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Dr. Vijai Shanker's Blog – February 2016 Archive (3)

एक छायावादी , एक छातावादी -डॉo विजय शंकर

वह जो

तपती दुपहरी मे

चिलमिलाती धूप में ,

जी तोड़ परिश्रम कर रहा है ,

पसीने में नहाया ,

कमा रहा है अपने लिए ,

अपने निजी सुख के लिए ,

वह सुख जो एक कल्पना है ,

तपती दुपहरी में भी वह एक

अदृश्य छाया का सुख भोग रहा है ,

कैसा छायावादी है वह ,

घोर अन्धकार में भी

रौशनी के मजे ले रहा है।

कठोर कष्ट में भी कैसा सुखद

काल्पनिक सुख भोग रहा है I

वह एक छायावादी है।

वह एक छायावादी है।



और एक वह है जो ,

विभिन्न सुरक्षा… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2016 at 8:00am — 4 Comments

सोये हो तो जागो - डॉo विजय शंकर

क्या कापुरुषत्व अब

सधे पौरुष का पर्याय बन गया है।

विवेक-शून्य होकर

हाँ में हाँ मिलाना ही

विवेक-शील होने का

एकमात्र प्रमाण बन गया है।



समय के साथ चलिए ,

हमारे साथ आगे बढ़िये ,

भले ही हमारा एहसास

सत्रहवीं शताब्दी का हो ।

समवेत-स्वर में गाइये,

सप्तम-स्वर में गाइये ,

स्तुति, वंदना , प्रशस्ति-गान ,

हमारे लिए , आज़ादी है ,

कहाँ मिलेगी ऐसी आज़ादी।

बाकी आवाज उठाना,

समझदार हैं आप ,

समय की बर्बादी है ,

अपनी ही… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 7, 2016 at 12:23pm — 6 Comments

अनवरत संघर्ष ( लघु-कथा ) - डॉo विजय शंकर

ऋग्वेद से लेकर पुराणोँ तक में देव-दानवों के युद्ध के वर्णन मिलते हैं। दानवों से त्रस्त देवता प्रायः ब्रह्मा के पास मार्ग- दर्शन , सहायता और सहयोग के लिए जाते हुए चित्रित मिलते हैं। युद्ध और युद्ध में शस्त्र की महत्ता को स्वीकार करते हुये देवता दधीच ऋषि के पास भी जाते हुए दर्शाये गए हैं। देवता विजयी भी होते थे पर न दानव समाप्त हुए न देवता अकेले रह कर सदैव के लिए अपना वर्चस्व ही स्थापित कर पाये। वास्तव में ये दोनों अच्छाई और बुराई के प्रतीक के रूप में देखें जाएँ तो स्थिति अधिक स्पष्ट होती नज़र… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 2, 2016 at 8:21am — 5 Comments

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