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S. C. Brahmachari's Blog – December 2013 Archive (3)

नयी धूप मै ले आऊँगा !

नयी धूप मै ले आऊँगा !
नए साल मे ,
नया सवेरा -
नयी धूप मै ले आऊँगा ।
सपनों के डोले से ,
हर पल –
खुशियाँ सब पर बरसाऊंगा ।
मांगूंगा मै ,
ढेरों खुशियाँ -
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे मे I
सुख, शांति की बारिश होगी
भारत के हर घर बारे मे ।
शांति प्रेम का संदेशा ले ,
मै तो अब –
घर घर जाऊंगा ।
नए साल मे ,
नया सबेरा -
नयी धूप मै ले आऊँगा ।
~~~ मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by S. C. Brahmachari on December 27, 2013 at 5:00pm — 21 Comments

यह मोरपंखी मन !

यह मोरपंखी मन !

न जाने क्यूँ प्रिये पागल –

हुआ जाता तुम्हारी याद मे यह मोरपंखी मन !

पहाड़ों पर कभी भटके

ढलानों पर कभी घूमे

कभी यह चीड़ के वन से –

घटाओं को बढ़े चूमे ।

यहाँ ठंडी हवाओं मे बढा जाता बहुत सिहरन

न जाने क्यूँ प्रिये पागल अरे यह मोरपंखी मन !

नदी , निर्झर , पहाड़ों पर

भ्रमण करता हुआ जाता

फिज़ाओं मे भटकना अब प्रिये !

पलभर नहीं भाता ।

तुम्हारे बिन हुआ जाता बड़ा सूना मेरा उपवन -

न जाने क्यूँ प्रिये ! पागल अरे यह…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on December 24, 2013 at 6:57pm — 20 Comments

धूप उतर आयी

धूप उतर आयी

झरोखे से झांक

आज़ सुबह मेरे कमरे मे

जब धूप उतर आयी

बढ़ गई थोड़ी सी

चंचल तरुणाई ।

यह धूप आज़ महंगी है, पर –

कल तक आवारा थी

शांति मुझे देती अब

गंगा की धारा सी ।

कैसे बताऊँ क्या है ?

जल्द फिसल जाती है

तन ठिठुर जाता

हर छाँव सिहर जाती है ।

अब तक अनदेखी है

तेरी गोराई !

ऐसे मे अनजानी

याद तेरी आयी ।

आज़ मेरे कमरे मे –

धीरे से

धूप उतर आयी

बढ़ गयी थोड़ी सी

चंचल तरुणाई ।

-…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on December 17, 2013 at 4:59pm — 15 Comments

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