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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – September 2025 Archive (2)

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*****

जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है

हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर है।१।

*

जब सच कहे तो काँप  उठे झूठ का नगर

हमको तो सच का ऐसे ही गढ़ना ज़मीर है।२।

*

सत्ता के  साथ  बैठ  के  लिखते हैं फ़ैसले,

जिनकी कलम है सोने की, मरना ज़मीर है।३।

*

ये शौक निर्धनों का है, पर आप तो धनी,

किसने कहा है आप को, रखना ज़मीर है।४।

*

चलने लगी हैं गाँव में, बाज़ार की हवा,

पनपेंगे ज़र के…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2025 at 9:15pm — 2 Comments

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२

******

घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी

याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१।

*

झूठ उसका न जग झूठ समझे कहीं

बात यूँ अनकही  भी  निभानी पड़ी।२।

*

दे गये अश्क  सीलन  हमें इस तरह

याद भी अलगनी पर सुखानी पड़ी।३।

*

बाल-बच्चो को आँगन मिले सोचकर

एक  दीवार   घर   की  गिरानी  पड़ी।४।

*

रख दिया बाँधकर उसको गोदाम में

चीज अनमोल  जो  भी पुरानी पड़ी।५।

*

कर लिया सबने ही जब हमें आवरण

साख हमको  सभी  की बचानी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 1, 2025 at 5:30pm — 4 Comments

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