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बृजेश कुमार 'ब्रज''s Blog – August 2016 Archive (2)

ग़ज़ल....ख्वाब सारे अनमने हैं

​2122        2122        2122
बेदिली के अनवरत ये सिलसिले हैं
इसलिये तो ख्वाब सारे अनमने हैं

बाद मुद्दत के सफ़र आया वतन तो
थे बशर बिखरे हुये घर अधजले हैं

बादलों औ बारिशों ने साजिशें कीं 
भूख की संभावनायें सामने हैं

अस्ल ए इंसानियत मजबूत रक्खो
हर कदम पे ज़िन्दगी में जलजले हैं

इस शहर में चीखने से कुछ न होगा
गूंगी जनता शाह भी बहरे हुये हैं

(​मौलिक एवं अप्रकाशित)

बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 27, 2016 at 12:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल...कहीं से तुम चले आओ

1222         1222         1222        1222



तड़फते हैं सभी मंज़र कहीं से तुम चले आओ

​हवा की पालकी लेकर कहीं से तुम चले आओ 



खमोशी रात की औ दूर तक तन्हाई का आलम

रुके से जल में है कंकर कहीं से तुम चले आओ



क्षितिज के पार से किरणें सुहानी मुस्कुराईं यूँ

चुभे ज्यूँ रूह में खंजर कहीं से तुम चले आओ



मिटाने से नहीं मिटता ये रिश्ता आसमानी है

रहेगा जन्म जन्मान्तर कहीं से तुम चले आओ



अज़ब सी बेबसी हर सूं सफ़र भी कातिलाना…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2016 at 10:00pm — 4 Comments

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