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Gumnaam pithoragarhi's Blog – September 2015 Archive (2)

ग़ज़ल ,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी ,,,,,,,

2122  2122  2122  212

यार मेरे आज फिर से दिल दुखाने आ गए

इस बहाने वो चलो मिलने मिलाने आ गए

जब कभी परदेश में  मुझको सताया यादों ने

साथ देने दादी के किस्से सुहाने आ गए

बोझ से लगते हैं उनको आज बूढ़े माँ-पिता

जेब में  बच्चों के जब भी चार आने आ गए

पढ़ किताबें शहर से जब गाँव आया तो मुझे

बस अना से दूर रहना सब बताने आ गए

कर चुका मैं मय से तौबा फिर हुआ ऐसा यहाँ

हुश्न वाले आँखों से मुझको पिलाने…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on September 6, 2015 at 9:17am — 5 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी ,,,,,,,

१२१२  १२१२  १२१२  १२१२

हरेक संत देखिये कतार ही कतार है

ये ज़िन्दगी बिमार है ये ज़िन्दगी बिमार है

अभी जो लूट है मची कहो ये कौन रोके अब

यहाँ पे भ्रष्ट आदमी लगे कि बेशुमार है

सवाल आँख ने किया जवाब आँख ने दिया

बे - लफ्ज़ बात हो गयी अजब यही तो प्यार है

जो कर्ज की मियाद थी वो ख़त्म ही नहीं हुई

लगे कि मेरे भाग में उधार ही उधार है

मुहासे जिनको कह  रहे शबाब की हैं चिठ्ठियाँ

कि जान लो वो…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on September 1, 2015 at 7:30pm — 6 Comments

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