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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Blog – June 2016 Archive (5)

मानवता के लिये जियो-पंकज

बहुत प्रताप था सम्राट अशोक

अब कहाँ है तुम्हारा सिंहासन?



बहुत जलवा था ज़िल्ले इलाही

कहाँ हैं अब मुग़लिया वंशज ?



जो महल जो हीरे जवाहरात

तूने खून से जुटाए थे न !

कोह-ए-नूर तो शो पीस ही रह गया

बादशाह सलामत?



तेरी खून पीने वाली तलवार

टीपू सुल्तान

बिक गयी- नीलाम हो गयी।

लेकिन तेरी वंशावली के

बूते की बात नहीं रही।।



गफ़लत में जीते हुए मौत से हारकर

सारी हेकड़ी और कौशल यहीं छोड़कर

जाना पड़ा तुमको भी महाराज… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 30, 2016 at 3:36pm — 4 Comments

चूम आये हम गुलाब-ग़ज़ल

2122 2122 2122 212(1)

2122 2122 2122 212



ज़िद थी उनको चूमने की, चूम आये हम गुलाब।

पाक वो भी रह गये, औ हो न पाये हम ख़राब।।



थी ये ख़्वाहिश रात भर आगोश में उनके रहें।

चाँदनी बिखरी रही, शब भर रहा छत पर शबाब।।



कौन कहता जिस्म का मिलना ही पाना है मियाँ।

कौन मीरा का किशन था, पा गया मैं भी जवाब।।



धड़कनों में उसकी सरगम, और ख़्शबू साँस में।

देखिये चेहरे पे मेरे कैसा उसका है रुआब।।



प्यास थी इक जो महल में ख़त्म होती थी… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 26, 2016 at 6:00pm — 15 Comments

सो रहे हैं सब- ग़ज़ल

2122 2122 2122 2

झाँक कर देखा दिलों में, सो रहे हैं सब।

एक जर्जर आत्मा ही ढ़ो, रहे हैं सब।।



कोठियों में लोग खुश हैं, भ्रम में ही था मैं।

किन्तु धन के वास्ते ही, रो रहे हैं सब।।



शीर्ष पर जो लोग लगता, पा गये सब कुछ।

जाके देखा पाया खुद को, खो रहे हैं सब।।



लग रहा था लोग मन्ज़िल, के सफर पर हैं।

हूँ चकित की दूर खुद से, हो रहे हैं सब।।



बंग्ले गाड़ी सुख के साधन, था गलत ये "मत"

आँधियाँ कह कर गयीं, दुख बो रहे हैं… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 8, 2016 at 11:30am — 14 Comments

कभी आके खुद तुम यहाँ देख लेना-ग़ज़ल

122 122 122 122

कभी आके खुद तुम यहाँ देख लेना।

मेरे इश्क़ की, इन्तेहाँ देख लेना।



यकीं इश्क़ पर गर, चे कम हो कभी भी।

तो ग़ज़लों का मेरी, जहाँ देख लेना।।



मिलेगा न मुझसा, दिवाना कहीं भी।

यहाँ देख लो फिर वहाँ देख लेना।।



मेरे हौसले की न पूछो कहानी।

झुकाऊँगा मैं, आसमाँ देख लेना।।



चलाना जो खंज़र, बचा लेना दिल को।

सजाया तुम्हें है, कहाँ देख लेना।।





मिलेगी यहाँ सिर्फ तस्वीर तेरी।

यही धन किया है जमाँ देख… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 5, 2016 at 6:03pm — 6 Comments

बह्र नई सी आप तो कोई, उम्दा ग़ज़ल ही लगती हैं- ग़ज़ल

2222 2222 2222 222

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आपकी नज़रें ताज़ा ताज़ा, फूल कमल ही लगती हैं।

बह्र नयी सी आप तो कोई, उम्दा ग़ज़ल ही लगती हैं।।



चाह रहे हैं छू लें लेकिन, रुसवाई से हम डर जाते।

जबकी मुस्का कर मिलती हैं, आप सरल ही लगती हैं।।



इसकी प्यास कई सदियों की, है मन का पंछी व्याकुल।

आप स्रोत सब मदिराओं की, असली तरल ही लगती हैं।।



जितने रूप धरा के सुन्दर, सारे हैं फीके फीके।

आपकी फ़ोटो कॉपी सारे, आप… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 2, 2016 at 8:00pm — 4 Comments

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