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Featured Blog Posts – August 2010 Archive (45)

क्षितिज के पार

नज़र को धोखा बार- बार यही होता है.
यूँ तो कुछ भी क्षितिज के पार नहीं होता है .
खुदा बनाता है क्यों उनको हसीं.
जिनके दिल में तमिज़े प्यार नहीं होता है .
दिल भले साज़ है पर सबसे जुदा.
ये वो सितार जिसमे तार नहीं होता है.
उनकी मासूमियत पे हैरां हूँ.
ये भी नहीं कहते ऐतबार नहीं होता है .
रेत में गुल खिला रहे हो पुरी.
दिलजलों के लिए बहार नहीं होता है.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

Added by satish mapatpuri on August 2, 2010 at 4:53pm — 1 Comment

गीत... प्रतिभा खुद में वन्दनीय है... संजीव 'सलिल'

गीत...



प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...

संजीव 'सलिल'

**



प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...

*

प्रतिभा मेघा दीप्ति उजाला

शुभ या अशुभ नहीं होता है.

वैसा फल पाता है साधक-

जैसा बीज रहा बोता है.



शिव को भजते राम और

रावण दोनों पर भाव भिन्न है.

एक शिविर में नव जीवन है

दूजे का अस्तित्व छिन्न है.



शिवता हो या भाव-भक्ति हो

सबको अब तक प्रार्थनीय है.

प्रतिभा खुद में वन्दनीय है.....

*

अन्न एक ही खाकर… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 2, 2010 at 10:45am — 3 Comments

आचार्य संजीव 'सलिल तथा डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री : श्रेष्ठ गीतकार अलंकरण से सम्मानित

सितारों की महफ़िल में आज डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल

लखनऊ, गुरुवार, २९ जुलाई २०१०

ब्लोगोत्सव-२०१० को आयामित करने हेतु किये गए कार्यों में जिनका अवदान सर्वोपरि है वे हैं डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल जिन्होनें उत्सव गीत रचकर ब्लोगोत्सव में प्राण फूंकने का महत्वपूर्ण कार्य किया. ब्लोगोत्सव की टीम ने उनके इस अवदान के लिए संयुक्त रूप से उन दोनों सुमधुर गीतकार को वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार का अलंकरण देते हुए सम्मानित करने का निर्णय… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 2, 2010 at 10:41am — 2 Comments

किसी को मत अपना मान परिंदे

किसी को मत अपना मान परिंदे
ये दुनिया बड़ी बेईमान परिंदे
मंदिर-मस्जिद ढूंढ़ रहा किसको
हर गली बिकता भगवान परिंदे
मोह का झूठा बंधन दुनियादारी
मत उलझा इसमें जान परिंदे
सांसों के पंख नहीं वश में अपने
ज़िस्मानी पंख झूठी शान परिंदे
मन की तिजोरी जब तक खाली
दौलत पर कैसा अभिमान परिंदे
जितना ऊपर उड़ता जीवन पंछी
खुलता सच का आसमान परिंदे
दुनिया में जो जीना चाहे सुख से
बंद रख आँखें और कान परिंदे
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

Added by asha pandey ojha on August 2, 2010 at 10:15am — 8 Comments

दोस्तों के दिल में रहते हैं

हवाओ से कह दो अपनी औकात में रहे

हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।

फिज़ाओं से कह दो अपनी हदों में रहे

हम बहारो से नहीं घटाओ से बनते है।

फूलो से कह दो कही और खिले

हम पंखुड़ी से नहीं काँटों में रहते हैं।

दुश्मनों से कह दो कही और बसे

हम कही और नहीं दोस्तों के दिल में रहते हैं।

Added by praveena joshi on August 1, 2010 at 4:02pm — 9 Comments

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