For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी's Blog – November 2018 Archive (10)

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७४

२१२२ ११२२ ११२२ २२/ १२२

मैं हूँ साजिद, मेरा मस्जूद मगर जाने ना

घर में साकिन हैं कई, सबको तो घर जाने ना //१

ख़ुद ही पोशीदा है तू ख़ल्क़ में तो क्या शिकवा

कोई क्या आए तेरे दर पे अगर जाने ना //२

दोनों टकराती हैं हर रोज़ सरे बामे उफ़ुक़

मोजिज़ा है कि कभी शब को सहर जाने ना //३

ये अलग बात है तू मुझपे नज़र फ़रमा नहीं

वरना क्या बात है जो तेरी नज़र जाने ना //४

तू मुदावा है मेरे गम का तुझे क्या मालूम

बात यूँ है कि…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 26, 2018 at 12:04pm — 11 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७३ एक मज़ाहिया ग़ज़ल

2122 1122 1122 22/ 122



वह्म को खोल के हमने तो वहम कर डाला

जीभ थी ऐंठती, इस दर्द को कम कर डाला



बाज़ लफ़्ज़ों के तलफ़्फ़ुज़ को हज़म कर डाला

नर्म जो थी न सदा उसको नरम कर डाला



क़ह्र की छुट्टी करी सीधे कहर को लाकर

टेढ़े अलफ़ाज़ पे हमने ये सितम कर डाला



क्योंकि लंबी थी बहुत रस्मो क़वायद पे बहस

ख़त्म होती नहीं ख़ुद, हमने ख़तम कर…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 9:59am — 15 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७२

2122 2122 2122 212



सोचता हूँ तुझमें कब बंदा नवाज़ी आएगी

तेरे तर्ज़े क़ौल में किस दिन गुदाज़ी आएगी //१



मैं अभी बच्चा हूँ मुझको छेड़ते हो किसलिए

मैं बड़ा भी होऊँगा, क़द में दराज़ी आएगी //२



देखता तो है पलट कर वो इशारों में अभी

मुस्कुराएगा वो कल, तब-ए- तराज़ी आएगी //३  



तेरा ये हुस्ने मुजस्सम और मेरी दीवानगी

मिल गए हम दोनों फिर…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 21, 2018 at 6:00pm — 22 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७१

2212 1212 2212 1212



ख़ुशियों से क्या मिले मज़ा, ग़म ज़िंदगी में गर न हो

शामे हसीं का लुत्फ़ क्या जब जलती दोपहर न हो



लुत्फ़े वफ़ा भी दे अगर बेदाद मुख़्तसर न हो

इक शाम ऐसी तो बता जिसके लिए सहर न हो



हालात जीने के गराँ भी हों तो क्या बुराई है

मजनूँ मिले कहाँ अगर सहराओं में बसर न हो



ऐसी रविश तो ढूँढिए गिर्यावरी ए आशिक़ी

तकलीफ़ देह भी न हो, नाला भी बेअसर न हो



ख़ुशियों के मोल बढ़ते हैं रंजो अलम के क़ुर्ब से

तादाद…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 10:00am — 15 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७०

2122 1122 1122 22/ 112



सब्र रक्खो तो ज़रा हाल बयाँ होने तक

आग भी रहती है ख़ामोश धुआँ होने तक //१



समझेंगे आप भला क्यों ये गुमाँ होने तक

इश्क़ होता नहीं है दर्दे फुगाँ होने तक //२



तज्रिबा ये जो है सब आलमे सुग्रा का यहाँ

जाँ गुज़रती है सराबों से निहाँ होने तक //३



मुझको फ़िरदोस ने फिर से है निकाला बाहर

कौन है आलमे बाला में…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 11:00am — 11 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६९

2212 1212 2212 1212



ख़ुश्बू सी यूँ हवा में है, लगता वो आने वाला है

आबोहवा का हाल भी पिछले ज़माने वाला है //१



बाहों का तुम सहारा दो, तूफ़ान आने वाला है

दरिया तुम्हारे प्यार का सबको डुबाने वाला है ///२



बनते हो तीसमार खाँ, मेरी भी पर ज़रा सुनो

इक दिन ये वक़्त आईना तुमको दिखाने वाला है //३



मैं तो बड़े सुकून से सोया था तन्हा अपने घर

मुझको…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 10:15am — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६८

2122 1122 1122 22

 

जब भी होता है मेरे क़ुर्ब में तू दीवाना

दौड़ता है मेरी नस नस में लहू दीवाना //१

 

एक हम ही नहीं बस्ती में परस्तार तेरे 

जाने किस किस को बनाए तेरी खू दीवाना //२

 

इश्क़ में हारके वो सारा जहाँ आया है

इसलिए अश्कों से करता है वजू दीवाना //३

 

लोग आते हैं चले जाते हैं सायों की तरह

क्या करे बस्ती का भी होके ये कू दीवाना //४

चन्द लम्हों में ही हालात बदल जाते थे

मेरे नज़दीक जो…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 11, 2018 at 6:00pm — 12 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६७

1212 1122 1212 22

.

हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है

बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है //१



चमन उदास है कुछ यूँ ग़ुबारे हिज्राँ में

कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है //२ 




फ़ज़ा ख़मोश है घर की, अमा है सीने में

हमारा सोग मनाने रुदाली आई है //३ 



मवेशी खा गए या फिर है मारा पालों ने

कभी कभार ही फ़सलों पे बाली आई है…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 7, 2018 at 12:00pm — 16 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६६

२१२२ २१२२ २१२२



है वो मेरा दोस्त, मेरा नुकताचीं भी

शर्म खाए उससे कोई ख़ुर्दबीं भी //१



काविशे सुहबत में आके मैंने जाना

हाँ में उसकी तो छुपा था इक नहीं भी //२



जब उफ़ुक़ पे सुब्ह लाली खिल रही थी

थी हया से सुर्ख थोड़ी ये ज़मीं भी //३



दूर क्यों जाना है ज़्यादा जुस्तजू में

पालती है जबकि दुश्मन आस्तीं भी //४…



Continue

Added by राज़ नवादवी on November 4, 2018 at 7:30am — 10 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६५

२१२२ २१२२ २१२२

---------------------------

आ गया है जेठ, गर्मी का महीना

अब समंदर को भी आयेगा पसीना //१



उम्र भी अब तो सताने लग गई है

डूबता ही जा रहा है ये सफ़ीना //२



सोचता हूँ जिंदगी भी क्या करम है

उफ़ ! ये मरना और यूँ मर मर के जीना //३



ज़िंदगानी के तराने गा रहे सब

हैं दिवाने सैकड़ों और इक हसीना //४…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 7:00am — 16 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
17 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
10 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
12 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service