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क्या कहूँ साथ अपने वो क्या ले गई

आँधी थी सायबाँ ही उड़ा ले गई

 

मैंने बस एक ही गाम उठाया मुझे

रहनुमा बन के तेरी दुआ ले गई

 

काम आये सितारे अँधेरो में रात

जब चिरागों की लौ को हवा ले गई

 

मुझको लहरों से क्यूँ हो शिकायत भला

गल्तियों को मेरी वो बहा ले गई

 

जीने की कोशिशें उसकी बेजा नहीं

क्या हुआ गर खुशी वो चुरा ले गई

 

रात के ख़्वाब बाकी थे आँखों में कुछ

सुब्ह की बेरहम धूप उठा ले गई

(मौलिक तथा अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2014 at 11:23pm

आदरणीय सौरभ सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2014 at 2:36am

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है शिज्जू भाई. दिल से दाद लीजिये

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2014 at 3:24pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया डॉ प्राची जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 23, 2014 at 9:31pm

सभी अशआर बहुत अच्छी हुए है , पर 

मुझको लहरों से क्यूँ हो शिकायत भला

गल्तियों को मेरी वो बहा ले गई.............बहुत सुन्दर लगा ये शेर 

हार्दिक बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:58pm

आदरणीय अरुण भाई आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:58pm

आदरणीय विजय निकोर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:57pm

भाई आशीष जी ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:56pm

भाई राहुल जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:56pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:55pm

आदरणीय अखिलेश सर आपका आभार

कृपया ध्यान दे...

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