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शिज्जु "शकूर"'s Blog – January 2014 Archive (7)

पास लाई हमें जाने कब दूरियाँ

212/ 212/ 212/ 212

 

पास लाई हमें जाने कब दूरियाँ

ये लगे है कि मिट जाये अब दूरियाँ

 

चाँदनी भी है कंदील भी हाथ में

फिर भी क्यूँ रौशनी से अजब दूरियाँ

                                                                  

याद आती रहे आपको मेरी तो

मैं कहूँ है बहुत मुस्तहब दूरियाँ

 

मुझको शिकवा न तुझको शिकायत कोई

दरमियाँ क्यूँ ये फिर बेसबब दूरियाँ

 

मेरी अफ़्सुर्दगी को बढ़ाये बहुत                 …

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 28, 2014 at 8:30am — 13 Comments

पत्थर मारने की आदत(ग़ज़ल)

221 2122 221 2122

 

शब्दों में पत्थरों को भर मारने की आदत

यूँ बेवजह तुम्हे ठोकर मारने की आदत

 

हमने मुहब्बतों में झेले सितम हज़ारों

दीवार पे हमें है सर मारने की आदत

 

ईमानो हक की बातें हैं करते आज वे ही

जिनको है भीड़ में छुप कर मारने की आदत

 

हालात दर्द को पैहम यूँ बढ़ाये उसपे

ऐ हुक्मराँ तेरी नश्तर मारने की आदत

 

उड़ना जिन्हे है वो उड़ ही जाते हैं परिन्दे

उनको नही ज़मीं पे पर मारने की…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2014 at 3:30pm — 26 Comments

ग़ज़ल (212- 212- 212- 212)

क्या कहूँ साथ अपने वो क्या ले गई

आँधी थी सायबाँ ही उड़ा ले गई

 

मैंने बस एक ही गाम उठाया मुझे

रहनुमा बन के तेरी दुआ ले गई

 

काम आये सितारे अँधेरो में रात

जब चिरागों की लौ को हवा ले गई

 

मुझको लहरों से क्यूँ हो शिकायत भला

गल्तियों को मेरी वो बहा ले गई

 

जीने की कोशिशें उसकी बेजा नहीं

क्या हुआ गर खुशी वो चुरा ले गई

 

रात के ख़्वाब बाकी थे आँखों में कुछ

सुब्ह की बेरहम धूप उठा ले…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2014 at 7:35pm — 21 Comments

लोकतंत्र का मुखौटा पहने (अतुकांत)

लोग कहते हैं

ज़माना बदल गया

मै कहता हूँ-

फ़क़त चेहरे बदले हैं,

व्यक्ति परक समाज तब भी था

अब भी है,

रियासतों,

शाही आनो-शान के बीच,

इंसानों के लहू से लिखी गई,

इतिहास की इबारत,

जो आज भी सुर्ख़ है

 

नाम बदले

मगर हालात न बदले

हुक्मरान बदले

मगर

जनता पहले भी ग़ुलाम थी

अब भी ग़ुलाम है

अंग्रेज़ों के पहले भी

अंग्रेज़ों के बाद भी

बेबसी ने ग़ुलाम…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 16, 2014 at 8:30pm — 12 Comments

ताब जो मेरे इरादों में है- शिज्जु

2122 1122 22/112

 

तिश्नगी में न सराबों में है

ताब जो मेरे इरादों में है

 

चहचहाते हुये पंछी ये कहें

ज़िन्दगी अब भी खराबों में है

 

ध्यान से पहले सुनो फिर समझो

क्या हकीकत मेरे दावों में है

 

बादलों की ये शरारत है जो

चाँद का नूर हिजाबों में है

 

अब तलक तेरी ज़ुबाँ पे थी वो

बात अब मेरे सवालों में है

 

काम आयेगी अकीदत आखिर

ऐसी तासीर दुआओं में है

ताब=…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 10, 2014 at 8:28pm — 22 Comments

एक तरही ग़ज़ल- शिज्जु

मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल

22- 22- 22- 22- 22- 2

सच्चाई को जब अपना ईमान किया

सारी दुनिया को उसने हैरान किया

 

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया

 

चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ

बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया

 

छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी

अपने छोटे से घर को ऐवान किया

 

मायूस हुआ तेरी तीखी…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 9:00am — 34 Comments

वहीं हूँ जहाँ से चला था

मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,

हकीकत के सीने में दफ़्न,

कुछ इच्छाओं की

उन धुँधली यादों को,

मेरे सपनों की लाशों को,

अब तक ढो रहा हूँ मैं…

 

कई दफे

ज़िन्दगी करीब से गुज़री,

मगर,

मैं ही जी न पाया..

आज मुझे लगता है

मैंने बहुत कुछ खो दिया,

पहले जो खोया है..

उसे याद कर,

और फिर,

उन्हीं यादों में खोकर,

 

एक लम्बा सफर तय किया,

मगर,

आज मुझे लगा

कि मैं…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 3, 2014 at 11:07am — 38 Comments

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