For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Kalipad Prasad Mandal's Blog – December 2017 Archive (8)

ग़ज़ल -जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त -कालीपद 'प्रसाद'

काफिया :आरे , रदीफ़ दोस्त

२१२२   २१२२  २१२२  २१२ (+१)

जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त

हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |

एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती

किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |

दोस्ती है नाम के, मैत्री निभाने में नहीं

वक्त मिलते ही शिकायत, और ताने मारे’ दोस्त |

कृष्ण अच्छा था सुदामा से निभाई दोस्ती

ऐसे’ इक आदित्य ज्यो हमको मिले दीदारे’…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 28, 2017 at 4:49pm — 2 Comments

ग़ज़ल -मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था-कालीपद 'प्रसाद'

2122  2122  212

मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था

दोष मुझ पर किन्तु मैं निर्घोष था |

दोष मढने के लिए था चाहिए

देखना इसमें जो’ भी गुणदोष था |

दोष संस्थापन कभी होता था नहीं

पुष्टि वह कानून का उद्घोष था |

किन्तु उनका दोष भी ज्यादा नहीं

शत्रु का तो दृष्टि का वह दोष था |

जान कर भी दोस्त सब रहते तने

मित्र गण भी बोलते दुर्घोष था  |

अब तलक थे मानसिक सब कष्ट…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 24, 2017 at 2:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल -मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आत ; रदीफ़ : चाहिए

बहर : २२१  २१२१  १२२१  २१२

 

मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए

कैसे बने हबीब मुलाक़ात चाहिए |

 

वादा निभाने’ में तुझे’ दिन रात चाहिए

हर क्षेत्र में विकास का’ इस्बात चाहिए |

 

आतंकबाद पल रहा’ है सीमा’ पार में

जासूसी’ करने’ एक अविख्यात चाहिए |

 

तू लाख कर प्रयास नही पा सकेगा’ रब

भगवान को विशेष मनाजात चाहिए…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 22, 2017 at 9:00am — 5 Comments

ग़ज़ल -सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं - कालीपद 'प्रसाद'

सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं 

यह अलग बात है दुनिया में' वो मशहूर नहीं 

प्यार करता हूँ’ मैं’ पागल की’ तरह पर क्या’ करूँ

हर समय प्यार जताना उसे’ मंज़ूर नहीं |

सांसदों में अभी’ दागी हैं’ बहुत से नेता

दाग धोना बड़ा’ दू:साध्य है’, नासूर नहीं |

चाह ऐसी कि सज़ा सबको’ मिले जो दोषी

पर सज़ा सबको’ मिले ऐसा’ भी’ दस्तूर नहीं |

लोक सरकार अभी, राज है’ जनता का यह

हैं सभी स्वामी’ यहाँ ,कोई’ भी’ मजदूर नहीं…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 18, 2017 at 8:30am — 14 Comments

ग़ज़ल -राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे-कालीपद 'प्रसाद'- संशोधित

काफिया आनी : रदीफ़ :मुझे

बह्र :२१२२ २१२२  २१२२  २१२

राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे

यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे' |

'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ

फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'|

'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में

ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'||

अच्छा था वो शाह का शासन, मुकद्दर और था

जीस्त मेरी पलटी खाई, सख्त  हैरानी मुझे…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2017 at 10:30am — 4 Comments

ग़ज़ल -दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही अहबाब था-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया :आब ; रदीफ़ ;था

बह्र :२१२२  २१२२  २१२२  २१२

दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही ऐराब था

जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |

मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था

चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |

स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को

सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |

आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी

आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |

शब कटी बेदारी’…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 8, 2017 at 3:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल-प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आद ,रदीफ़ : नहीं

बहर : १२१२  ११२२  १२१२  ११२ (२२)

अभी किसी को’ भी’ नेता पे’ एतिकाद नहीं

प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |

किये तमाम मनोहर करार, सब गए भूल

चुनाव बाद, वचन रहनुमा को’ याद नहीं |

गरीब सब हुए’ मुहताज़, रहनुमा लखपति

कहा जनाब ने’ सिद्धांत अर्थवाद नहीं |

जिहाद हो या’ को’ई और, कत्ल धर्म के’ नाम

मतान्ध लोग समझते हैं’, उग्रवाद नहीं  |

कृषक सभी है’ दुखी दीन, गाँव…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 6, 2017 at 10:21am — 9 Comments

ग़ज़ल -मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं - कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : अर ; रदीफ़ : नहीं हूँ मैं

बहर : २२१  २१२१  १२२१  २१२  (२१२१)

तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं

मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |

वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर

इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |

वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी

जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |

जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में

हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 3, 2017 at 4:39pm — 8 Comments

Monthly Archives

2018

2017

2016

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service