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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's Blog – March 2021 Archive (7)

ग़ज़ल (महबूब ज़िन्दगी)

2212 - 1212 -  2212 - 12 

.

मुश्किल सहीह ये फिर भी है महबूब ज़िन्दगी

रब  का हसीन  तुहफ़ा  है क्या  ख़ूब ज़िन्दगी

.

आजिज़  हैं  ज़िन्दगी  से जो वो भी  मुरीद हैं

तालिब  सभी  हैं  इसके  है  मतलूब ज़िन्दगी

.

हर  लम्हा  शादमाँ  है  तेरे  दम  से  दिल मेरा

जब  से  हुई  है  तुझसे  ये   मन्सूब   ज़िन्दगी

.

जिसने  नज़र  उठा  के  भी  देखा  नहीं  मुझे 

उस  पर  हुई   है   देखिए   मरग़ूब   ज़िन्दगी

.

लोगों के दिल…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 31, 2021 at 9:22am — 4 Comments

ग़ज़ल (हमें तुम से कोई शिकायत नहीं है)

122 - 122 - 122 - 122

हमें तुम से कोई शिकायत नहीं है

तुम्हें भी तो हम से महब्बत नहीं है

जो शिकवा था हमसे हमें ही बताते 

यूँ बदनाम करना शराफ़त नहीं है 

किया जो भरोसा तो कर लो यक़ीं भी

तुम्हारे सिवा कोई चाहत नहीं है 

ख़फ़ा होके हमसे जुदा होने वाले 

ज़रा कह दे हमसे अदावत नहीं है 

करोगे वफ़ा जो वफ़ा ही मिलेगी 

महब्बत की ऐसी रिवायत नहीं है 

तुम्हें दिल के बदले ये जाँ हमने…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 28, 2021 at 12:10pm — 2 Comments

ग़ज़ल (तू वतन की आबरू है तू वतन की शान है)

2122- 2122- 2122- 212

तू वतन की आबरू है तू वतन की शान है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत तुझपे दिल क़ुर्बान है

तेरी जुर्रत से  हुआ नाकाम दुश्मन हिन्द का

नाज़ करता आज तुझपे सारा हिन्दुस्तान है 

हैं मुबारक तेरी गलियांँ, गाँव तेरा, घर तिरा 

मरहबा माँ बाप हैं वो जिनकी तू संतान है

ईद हो या हो दिवाली सरहदों पर ही रहा 

मेरी धड़कन मेरी साँसों पर तेरा अहसान है 

मुल्क पर होते फ़िदा जो वो कभी मरते…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 26, 2021 at 3:45pm — 8 Comments

ग़ज़ल (जो दर्द रूह का है ज़बाँ पर न आयेगा)

2212 - 1221 - 2212 - 12 

जो दर्द रूह का है ज़बाँ पर न आयेगा

शिकवा भी कोई सुनने यहाँ पर न आयेगा 

उसका पयाम ये है कि आयेगा 'दफ़्न' पर 

ली थी क़सम जो उसने यहाँ पर न आयेगा 

वो साथ मेरे यूँ तो रहा है तमाम उम्र 

सुनता है मेरी आह-ओ-फ़ुग़ाँ, पर न आयेगा 

जलकर ये ख़ाक़ हो भी चुका है वजूद अब 

तुमको नज़र ज़रा भी धुआँ पर न आयेगा 

नज़रों के रास्ते जो उतर दिल में करले घर 

अब तीर ऐसा कोई कमाँ पर न…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 12:09am — 2 Comments

ग़ज़ल (इक जहाँ और बसाओ तो चलें)

2122 - 1122 - 22/112

इक जहाँ और बसाओ तो चलें   

फिर मुझे अपना बनाओ तो चलें 

उम्र भर साथ निबाहो तो चलें

फ़ासिले दिल के मिटाओ तो चलें

चन्द क़दमों की रिफ़ाक़त क्या है

हर क़दम साथ बढ़ाओ तो चलें

ज़िन्दगी हम ने गवाँ दी यूँ ही             

हासिल-ए-इश्क़ बताओ तो चलें

जितने पर्दे हैं उठा दो न सनम

राज़ उल्फ़त के सुनाओ तो चलें  

              

ज़िन्दगी ! ऐसी भी क्या उजलत…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 12, 2021 at 12:13am — 4 Comments

ग़ज़ल (हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं)

221 - 1222 - 221 - 1222

हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं

होते ही ख़फ़ा हमसे दुश्मन से जा मिलते हैं 

गुलशन में तेरे हर दिन नए ग़ुंचे चटकते हैं

गिर जाते हैं कुछ पत्ते कुछ फूल महकते हैं

माली है तू हम सबका हम भी हैं तेरी बुलबुल 

हमको ये शरफ़ हासिल हम यूँ  ही चहकते हैं

आँखों में मुहब्बत भर देखा जो हमें तुम ने 

छाया है सुरूर ऐसा हम ख़ुद ही बहकते हैं

कुछ ऐसी तपिश तेरे पैकर की हुई…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 11, 2021 at 3:53pm — 8 Comments

ग़ज़ल (निगाहों-निगाहों में क्या माजरा है)

122-122-122-122

निगाहों-निगाहों में क्या माजरा है

न उनको ख़बर है न हमको पता है

न  तुमने  कहा  कुछ न  मैंने  सुना है 

निगाहों  से  ही  सब  बयाँ  हो रहा है

ख़ुमारी फ़ज़ा में ये छाई है कैसी  

ख़िरामा ख़िरामा नशा छा रहा है 

मुहब्बत की  ऐसी  हवा चल  पड़ी ये

मुअत्तर  महब्बत  में सब  हो गया है 

मिलाकर निगाहें तेरा मुस्कुराना 

मेरे दिल पे जानाँ ग़ज़ब ढा गया है 

निगाहें …

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 4, 2021 at 10:28pm — 2 Comments

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