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Hilal Badayuni's Blog – October 2010 Archive (8)

जब चमन पुरबहार होते हैं

जब चमन पुरबहार होते हैं

खार भी लालाज़ार होते हैं



कौन साथी है दौर-ऐ-ग़ुरबत का

सब बनी के ही यार होते हैं



हम गिला क्या करें जफ़ाओं का

जब सितम बार बार होते हैं



टूट जाते है चन्द बातों से

रिश्ते कम पायदार होते हैं



अजनबी हमसफ़र तो ऐ लोगों

रास्ते का गुबार होते हैं



आज के दौर की अदालत में

बेगुनाह गुनाहगार होते हैं



जिनमे इमरज-ऐ-बुग्ज़-ओ-कीना हो

क़ल्ब वो दाग़ दार होते है



यूँ न अबरू को दीजिये… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 25, 2010 at 8:22pm — 8 Comments

जो लोग इस जहाँ में वफ़ादार होते हैं

जो लोग इस जहाँ में वफ़ादार होते हैं

दुनिया में आज वो ही गुनाहगार होते हैं



ऐसा न हो कहीं के सजा इनको भी मिले

कुछ लोग क्यूँ हमारे तरफदार होते हैं



वो ज़ुल्म भी करें तो उन्हें सब मुआफ है

हम उफ़ भी करते हैं तो ख़तावार होते हैं



हरगिज़ न उतरें इश्क के दरिया में नौजवान

दरया-ऐ-इश्क में कई मझदार होते हैं



एहसास-ऐ-कमतरी में रहते हैं जो मुब्तिला

वो भी दिल-ओ-दिमाग से बीमार होते है



छब्बीस जनवरी हो या स्वतंत्रता दिवस

हम लोगों… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 12, 2010 at 11:55pm — 6 Comments

आपस में भाइयों को लड़ाकर चला गया

शैतान अपना काम बनाकर चला गया

आपस में भाइयों को लड़ाकर चला गया



फिर आदतन वो मुझको सताकर चला गया

हँसता हुआ जो देखा रुलाकर चला गया



उल्फत का मेरी कैसा सिला दे गया मुझे

पलकों पे मेरी अश्क सजाकर चला गया



"जाने से जिसके नींद न आई तमाम रात"

वो कौन था जो ख्वाब में आकर चला गया



बदनाम कर रहा था जो मुझको गली गली

देखा मुझे तो नज़रें झुकाकर चला गया



कातिल को जब वफाएं मेरी याद आ गयीं

तुरबत पे मेरी अश्क बहाकर चला… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 11, 2010 at 11:00pm — 5 Comments

राज़ दिल का छुपाया बहुत है

राज़ दिल का छुपाया बहुत है

आंसुओं को सुखाया बहुत है



मै समझता था जिसको शनासा

आज वो ही पराया बहुत है



मैंने जिसको हसाया बहुत था

उसने मुझको रुलाया बहुत है



अब कोई और खेले न दिल से

ये किसी ने सताया बहुत है



कर चला है वो नाराज़ मुझको

मैंने जिसको मनाया बहुत है



उसके लफ्जों में हूँ आज भी मै

वैसे उसने भुलाया बहुत है



तेरी संजीदगी कह रही है

तू कभी मुस्कुराया बहुत है



क्या हुआ जो समर अब नहीं… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 7, 2010 at 11:05pm — 8 Comments

हम कलम को फ़ेंक के तलवार भी ले सकते है

कमज़र्फ़

तू हमारी वजह से ही साहिब -ऐ -मसनद है आज
हम जो चाहें तेरी दस्तार भी ले सकते है
इम्तिहान -ऐ -सब्र मत ले खूगर -ऐ -ज़ुल्म -ओ -सितम
हम कलम को फ़ेंक के तलवार भी ले सकते है

उरूज

दुनिया वाले कह रहे है साजिशों से पायी है
हमने ये जिंदा दिली तो ख्वाहिशों से पाई है
कामयाबी पर हमारी जल रहा है क्यों जहाँ
कामयाबी हमने अपनी काविशों से पायी है

Added by Hilal Badayuni on October 5, 2010 at 10:30pm — 3 Comments

हम तुमसे मिल रहे है बड़ी मुद्दतो के बाद ,



दर्द



आँखों पे जब से पड़ गयीं नज़रें फरेब की

आंसू हमारे और भी नमकीन हो गए

तुमने हमारे दर्द की लज्ज़त नहीं चखी

जिसने चखी वो दर्द के शौक़ीन हो गए



मुलाक़ात



हम तुमसे मिल रहे है बड़ी मुद्दतो के बाद ,

दो फूल खिल रहे है बड़ी मुद्दतो के बाद .

जुम्बिश हुई लबो को तो महसूस ये हुआ ,

ये होंठ हिल रहे है बड़ी मुद्दतो के बाद



अपनी माटी



हर इक इंसान को करना चाहिए सम्मान मिटटी…
Continue

Added by Hilal Badayuni on October 5, 2010 at 10:30pm — 7 Comments

मेरे पांच क़तात

तन्हा सफ़र



दिन मुसीबत के टल नहीं सकते ,



हम भी किस्मत बदल नहीं सकते .



हम तखय्युल को साथ रखते है ,



तुम तो हमराह चल नहीं सकते :





अर्ज़-ऐ-हाल



हम अपनी जान किसी पर निसार कैसे करें ,



तुझे भुला के किसी और से प्यार कैसे करें .



तेरे बिछड़ने से दुनिया उजाड़ गयी दिल की ,



इस उजड़े दिल को अब हम खुशगवार कैसे करें .





जदीदियत



ख्याल उठने से पहले ही सो गए होंगे ,



कुछ अपने… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 5, 2010 at 10:05pm — 2 Comments

क्या तुम समझ रहे हो मेरी शायरी की बात ????







उंगलियाँ



जिस दिन से उसकी ज़ुल्फ़ से महरूम हो गयीं

उस दिन से मुझे हाथ में खलती है उंगलियाँ

दस्त -ऐ -करम से उसके यकीं हो गया मुझे

किस्मत किसी की कैसे बदलती है उंगलियाँ





बद -किस्मती



वो है मेरा रफ़ीक मै उसका रकीब हु ,

दुनिया समझ रही है मै उसके करीब हु .

चाह था जिसने मुझको मै उसका न हो सका ,

मै बदनसीब हु मै बहुत बदनसीब हु :





ता -उस्सुरात-ऐ… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 5, 2010 at 10:00pm — 3 Comments

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