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Rajesh kumari's Blog – March 2012 Archive (4)

सच्चाई का दमन

 

कल फिर किसी चट्टान को फोड़ने की कोशिश होगी 
कल फिर किसी ईमान को निचोड़ने की कोशिश होगी 
सूरज तो दिन में हर रोज की तरह दमकेगा 
कल फिर  अँधेरे में सच को मरोड़ने की कोशिश होगी 
एक और बुलंद आव़ाज का शीशा चट्केगा 
कल फिर तिलस्मी वादों से जोड़ने की कोशिश होगी
फूट रहा क्रोध का लावा बनकर हर्दय में जो 
कल फिर उसी सैलाब को मोड़ने की कोशिश होगी 
फिर तमाश्बीन  की तरह बैठे रहेंगे…
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Added by rajesh kumari on March 28, 2012 at 7:55pm — 16 Comments

देश की सूरत

भावनाओं का दमन,  

संवेदनाओं का संकुचन देख रहे हैं 

आदान-प्रदान सब गौण  हुए  

अब ऐसा चलन देख रहे हैं |

स्वार्थ के बढ़ते  दाएरे, 

जन- जन  को छलते देख रहे हैं 

हिंद  का वैभव स्विस बेंकों में 

 हक को जलते देख रहे हैं |

भ्रष्टाचारी को जीवंत, 

संत ज्ञानी को मरते देख रहे हैं 

अगन उगलते सूरज में, 

नम धरा झुलसते देख रहे हैं | 

दूध की नदियाँ…

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Added by rajesh kumari on March 26, 2012 at 10:30am — 10 Comments

बड़े बेखबर

आज मन में क्यूँ उठी मेरे लहर 

चाँद जाने दे गया कैसी खबर 

चलो घर को अपने करीने से सजा लूँ 

किसको  साथ लाती है मेरी सहर 

बहकी बहकी सी फ़िजा लगती है 

कौन जाने है ये किसका असर 

वो तो समझो  है शाइस्तगी मेरी 

वर्ना हक़ से कहती अभी और ठहर 

आजकल दरवाजे उनके बंद रहते हैं 

चुपचाप ना जाने वो गए किधर 

रुसवाइयों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता 

कसम से हैं वो बड़े बेखबर 

रास्ता शायद वो दरिया भूल गया 

मुड़ गया इस और जो…

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Added by rajesh kumari on March 21, 2012 at 2:09pm — 20 Comments

मोहब्बत की खातिर

वो टूटा फिर से सितारा मोहब्बत की खातिर 

देख लो तुम भी नजारा मोहब्बत की खातिर 

आ जाओ तसव्वुर में घडी दो घडी 

ये वक़्त न मिलेगा दुबारा मोहब्बत की खातिर 

लोग तो इश्क में जीवन ही लुटा देते हैं 

दे  दो  बाँहों का सहारा मोहब्बत की खातिर

छूट गई है मेरे हाथों से पतंग की डोर

थाम लो इसका किनारा मोहब्बत की खातिर

खुशियों की ये दौलत मुझसे छीन ना लेना

ग़ुरबत में जीवन है…

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Added by rajesh kumari on March 9, 2012 at 9:17am — 9 Comments

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