For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरिराज भंडारी's Blog – March 2017 Archive (3)

ग़ज़ल -चुप कह के, क़ुरआन, बाइबिल गीता है - ( गिरिराज )

22   22   22   22   22   2

हर चहरे पर चहरा कोई जीता है

और बदलने की भी खूब सुभीता है

 

सांप, सांप को खाये, तो क्यों अचरज हो

इंसा भी जब ख़ूँ इंसा का पीता है

 

अर्थ लगाने की है सबको आज़ादी

चुप कह के, क़ुरआन, बाइबिल गीता है

 

भेड़, बकरियों, खर , खच्चर , हर सूरत में

अब जंगल में जीता केवल चीता है

 

बादल तो बरसा था सबके आँगन में

उल्टा बर्तन रीता था, वो रीता है

 

फर्क हुआ क्या नाम बदल के सोचो…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on March 23, 2017 at 8:57am — 6 Comments

ग़ज़ल -तड़प तड़प के क्यूँ वो बाहर निकले हैं - ( गिरिराज )

22   22  22  22  22  2

छिपे हुये फिर सारे बाहर निकले हैं

फिर शब्दों के लेकर ख़ंज़र निकले हैं

 

मोम चढ़े चहरे गर्मी में जब आये  

सबके अंदर केवल पत्थर निकले हैं

 

आइनों से जो भी नफ़रत करते थे   

जेबों मे सब ले के पत्थर निकले हैं

 

बाहर दवा छिड़क भी लें तो क्या होगा

इंसाँ  दीमक जैसे अन्दर निकले हैं

 

अपनी गलती बून्दों सी दिखलाये, पर्

जब नापे तो सारे सागर निकले हैं

 

औंधे पड़े हुये हैं सागर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on March 21, 2017 at 9:48am — 16 Comments

ग़ज़ल -ये किसका दर्द रूह में मेरी समा गया - ( गिरिराज )

221   2121   1221   212

मंज़र न जाने कौन उसे क्या दिखा गया

या आइना था, जो उसे पत्थर बना गया

 

तू भी तवाफ ए दश्त में चलता, ऐ शह’र ! तो   

कहता यही, सुकून मेरे दिल को आ गया

 

हँसने की कोशिशों से निकल आये अश्क़ क्यूँ

ये किसका दर्द रूह में मेरी समा गया

 

गिनते रहे वो रोटियाँ थाली में डाल कर

भूखा उसी समय ही जाँ अपनी लुटा गया

 

लाठी नुमा रहा था जो अंधे के साथ साथ    

पत्थर समझ के राह का, कोई हटा…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:54pm — 20 Comments

Monthly Archives

2025

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
31 seconds ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
4 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
4 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
6 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
23 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
28 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
39 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service