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Satish mapatpuri's Blog – November 2010 Archive (2)

पुलिस आ रही है (लघुकथा)

यूं तो छमिया रोज़ ही हाट से सब्जी बेचकर दिन ढले ही घर आती थी, पर आज तनिक देर हो गयी थी. वह थोड़ी देर के लिए अपनी मौसी से मिलने चली गयी थी. युग -ज़माना का हवाला देकर मौसी ने उसे यहीं रुक जाने को कहा था, पर बूढ़ी माँ को वह अकेले छोड़ भी कैसे सकती थी? जब वह मौसी के घर से चली थी तो सूरज अपनी अलसाई आँखें मुंदने लगा था. छमिया तेज-तेज डग भरने लगी , पर शायद रात को आज कुछ ज्यादा ही जल्दी थी. देखते ही देखते चारो ओर कालिमा पसर गयी. वह पगडण्डी पार कर रही थी. अचानक उसे बगल की झाड़ियों में खड़-खड़ की आवाज़… Continue

Added by satish mapatpuri on November 25, 2010 at 2:00pm — 6 Comments

प्यार चाहिए ( बाल दिवस सप्ताह पर विशेष )

हम बच्चों को आप बड़ों का प्यार चाहिए.

हमें भी फूलने- फलने का आधार चाहिए.



हम भी फूल इसी बगिया के, फिर बहार से क्यों वंचित हैं?

देश के हम भी नौनिहाल हैं, फिर दुलार से क्यों वंचित हैं?



हमें भी खुलकर हँसने का अधिकार चाहिए.

हमें भी फूलने - फलने का आधार चाहिए.



उस समाज का क्या मतलब, जहाँ हम अनपढ़ रह जाते हैं?

उस किताब की क्या कीमत, जिसको हम पढ़ नहीं पाते हैं?



हम सब को भी शिक्षा का सिंगार चाहिए.

हमें भी फूलने -फलने का आधार… Continue

Added by satish mapatpuri on November 19, 2010 at 3:30pm — 2 Comments

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