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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – August 2015 Archive (2)

पीड़ाओं के इस दलदल में - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

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रोने का तुम नाम न लेना रीत बनाओ हँसने की

रोने धोने में क्या रक्खा  होड़ लगाओ हँसने की /1

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माना पाँव धँसे हैं कब से पार उतरना मुश्किल है

पीड़ाओं के इस दलदल में गंग बहाओ हँसने की /2

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परपीड़ा में सुख  मत खोजो ये पथ घेरे वाला है

दूर तलक जो ले जाती है राह बताओ हँसने की /3

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पोंछो आँसू बाढ़ में इसकी खुशियों के घर बहते हैं

निर्जन में भी  यारो  बस्ती…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2015 at 10:30am — 12 Comments

चल उम्मीदें बेच के आएं - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

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माना केवल रात ढली है  हमको उनका दीद हुए                  दर्शन

पर लगता है सदियाँ गुजरी अपने घर में ईद हुए /1

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हमने तो कोशिश की वो भी हमसे जुड़ते यार मगर

रिश्तों के पुल  बरसों पहले  उनसे  ही तरदीद हुए /2        रद्द करना / तोडना 

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भीड़ जुटाई…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 10:54am — 19 Comments

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