयार होना चाहिये

तीर नज़रों का सदा उस पार होना चाहिये |


बन कहे ही जाने कितने हीर रांझे मिट गए ,
इश्क है तो इश्क का इज़हार होना चाहिये |


गर खुदा ना ही मिले तो भी मुझे परवा नहीं ,
साथ मेरे बस मेरा दिलदार होना चाहिये |


डूबती हैं कश्तियाँ साहिल पे भी आके कभी 
झूठ…
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Added by Veerendra Jain on September 29, 2011 at 1:45pm — 5 Comments

हाइकू

 

1. छब अपनी

   भूली मैं सांवरिया 
   तोसे मिल के 
2. बावरा मन
   पुकारे तेरा नाम 
   सुबह शाम 
3. उड़ा के खाक 
   अपने बदन की 
   पाया ये इश्क 
4. दर्द की पाती
   तुम बिन जीवन 
   रोए ये मन
5. क्या जीत हार 
   तुम बिन सनम 
   सब बेकार 
6. किसी बहाने 
   करूँ तेरी ही बात 
   दोस्तों के…
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Added by Veerendra Jain on September 11, 2011 at 12:30am — 2 Comments

फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है ...

 

साँसे बोझिल हैं , आँखों में पानी है 

फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है |

हर सुबह नई परेशानी है ,

फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है |

 

कैसी सोची थी कैसी पाई है 

जाना था कहाँ , कहाँ ले आई है |

कौन सोचे और कैसी बितानी है ,

फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है…

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Added by Veerendra Jain on August 24, 2011 at 11:59am — 9 Comments

चाँद उतर आएगा...

 

 

 

 

 

 

 

 

सर्फ़ का घोल लेके वो बच्चा हवा में बुलबुले उड़ा रहा था  

कुछ उनमें से फूट जाते थे खुद-ब-खुद

कुछ को वो फोड़ देता था उँगलियाँ…

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Added by Veerendra Jain on July 20, 2011 at 12:59pm — 10 Comments

चुपचाप देखते रहते हो...

 

जाने कैसा दौर गुज़र रहा है ये ,

खुदा का घर दहशत में है

जन्नत लिपटी पड़ी  है नुकीले तारों में

खूब चलता है ब्योपार इन दिनों नुकीली तारों का |

 

बर्फ की चादर अब तो मैली हो चली है

 

खून के धब्बों से ,

जख्मी हो गए हैं

बन्दूक की नोक पर कदम…

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Added by Veerendra Jain on June 27, 2011 at 12:13pm — 6 Comments

मेरी त्रिवेनियाँ ....

 

1 . ये किसने इनके हाथ में ज़िन्दगी की कठिन किताब पकड़ा दी है 
      नुकीले सबक चुभ जाते हैं और आंसू बहता रहता है
 
      ये मजदूर माँ कब तक बच्चों से मजदूरी करवाती रहेगी !! 
 
 
2 . सोचता रहा सारा…
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Added by Veerendra Jain on June 19, 2011 at 11:46pm — 7 Comments

बरगद का इक बूढ़ा पेड़

 

खिड़की खुलते ही नज़र आता था सोसायटी के पीछे खड़ा 

बरगद का इक बूढ़ा पेड़  

हर मौसम में एक नयी पोशाक पहने |

 

शाखें हिलाकर हाथ की तरह  

जाने किस किसको बुला लिया करता था,

अनजान से चेहरे आते

और कुरेदकर लिख जाते

अपनी ख्वाहिशें और ग़म उसके तनों पर

चाँद जब परेड करता रात…

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Added by Veerendra Jain on June 14, 2011 at 11:50pm — 7 Comments

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है ..

सुनी मैंने दिल की जब जब मुझे  रुस्वा कराया है
खुदा तुझको बताकर मुझ से  फिर  सजदा कराया है |
फकत हालात  ही रचते हैं ये  साजिश मेरी खातिर  
कभी तुमसे कभी खुदसे मेरा फासला कराया है |
जिसे सींचा लहू से मेरे अपने  आज उसकी ही
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है |
कभी मेरी कभी तेरी कभी इसकी कभी उसकी
लगा बोली सभी की रूह से धंधा कराया है |
बनाती है, मिटाती है, मिटाकर फिर बनाती…
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Added by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:27am — No Comments

इबादत...

 

उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,

 

उतारो गुम्बद,

 

समेटो खम्भे,

 

उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,

 

मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,

 

सुकूँ…

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Added by Veerendra Jain on May 23, 2011 at 1:40pm — 10 Comments

ज़िन्दगी के कैनवास पर...

 

 

 

ज़िन्दगी के कैनवास पर

जीवन का मनमोहक चित्र

बनाता है वो

रंग भी मुरीद हैं

उसकी इस कला के ,

रंग प्यार के

रंग अपनेपन के

रंग दोस्ती के

रंग करुणा…

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Added by Veerendra Jain on May 16, 2011 at 11:50am — 4 Comments

माँ ......

