For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क है तो इश्क का इज़हार होना चाहिये....

 

ज़ख्म खाने को सदा तैयार होना चाहिये

तीर नज़रों का सदा उस पार होना चाहिये |

बन कहे ही जाने कितने हीर रांझे मिट गए ,
इश्क है तो इश्क का इज़हार होना चाहिये |

गर खुदा ना ही मिले तो भी मुझे परवा नहीं ,
साथ मेरे बस मेरा दिलदार होना चाहिये |

डूबती हैं कश्तियाँ साहिल पे भी आके कभी 
झूठ कहते हैं केवल मझधार होना चाहिये |

तू ही क्यूँ लूटे अकेला देश ये मेरा भी है ,
मिल जुल चलाएं ऐसा कुछ व्यापार होना चाहिये |

वक़्त का है ये तकाज़ा हम ज़मीं तलाश लें ,
अब हमें इस पार या उस पार होना चाहिये |

साहिलों पे बैठकर वो हैं सिखाते तैरना ,
लहरों से अब सामना इक बार होना चाहिये | 

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kalu Ram on October 4, 2011 at 7:02pm

वाह क्या खूब लिखा है आपकी तारीफ़ जरुर होनी चाहिए .........

Comment by Veerendra Jain on October 3, 2011 at 12:08pm

धन्यवाद् ...सिया जी..

Comment by Veerendra Jain on October 3, 2011 at 12:07pm

मुझे सुधारने एवं हौसला अफजाई करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ...अम्बरीश भैया ...

Comment by siyasachdev on October 2, 2011 at 5:06pm

nice 1..good

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 1, 2011 at 11:01am
//गर खुदा ना ही मिले तो भी मुझे परवा नहीं ,
साथ मेरे बस मेरा दिलदार होना चाहिये |

 

तू ही क्यूँ लूटे अकेला देश ये मेरा भी है ,
साथ मिल लूटें इसे व्यापार होना चाहिये |//

बहुत खूब भाई ! बेहतरीन ....................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
11 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
16 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service