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चाँद उतर आएगा...

 

 

 

 

 

 

 

 

सर्फ़ का घोल लेके वो बच्चा हवा में बुलबुले उड़ा रहा था  

कुछ उनमें से फूट जाते थे खुद-ब-खुद

कुछ को वो फोड़ देता था उँगलियाँ चुभाकर

और कुछ उड़कर चले जाते थे

उसकी पहुँच से बहुत दूर 

ऐसा ही एक बुलबुला

जाकर चस्प हो गया था आसमान पर

चाँद की शक्ल में

हर रात छत पर जाके मैं तकता रहता हूँ आकाश को

लगता है उफनता हुआ चाँद भी शायद

बुलबुले सा

लहराता हुआ उतर आएगा मेरी छत पर |

 

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Comment by Veerendra Jain on July 27, 2011 at 11:26am

bahut bahut dhanyawad ...Vivek ji...

Comment by विवेक मिश्र on July 26, 2011 at 2:33am

दिल को छू लेने वाली नज़्म बन पड़ी है. मुबारकबाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 25, 2011 at 12:14am

गणेशभाई, आपने सुझाव के तौर पर बहुत गहरी बात कही है. बहुत-बहुत धन्यवाद.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 24, 2011 at 8:13pm

वीरेंद्र जी मैं आपको version जो भेजा था वो केवल उदाहरण स्वरुप भेजा था कि बगीचे के झाड़ियों को काट छाट कर देने से वो झाड़ियाँ और भी खुबसूरत हो जाती है | :-)

Comment by Veerendra Jain on July 24, 2011 at 7:25pm

Saurabh sir...aapka protsahan hamesha hi prernadayak hota hai...bahut bahut shukriya...

Comment by Veerendra Jain on July 24, 2011 at 7:24pm

Arun ji...bas ek khyal aaya aur use shabdon me dhalne ki koshish ki hai...yadi ruchikar lagi ho to likhna sarthak hua..bahut dhanyawad...

Comment by Veerendra Jain on July 24, 2011 at 7:21pm

Ganesh bhaiya...bahut bahut dhanyawad...kintu aapka version mujhe jyada acha laga...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2011 at 4:54pm

इस चाँद को न छू देना, न ही छूने देना. हर किसी को उसके चाँद का छू जाना और फिर उसका फूट जाना कभी भी अच्छा नहीं लगता.

*****

इस रुमानी रचना के लिये बधाइयाँ.

Comment by Abhinav Arun on July 23, 2011 at 2:55pm
कमाल की नवीनता और ताजगी है इस रचना में इस बात के लिए बहुत बहुत बधाई वीरेंद्र जी !!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2011 at 1:37pm

वीरेंद्र जी यह रचना स्वतः स्फुटित ह्रदय की आवाज जैसी लगती है , सुंदर कथ्य, बधाई आपको | 

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