माँ , रहती हो हर पल मेरे साथ .....



जब निकलता हूँ घर से बाहर , चाहे मैं पलटकर देखूं ना देखूं

खड़ी रहती हो तुम दरवाज़े पर ही जब तक हो ना जाऊं ओझल गली के मोड़ पर ,

और फिर चलने लगती हो साथ मेरे दुआओं के रूप में .....



नींद ना आये जब मुझे तो गुज़ार देती हो सारी रात ,

थपकियाँ देते हुए मेरे माथे पर ,

और सो जाता हूँ मैं सुकून से .....



कभी जो आना-कानी करूँ खाने के नाम पे ,

तो यूं खिलाती हो अपने हाथों से ,

मानो भूख मेरी शांत होती हो और तृप्त… Continue

Added by Veerendra Jain on May 10, 2011 at 12:21am — 7 Comments

ऐसा भी एक मन्ज़र...

 

पैगाम लिए पंछी चल दिए सुबह को बुलाने ,
बांसुरी से गुजरती शीतल हवा कुछ गुनगुनाई |
 
पीली धूप पहन किरणों ने झाँका आसमान से ,
बाहें फैलाकर मौसम ने फिर ली अंगड़ाई |
 
सिमटने लगी रज़ाई…
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Added by Veerendra Jain on April 27, 2011 at 12:15pm — 9 Comments

कश्मकश ....

 

एक दोराहे पे खड़ा है दिल मेरा ,
एक अजीब सी कश्मकश
चलती रहती है मेरे अंदर
दोस्ती और मोहब्बत की रस्सी से बने पुल पर |
 
उसकी ख़ुशी में जो मुस्कुराना चाहूँ
तो मोहब्बत रोकती है…
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Added by Veerendra Jain on April 20, 2011 at 11:30am — 9 Comments

Sachin and World Cup...

मेरे ख़्वाबों से हकीक़त का क़रार है तू ,

मुद्दतों किये हर पल का इंतज़ार है तू ,
तुझसे जुड़कर मेरा नाम मुकम्मिल नज़र आता है |
 


आ…
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Added by Veerendra Jain on April 3, 2011 at 11:30am — 5 Comments

साहस...

 

आज फिर मैं सुबह के जागने से पहले उठा,
और सूरज से पहले घर से निकल गया  
सफ़र लम्बा है और
मंजिलों तक के फ़ासले जो तय करने हैं |
राहें पथरीली और उबड़ खाबड़ भी हैं तो क्या ?
चाँद पर घर बनाना है तो,…
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Added by Veerendra Jain on March 28, 2011 at 3:53pm — 10 Comments

रंग दे मोहे सांवरे रंग दे..

 

रंग दे मोहे सांवरे रंग दे ,
प्रीत के रंग में मोहे रंग दे |
चन्दन संग खुशबु मोहे रंगने आई ,
पी की महक बिन ना कछु भाई |
टेसू गेंदा चाहे मोहे रंगना ,
तेरी छुअन सिवा सब चुभता अंगमा |…
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Added by Veerendra Jain on March 22, 2011 at 11:30am — 5 Comments

मेरी दुनिया...

कभी मेरी नज़रों से देखो ,

तब तुम समझोगी शायद ,
कि मेरी दुनिया कितनी हसीन है......
 
बड़ी- बड़ी खिड़कियाँ नहीं हैं ,
पर, एक झरोखा है लटका हुआ 
जिससे हर सवेरे सूरज मुझे आवाज़ लगाता है....
 
कुछ खट्टी- मीठी , चटपटी -सी यादें हैं
जीरा बट्टी की गोलियों -सी
चखते ही आँखों से पानी टपक पड़ता है.....
 
घर में सामान कम है
क्यूंकि जगह नहीं है खाली
सपने…
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Added by Veerendra Jain on February 28, 2011 at 11:30pm — 13 Comments

मेरी त्रिवेनियाँ...

 

 

 1 .  एक को समझाऊँ तो दूसरी रोने लगती है ,
       थक -सा गया हूँ सबको मनाते मनाते ,
       
       ये तमन्नाओं का कटोरा कभी भरता ही नहीं |
 
2 .   मैंने छिपा लिया उन्हें मुट्ठियों में मोती समझकर…
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Added by Veerendra Jain on February 11, 2011 at 7:17pm — 5 Comments

इतना कीजिए...

 

सफ़र को हसीं - सा इक मोड़ दीजिए ,
मंजिलें दो दिलों की जोड़ दीजिए |
 
ऐ खुदा ! करने ग़ैरों की भलाई ,
दुनियावालों में कभी होड़ दीजिए |  
 
भरे जो कड़वाहट कभी यूँ दिल में ,…
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Added by Veerendra Jain on January 28, 2011 at 11:45am — 12 Comments

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