For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – December 2015 Archive (8)

चुटकियाँ- ….. …



चुटकियाँ- ….. …



नेता   क्या   और भाषण क्या

भाषण   पे   अनुशासन  क्या

मूक    बधिर   इस जनता को

व्यर्थ   में     आश्वासन    क्या !!1!!



देश   क्या     विकास      क्या

बिन    कुर्सी  मधुमास    क्या

छल करते जो नित् निर्बल  से

उस आवरण का विश्वास   क्या !!2!!



नीति   क्या    अनीति      क्या

भ्रष्ट की  सोच   से  प्रीति   क्या

जनता के जो खून  से   जिन्दा

उस   नेता   की  परिणति क्या !!3!!



फ़र्ज़    क्या  …

Continue

Added by Sushil Sarna on December 24, 2015 at 1:27pm — 6 Comments

ये सिलसिला .......

ये सिलसिला .......

सच ! कितना स्वार्थी है इंसान

हर जीत पे मुस्कुराता है

हर हार से जी चुराता है

अपने स्वार्थ की पगडंडी पर अक्सर

वो हर रास्ते से नाता जोड़ लेता है

हर मोड़ पे इक दर्द को छोड़ देता है

हर कसम तोड़ देता है

मुहब्बत की पाक इबारत पे

वासना की कालिख पोत देता है

जिस्म के रोएँ रोएँ में

नफ़रत की फसल छोड़ देता

किसी ज़िंदगी को नरक कर

उसके अरमानों को रौंद देता है

किसी की पाकीज़गी को

चीत्कारों से ढक देता है

उफ़ !…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 21, 2015 at 8:08pm — 4 Comments

नई पसंद का जमाना ... (110 वीं रचना )

नई पसंद का जमाना ... (110 वीं रचना )

राम राम भाई

आज दुकान खोलने में बड़ी देर लगाई

हमने भी पड़ोसी को राम राम कहा

और अपनी नासाज़ तबियत का हवाला देते हुए

अपनी दुकान का शटर उठाया

धूप अगरबत्ति जलाकर

उसके धुऐं को दुकान और गल्ले में घुमाया

प्रभु को शीश नवाकर

अच्छी बोहनी के लिए प्रार्थना करके

धूपदानी प्रभु के आगे रखी ही थी कि

एक ग्राहक ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई

हमने चौंक कर

अपनी सुराहीदार गर्दन को

भगवान बने ग्राहक की तरफ घुमाया…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 15, 2015 at 12:45pm — 4 Comments

हकीकत.....

हकीकत.....

उस दिन

जब तुमने मेरे काँधे पे

अपना हाथ रखा था

कितने ख़ुशनुमा अहसास

मेरे ज़हन में

उत्तर आये थे

लगा भटकी कश्ती को

जैसे साहिलों ने

अपनी आगोश में ले लिया हो

मगर मैं उन सुकून देते लम्हों को

कहाँ पहचान पायी थी

क्या खबर थी कि तुम

इज़हारे मुहब्बत के बहाने

मेरे कमजोर कांधों की

ताकत नाप रहे थे

मैंने तुम्हें अपना सागर मान

अपने वज़ूद को

तुम्हें सौंप दिया

आज तक

तुम्हारी उँगलियों की वो छुअन…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 14, 2015 at 1:00pm — 4 Comments

मर्यादा ....

मर्यादा ....

चक्षु को चक्षु से देखा

करते हमने द्वंद

उलझे करों को

देख इक दूजे में

हम तो रह गये दंग

आँख बचा कर

कब बाला ने

बदला कपोल का रंग

वर्तमान में बेहयाई का

हुआ ये आम प्रसंग

संस्कारों को त्याग जोड़े ने

अधर मिलाये संग

समझ न आये

क्यूँ इस युग में

कपडे हो गये तंग

मृग नयनी का

नशा देख के

फीकी पड़ गयी भंग

बैठ बाईक पर

दौड़ चले फिर

इक दूजे के संग

शर्मो-हया की चिंता किसे अब

सतरंगी है मन…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 7:15pm — 2 Comments

अधूरे हर्फ़ :..........

अधूरे हर्फ़ :..........

हंसी आती है

अपने ख्यालों पर

मेरे तसव्वुर में

तुम जब भी आती हो

इक अधूरी ग़ज़ल की तरह आती हो

नज़र से नज़र मिलती ही

एक अजीब सी सिहरन होती है

तुम किताब के रूठे हर्फों की तरह

किसी कोने में सिमटी रहती हो

मैं अपने अधूरे हर्फों को

इक मुकम्मल शक्ल देने की कोशिश में

तमाम शब चरागों में झिलमिलाते

तुम्हारे अक्स के साथ

गुज़ार देता हूँ

सहर होने के साथ

हम अधूरे लफ़्ज़ों के तरह

मुकम्मल होने के लिए…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 7, 2015 at 8:04pm — 2 Comments

साये....

साये....

रहने दो

तुम सायों की खामोशी क्या जानो

तुम सिर्फ खोखले अहसासों के

सूखे शज़र हो

साये का दर्द तो सिर्फ

ज़मीन सहती है

हर जिस्मानी खरोंच को

खामोशी से पी जाती है

उफ़ नहीं करती

रेज़ा रेज़ा बिखरती

तारीक में सिमट जाती है

जब कोई तन्हा शब

किसी परिंदे की तरह

पेड़ पर फड़फड़ाती है

बेतरतीब से सलवटों में

तब वफा भी कराहती है

गुजरे लम्हों के साये

तमाम उम्र

जीने की सजा दे जाते हैं

ज़िस्म की कश्कोल में…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 2, 2015 at 8:02pm — 12 Comments

टीस......

टीस.....

चलो न

कुछ और बात करते हैं

अपनी अपनी टीस से

मुलाक़ात करते हैं

नेह से देह की थकान

तो अधरों से तृप्ति हारी है

सच कहूँ तो

बीती हुई रात की

चुपके से हुई बात

कुछ तेरी पलक पर

तो कुछ मेरी पलक पर

अभी तक भारी है

जूही के फूलों में लिपटे

वो स्वप्निल लम्हे

अस्त व्यस्त से सलवटों में

अपनी गंध से

अलौकिक अनुभूति की

व्याख्या करते प्रतीत होते हैं

निर्वसन शरीर के उजास की चांदनी

एकान्तता से लिपट…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 1, 2015 at 7:45pm — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
15 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
20 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
32 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service