For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६७

1212 1122 1212 22

.

हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है
बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है //१

चमन उदास है कुछ यूँ ग़ुबारे हिज्राँ में
कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है //२ 


फ़ज़ा ख़मोश है घर की, अमा है सीने में
हमारा सोग मनाने रुदाली आई है //३ 

मवेशी खा गए या फिर है मारा पालों ने

कभी कभार ही फ़सलों पे बाली आई है //४ 

बता ऐ ताइरे खिरमन, तू घर बसायेगा?
हमारे हिस्से में इक ख़ुश्क डाली आई है //५ 

जवाब कुछ नहीं हमको मिला तेरे दर से  
नज़र जो लौट के आई सवाली आई है //६ 

हुआ बहीज मैं कुछ यूँ कि तुझको छूने की
मेरे दिमाग़ में फ़ित्ना ख़याली आई है //७ 

बुरा न मानूँ मैं शीरीं ज़बान का तेरी
मेरे सवाल के बदले जो ग़ाली आई है //८

नहीं है राज़ कोई नौकरी तो हैं बैठे
पुराना काम है जिसपे बहाली आई है //9

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

अमा- अन्धता, गहरा बादल; रुदाली- दूसरों के मातम में पैसे लेकर रुदन करने वाली औरतें; ताइरे खिरमन- खलिहानों पे पलने वाला पक्षी; बहीज-आनंदित, हर्षित; फ़ितना ख्याली- गड़बड़ करने का ख़्याल; बहाली-पुनर्नियुक्ति

Views: 765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 14, 2018 at 8:04am

आ. भाई राज नवादवी जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by राज़ नवादवी on November 11, 2018 at 4:22pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब। बहुत बहुत शुक्रिया। आपकी इस्लाह के मुताबिक़ बदल देता हूँ। बहारे हिज्रां से मेरा मतलब उस बहार के मौसम से था जो प्रेमियों के वियोग काल मे आया हो। सादर। 

Comment by Samar kabeer on November 11, 2018 at 2:43pm

'
चमन उदास है कुछ यूँ बहारे हिज्राँ में'

बहारे हिज्राँ' मुनासिब नहीं "ग़ुबार-ए-हिज्राँ' ठीक होगा ।

Comment by राज़ नवादवी on November 11, 2018 at 12:52pm

आदरणीय समर साहब, आदाब. आपके बताये अनुसार इस प्रकार आवश्यक बदलाव किये गए हैं (दूसरा शेर बदल दिया है) -

हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है
बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है

चमन उदास है कुछ यूँ बहारे हिज्राँ में
कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है

जवाब कुछ नहीं हमको मिला तेरे दर से
नज़र जो लौट के आई सवाली आई है

बुरा न मानूँ मैं शीरीं ज़बान का तेरी
मेरे सवाल के बदले जो ग़ाली आई है

- सादर 

Comment by राज़ नवादवी on November 11, 2018 at 12:23pm

आदरणीय समर साहब, आदाब. हस्बे मामूल ग़ज़ल आपकी इस्लाह के बगैर कामिल और बेनुक्स नहीं होती. आपके सुझावों और प्रोत्साहन का ह्रदय से आभार. आवश्यक बदलाव के बाद रेपोस्ट करता हूँ. सादर 

Comment by Samar kabeer on November 11, 2018 at 11:37am

//

मनाएं जश्न भी क्या हम शबे ज़ियारत तू   

मकामे रौशनी से हाथ ख़ाली आई है//

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, और सानी में व्याकरण दोष,'ख़ाली हाथ आई है' सहीह जुमला है, देखियेगा ।

Comment by Samar kabeer on November 11, 2018 at 11:32am

// 'बुरा न मानूँ मैं शीरीं ज़ुबान के मुँह से//

इस मिसरे को यूँ करना मुनासिब होगा:-

'बुरा न मानूँ मैं शीरीं ज़बान का तेरी'

Comment by Samar kabeer on November 11, 2018 at 11:24am

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है लेकिन ग़ज़ल अभी और समय चाहती है,बधाई स्वीकार करें ।

' बड़ी उदास सी अबके दिवाली आई है'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है'

दूसरे शैर के बारे में जनाब अजय जी बता चुके हैं ।

' जवाब कुछ नहीं हमको मिला सवालों का'

इस मिस्ररे को यूँ करें तो मुनासिब होगा:-

'जवाब कुछ नहीं हमको मिला तेरे दर से'

Comment by राज़ नवादवी on November 10, 2018 at 9:55am

आदरणीय अजय तिवारी साहब, दूसरे शेर को यूँ कर दिया है- 

मनाएं जश्न भी क्या हम शबे ज़ियारत तू   

मकामे रौशनी से हाथ ख़ाली आई है

सादर 

Comment by राज़ नवादवी on November 10, 2018 at 9:31am

आदरणीय अजय तिवारी साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत के लिए धन्यवाद. सचमुच ये भूल हो गई, सुधार करता हूँ. न जाने कैसे चूक गया. नज़र में लाने का ह्रदय से आभार. सादर. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service