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कवि - राज बुन्दॆली's Blog – January 2017 Archive (3)

गीत (लावणी व कुकुभ मिश्रित)

आधार छन्द : 16+14 लावणी व कुकुभ मिश्रित,,



कोयल कुहुकी मैना बोली,भौंरे गूँजे भोर हुई ।।

आँख चुराये चन्दा भागा,रैन बिचारी चोर हुई ।।

कोयल कुहुकी,,,,



पूरब में ज्यों लाली निकली,सजा आरती धरा खड़ी,

उत्तुंग हिमालय पर लगता,कंचन की हो रही झड़ी,

बर्फ लजाकर लगी पिघलने,हिमनद रस की पोर हुई ।।(1)

कोयल कुहकी मैना बोली,भौंरे,,,,



सात अश्व के रथ पर चढ़कर,आ गए दिवाकर द्वारे,

स्वागत में मुस्काई कलियाँ,भँवरों नें मन्त्र उचारे,

सूर्यमुखी को देख…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2017 at 12:00am — 4 Comments

गीत,,,,,,

२१२२  २१२२  २१२२  २१२२

**************************



गुनगुनाकर देखिएगा आप भी यह गीत मेरा ।।

दोपहर की धूप में आभास होगा नव सवेरा ।।

गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,



तप्त सूरज शीश पर जब अग्नि वर्षा कर रहा हो,

ऊष्णता के हृदविदारक तीर तरकस भर रहा हो,

तब प्रभाती गीत की तुम छाँव में करना बसेरा ।।(1)

दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,,

गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,



कोकिला के कण्ठ से माँ भारती का गान सुनना,

व्योम में प्रतिध्वनित होती सप्त सरगम…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2017 at 7:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल,,

वज़्न : 1222 1222 1222 1222

मिलेंगी कुर्सियाँ लेकिन सियासी फ़न ज़रूरी है ।।

जुटाना है अगर बहुमत लचीलापन ज़रूरी है ।।(1)



कई पतझड़ यहाँ आके गये अफ़सोस मत करिये,

बहारों के लिए हर साल में सावन ज़रूरी है ।।(2)



हवाओं नें कसम खा ली जले दीपक बुझाने की,

उजाला ग़र बचाना है खुला दामन ज़रूरी है ।।(3)



वफ़ा की बात करते हो मियाँ इस दौर में तुम भी,

जहाँ शतरंज की बाज़ी बिछी हो धन ज़रूरी है ।।(4)



अगर कोई कहे तुमसे बताओ प्यार के मानी,…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 11, 2017 at 11:30pm — 12 Comments

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