For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरिराज भंडारी's Blog – July 2016 Archive (8)

ग़ज़ल - उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है ( गिरिराज भंडारी ) ज़मीन , मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब ।

आदरणीय समर कबीर साहब की ज़मीन पर एक ग़ज़ल

22   22   22   22   22   2

उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है

***********************************

जिसने तुझको यार सिकंदर लिक्खा है

तय है उसने ख़ुद को कमतर लिक्खा है

 

समाचार में वो सुन कर आया होगा

एक दिये को जिसने दिनकर लिक्खा है

 

वो दर्पण जो शक़्ल छिपाना सीख गये

सोच समझ कर उनको पत्थर लिक्खा है

 

भाव मरे थे , जिस्म नहीं, तो भी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 25, 2016 at 9:00am — 18 Comments

ग़ज़ल - हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है - गिरिराज भंडारी

22   22   22   22   22   22 ( बहरे मीर )

कोई किसी की अज़्मत पीछे छिपा हुआ है

कोई ले कर नाम किसी का बड़ा हुआ है

 

यातायात नियम से वो जो चलना चाहा

बीच सड़क में पड़ा दिखा, वो पिटा हुआ है

 

किसने लूटा कैसे लूटा कुछ समझाओ

हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है

 

दूर खड़े तासीर न पूछो, छू के देखो

आग है कैसी ,इतना क्यूँ वो जला हुआ है

 

चौखट अलग अलग होती हैं, लेकिन यारो

सबका माथा किसी द्वार पर झुका हुआ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 14 Comments

ग़ज़ल - वो बयान से खुद साबित कर देते हैं - ( गिरिराज भंडारी )

22   22  22   22   22   2



गदहा अन्दर हो जाये, तैयारी है

धोबी का रिश्ता लगता सरकारी है

 

वो बयान से खुद साबित कर देते हैं

जहनों में जो छिपा रखी बीमारी है

 

बात धर्म की आ जाये तो क्या बोलें ?

समझो भाई ! उनकी भी लाचारी है   

 

बम बन्दूकें बहुत छिपा के रक्खे हैं

अभी फटा जो, वो केवल त्यौहारी है

 

सरहद कब आड़े आयी है रिश्तों में

हमसे क्यूँ पूछो, क्यूँ उनसे यारी है ?

 

कभी फटा था…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 12 Comments

ग़ज़ल - पूछ दबी तो रो देते हैं , अच्छे अच्छे -- ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   22 ( बहरे मीर )

हम तो रह गये देख के मंज़र, हक्के बक्के 

सारे मूछों वाले निकले ब्च्चे बच्चे

 

अजब न समझें, पूँछ दबी तो कुत्ता रोया

पूछ दबी तो रो देते हैं , अच्छे अच्छे

 

परिणामों की आशा चर्चा से मत करना

केवल बातों के निकलेंगे लच्छे लच्छे

 

हर दिमाग में छन्नी ऐसी लगी मिलेगी

सारे बाहर रह जाते हैं , सच्चे सच्चे

 

इक चावल का दाना देखो, कच्चा है गर

सारे चावल तुम्हें मिलेंगे ,…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 9:20am — 20 Comments

दोहे - पाँच -- गिरिराज भंडारी

सर पर छत थी वो गयी , भीत भीत चहुँ ओर

रक्ष रक्ष मैं रेंकता , चोर मचाये शोर

 

सबकी चिंता है अलग, सब में थोड़ा फर्क

सब कहते वो पाप है, वो जायेगा नर्क  

 

स्वार्थ सदा रहता छिपा, सब रिश्तों के बीच

लेकिन वह जो बोल दे, कहलाता है नीच

 

सबकी अपनी व्यस्तता, सब के अपने राग

सर्व समाहित सोच से , तू भी थोड़ा भाग

 

सब तक सीढ़ी है बना , पायेगा  अनुराग  

पत्थर को ठोकर मिली , रे मानुष तू…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 8, 2016 at 9:00am — 6 Comments

ग़ज़ल - रोज उल्टियाँ वैचारिक कर देने वालों -- गिरिराज भंडारी

22  22  22   22   22   22 – बहरे मीर

आज उठाये घूम रहे हैं जिनको सर में

वो सब पटके जाने लायक हैं पत्थर में

 

अपनी बीमारी को बीमारी कह सकते

इतनी भी ताक़त देखी क्या, ज़ोरावर में ? (ताक़तवर)

 

फेसबुकी रिश्ते ऐसे भी निभ जाते हैं

वो अपने घर में कायम, हम अपने घर में

 

रोज उल्टियाँ वैचारिक कर देने वालों

चुप्पी साधे क्यों रहते हो कुछ अवसर में ?

      

जब समाचार में गंग-जमन का राग लगे, तुम 

मन्दिर-मस्ज़िद खेल…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 6, 2016 at 8:27am — 8 Comments

एक वैचारिक रचना --'' भीड़ '' ( गिरिराज भंडारी )

एक वैचारिक रचना --'' भीड़ ''

********************************

व्यक्तियों के समूह को भीड़ कह लें  

अलग अलग मान्यताओं के व्यक्तियों का एक समूह

जो स्वाभाविक भी है

क्योंकि मान्यता व्यक्तिगत है

 

पर भीड़ विवेक हीन होती है

क्योंकि विवेक सामोहिक नही होता

ये व्यक्तिगत होता है

हाँ , समूह का उद्देश्य एक हो सकता है , पर

प्रश्न ये है कि क्या है वह उद्देश्य  ?

 

भीड़ हाँकी जाती है

भेड़ों की तरह

गरड़िये के…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 9:23am — 6 Comments

गज़ल - दाग़ सभी के कुर्ते में -- ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22  22  2

.

मेरा ओछा पन भी उनको झूम झूम के गाता है

जिन शेरों में कुत्ता –बिल्ली, हरामजादा आता है

 

वफा और समझ का मानी एक कहाँ दिखलाता है

रख के टेढ़ी पूँछ भी कुत्ता इसीलिये इतराता है

 

खोटे दिल वालों की नज़रें, सुनता हूँ झुक जातीं हैं

और कोई बातिल सच्चों में आता है, हकलाता है  

 

वो क्या हमको शर्म- हया के पाठ पढ़ायेंगे यारो

जिनको आईना भी देखे तो वो शर्मा जाता है

 

सबकी चड्डी फटी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 7:30am — 18 Comments

Monthly Archives

2025

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
11 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
22 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service