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विनय कुमार's Blog – April 2019 Archive (3)

पुरानी पहचान-लघुकथा

"अरे, उस भलेमानस के पास जाना है, चलिए मैं ले चलता हूँ", सामने वाले व्यक्ति ने जब उससे यह कहा तो उसे एकबारगी भरोसा ही नहीं हुआ. अव्वल तो लोग आजकल किसी का पता जानते ही नहीं, अगर जानते भी हैं तो एहसान की तरह बताते हैं. और राकेश के बारे में उसकी राय तो भलेमानस की बिलकुल ही नहीं थी.

चंद साल ही तो हुए हैं जब राकेश उसकी टोली का सबसे खतरनाक सदस्य हुआ करता था. किसी को भी मारना पीटना हो, धमकाना हो या वसूली करनी हो तो राकेश सबसे आगे रहता था. और इसी वजह से उसे एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी में नौकरी भी…

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Added by विनय कुमार on April 25, 2019 at 7:14pm — 6 Comments

संस्कार- लघुकथा

"हम तो आज भी पल्लू सरक जाए तो तुरंत ठीक कर लेते हैं. लेकिन ये आजकल की बहुरिया, मजाल है कि पल्लू सर पर टिके", रुक्मणि को नई बहू का कपड़ा पहनना बिलकुल नहीं भा रहा था और वह रवि के सामने भी कहने से नहीं चूकीं.

रवि ने पलटकर उनकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए. वह भी नई बहू को पिछले दो दिन से बमुश्किल साड़ी सँभालते देख रहे थे.

"अब हर आदमी तुम्हारी तरह तो नहीं बन सकता ना राजेश की अम्मा, तुमको पता तो है कि बहू शहर में नौकरी करती है और इसके नीचे कई लोग काम भी करते हैं", रवि ने बात सँभालने की कोशिश…

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Added by विनय कुमार on April 9, 2019 at 6:18pm — 12 Comments

वह निगाहें- लघुकथा

"अरे पागल हो गए हो क्या, उस ऑटो को क्यों जाने दिया. इतना टेंशन हैं चारोतरफ और हम लोग यहाँ फंसे हुए हैं जहाँ तीन दिन पहले ही दंगे हुए थे", राजेश एकदम बौखला गया.

"चिंता मत करो, अब स्थिति कुछ ठीक हैं, दूसरा आ जायेगा", उसने इत्मीनान से कहा और सामने सड़क पर देखने लगा.

तभी एक दूसरा ऑटो आता दिखाई पड़ा, ऑटो ड्राइवर को देखकर ही राजेश को समझ आ गया कि यह गैर मज़हबी है और वह थोड़ा पीछे हो गया.

"आ जाओ, चलना नहीं हैं क्या", कहते हुए वह राजेश का हाथ खींचते हुए ऑटो में बैठ गया.

कुछ समय बाद…

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Added by विनय कुमार on April 2, 2019 at 5:36pm — 10 Comments

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