For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – February 2014 Archive (6)

मगर अहसास पैदा हो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222



समझ   लूँ  मैं गुनाहों को भला अतवार1 से कैसे

मगर पूछूँ  तरीका  भी   किसी  अबरार2 से कैसे

**

सभी की थी दुआएं तो जला जब भी यहाँ  दीपक

मिटाया पर गया ना तब  बता अनवार3 से कैसे

**

हमेशा  बोलता  था  तू  नहीं  रिश्ता  रहा   कोई

गले लगती बता कमसिन किसी अगियार4 से कैसे

**

जुटा पाया न मैं साहस अना5 की बात कहने को

उलझ वो  भी  गई  पूछे किसी अफगार6 से कैसे

**

सदा लेते जनम वो तो गलत को ठीक करने…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2014 at 7:00am — 7 Comments

भूल थी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122    212

**

बचपने  में  चाँद  को  रोटी  समझना  भूल थी

कमसिनी में एक कमसिन से लिपटना भूल थी

**

तात  ने डाटा  किताबें  पढ़, मुहब्बत  में न पड़

तात से  इस बात  पर मेरा  झगड़ना  भूल  थी

**

कोख में जब मात ने  पाला न माना कुछ उसे

इक कली  के द्वार पर  माथा रगड़ना भूल थी

**

मिट गया वो, पात ने कर ली हवा से प्रीत जब

बेखुदी  में  डाल से  उसका  बिछड़ना  भूल थी

**

लूटता इज्जत भ्रमर नित दोष उसको  कौन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2014 at 7:30am — 11 Comments

है मुहब्बत चीज ऐसी (ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122    2122



राह  में  अवरोध  जितने, ओ!  जमाने  तूँ  लगा  ले

है  मुहब्बत  चीज  ऐसी, रास्ता  फिर  भी  बना  ले



हर जुनूँ  कमतर  है इसको, आग इसकी  कौन रोके

आशिकी  पीछे  हटी  कब, इम्तहाँ  गर  जो खुदा ले 



कैश  की  हर  पीर  लैला,  खीच  लेती  ओर  अपनी

है मुहब्बत को बहुत कम, जुल्म जग जितने बढ़ा ले

इस मुहब्बत की बदौलत, शिव फिरे ले शव सती का

अंध   देखे  रंग  दुनिया, नेह  में  जब  मन  रमा  ले

खत्म …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2014 at 7:00am — 13 Comments

आग पानी से जलाकर देख लेते ( गज़ल ) - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122



आँख में  उनकी  छिपा डर  देख लेते

जल गये  जो आप  वो घर  देख लेते



कर दिया अंधा सियासत ने सहज ही

आप वरना  खूँ  के  मंजर  देख  लेते



क्यों किसी  के  आसरे पर  आप बैठे

कुछ नया खुद आजमाकर देख लेते



बात करते हो बहुत तुम न्याय की जब

हाकिमों नित  क्यों कटे  सर देख लेते



खूब   सुनते   है  तेरी  जादूगरी   की

आग  पानी  से  जलाकर  देख  लेते



सोच लेता मैं  कि  जन्नत पा गया हूँ …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2014 at 7:30am — 16 Comments

सिर्फ सूरत आइना हो - (ग़ज़ल)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122     2122    2122     2122

***********************************

दीप  को जलना  नहीं है  भूल से  भी  द्वार मेरे

आप नाहक  कोशिशें क्यों  कर रहे हो  यार मेरे



खून हाथों पर लगा है किन्तु कातिल मैं नहीं हूँ

फूल से  अठखेलियों में  चुभ गये  थे  खार मेरे



छा गया है आजकल जो इस मुहब्बत में कुहासा

क्या  बताऊँ   आपको   मैं   देवता  बीमार  मेरे



दीन में रखना मुझे क्यों आप फिर भी चाहते हो

मयकदे में  भेज  बदले  जब  सदा  आचार …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2014 at 8:00am — 8 Comments

हुए पैदा सलीबों पर (ग़ज़ल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222 1222 1222 1222

मुहब्बत की  नहीं उससे , वफा भी फिर  निभाता क्या

खबर थी ये  उसे भी जब , मुझे  तोहमत लगाता क्या



सपन  में  रात  भर  था  जो , उसे  भी  ले गया सूरज

मिला साथी  मुझे भी  है , जमाने फिर  बताता   क्या



जिसे  डर  हो  सजाओं  का, उसे   यारों  सताता  डर

हुए  पैदा  सलीबों   पर ,  बता   डरता   डराता  क्या



न  हो  तू  अब  खफा  ऐसे , रहा  है   भाग  बंजारा

न था कोई  ठिकाना जब, पता तुझको लिखाता क्या…



Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:00am — 11 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service