For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – October 2018 Archive (4)

गजल(उठे हैं.....)

122 122  122 12

उठे हैं किसी को गिरा के मियाँ

चले पाग सर पे सजा के मियाँ।1

कहा था, डरेगा न कोई यहाँ

रहे खुद को हाफ़िज बना के मियाँ।2

रहेगा न सूखा शज़र एक भी--

कहें नीर सारा सुखा के मियाँ।3

मिटी भूख उनकी हुए सब सुखी

चहकते चले माल खा के मियाँ।4

किये लाख सज़दे, मिले कब सनम?

गये थे कभी सर नवा के…

Continue

Added by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 7:15am — 10 Comments

गजल(था कभी...)

2122 2122 2122 212
था कभी कितना नरम वह! हर कदर आखर हुआ
जब हवाओं ने छुआ तब पात वह जर्जर हुआ।1

सूख जाती है सियाही आजकल जल्दी यहाँ
ख्वाहिशों के फ़लसफों पे आदमी निर्झर हुआ।2

मिट्टियों की कौन करता है यहाँ पड़ताल भी
हर शज़र गमला सजा आकाश पर निर्भर हुआ।3

जो उड़ाता था वहाँ बेपर घटाओं को कभी
देखते ही देखते वह आजकल बेपर हुआ।4

वक्त की मदहोशियाँ क्या-क्या करा देतीं यहाँ
गर्द के बस ढ़ेर जैसा एक दिन अकबर हुआ।5
"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on October 23, 2018 at 10:00am — 5 Comments

गजल(डरे जो बहुत....)

122 122  122  12
डरे जो बहुत,बुदबुदाने लगे
मसीहे,लगा है, ठिकाने लगे।1

तबाही का' आलम बढ़ा जा रहा
चिड़ी के भी' पर फड़फड़ाने लगे।2

नचाते रहे जो हसीं को बहुत
सलीके से' नजरें चुराने लगे।3

नहीं कुछ किया,कहते' आँखें भरीं
गये वक्त अब याद आने लगे।4

उड़ाते न तो कोई' उड़ता कहाँ?
यही कह सभी अब चिढ़ाने लगे।5
"मौलिक वअप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on October 15, 2018 at 9:53pm — 6 Comments

बाज़ (लघुकथा)

बाज

--

चिड़िया ने पंख फड़फड़ाये।उड़ने को उद्यत हुई।उड़ी भी,पर पंख लड़खड़ा गये।उसे सहसा एक झोंका महसूस हुआ।।वह गिरते-गिरते बची,उसमें कुछ दूर उड़ती गयी।वह एक बड़ा पंख था,जो उसे हवा दे रहा था।वह उड़ती जा रही थी।कभी-कभी उसे उस बड़े पंख का दबाव सताता।वह कसमसाती,पर और ऊपर तक उड़ने की ख्वाहिश और जमीन पर गिरने के भय में टंगी वह घुटी भी,उड़ी भी......उड़ती रही।ऊँची शीतल हवाओं का सिहरन भरा स्पर्श उसे आंनदित करता।वह उस कंटकित पंख की चुभन जनित अपने सारे दुःख-दैन्य भूलकर उड़ती रही,तबतक जबतक उसे एक ऊँचाई न मिल…

Continue

Added by Manan Kumar singh on October 12, 2018 at 1:30pm — 16 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service