मापनी २२ २२ २२ २२
सुबह के’ मंजर से उजले हो,
दिल को लगते बहुत भले हो.
एक नजर देखा है जब से,
सपने जैसा दिल में’ पले हो.
सारी दुनिया जान गयी है,
तुम तो नहले पर दहले हो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 31, 2017 at 7:08pm — 17 Comments
अँधियारे गद्दी पर बैठा,
सूरज सन्यास लिए फिरता
नैतिकता सच्चाई हमने,
टाँगी कोने में खूँटी पर.
लगा रहे हैं आग घरों में,
जाति धर्म के प्रेत घूमकर.
सत्ता की गलियों में जाकर,
खेल रही खो-खो अस्थिरता.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 26, 2017 at 7:16pm — 17 Comments
मापनी 2122 2122 2122 212
कैद हैं धनहीन तो, जो सेठ है, आजाद है
झुग्गियों की लाश पर बनता यहाँ प्रासाद है
थाम कर दिल मौन कोयल डाल पर बैठी हुई,
तीर लेकर हर जगह बैठा हुआ सय्याद है
भाईचारा प्रेम सब बातें किताबी हो गईं,
हो रही बेघर मनुजता,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 18, 2017 at 9:01am — 10 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
झील सी गहरी नीली आँखें
हैं कितनी सकुचीली आँखें
खो देता हूँ सारी सुध बुध
उसकी देख नशीली आँखें
यादों के सावन में भीगीं
हो गईं कितनी गीली आँखें
मोम बना दें पत्थर को…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 7, 2017 at 4:30pm — 32 Comments
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