122 - 122 - 122 - 122
हमें तुम से कोई शिकायत नहीं है
तुम्हें भी तो हम से महब्बत नहीं है
जो शिकवा था हमसे हमें ही बताते
यूँ बदनाम करना शराफ़त नहीं है
किया जो भरोसा तो कर लो यक़ीं भी
तुम्हारे सिवा कोई चाहत नहीं है
ख़फ़ा होके हमसे जुदा होने वाले
ज़रा कह दे हमसे अदावत नहीं है
करोगे वफ़ा जो वफ़ा ही मिलेगी
महब्बत की ऐसी रिवायत नहीं है
तुम्हें दिल के बदले ये जाँ हमने दी जो
महब्बत है कोई तिजारत नहीं है
जुदाई का शिकवा करें उनसे क्या हम
कि जब साथ अपनी ही क़िस्मत नहीं है
जो रुसवा करें प्यार को ख़ुद ही अपने
'अमीर' अपनी ऐसी तो फ़ितरत नहीं है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जनाब नाथ सोनांचली जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर ।
आद0 अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये
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