For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr Ashutosh Vajpeyee
Share on Facebook MySpace

Dr Ashutosh Vajpeyee's Friends

  • Pradeep Kumar Shukla
  • D P Mathur
  • केवल प्रसाद 'सत्यम'
  • बृजेश नीरज
  • Shyam Narain Verma
  • Ashok Kumar Raktale
  • लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
 

Dr Ashutosh Vajpeyee's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Lucknow
Native Place
Lucknow
Profession
professional astrologer
About me
simple living

Dr Ashutosh Vajpeyee's Blog

बलिष्ठ हुआ कलि है

रे मन न झूम आज स्वर्णिम प्रभा को देख......कृत्रिम प्रकाश देती दीप की अवलि है
पागल पवन रक्तपात में है अनुरक्त...................वक्त है विवेकहीन होती नरबलि है
देख अति पीड़ित सुरम्यताविहीन कली..लज्जा त्याग के खड़ी ठगा सा खड़ा अलि है
व्याघ्र अति चिन्तित कि गर्दभ चुनौती बना व्यापक दिशा दिशा बलिष्ठ हुआ कलि है

सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना---

रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Posted on October 28, 2013 at 6:00pm — 9 Comments

मधुशाला

वन नन्दन था वय षोडश कंचन देह लिए चलती वह बाला
शुचि स्वर्ण समान लगे शुभ केश व चन्द्र प्रभा सम वर्ण निराला
नृप एक वहीं फिरता मृगया हित यौवन देख हुआ मतवाला
वह नेत्र मनोहर मादक थे मदमस्त हुआ न गया मधुशाला
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ


मौलिक व अप्रकाशित

Posted on September 10, 2013 at 1:00pm — 25 Comments

कर भारत!



वेद महान सुज्ञान सुनो उसमे सब विश्व रहस्य समाहित

किन्तु उपेक्षित से लगते अवमूल्यन नैतिकता दिखता नित

कोश न पुण्य प्रसून रहे कितना करते तुम पाप उपार्जित

जीवन में असुरत्व बढ़ा व कुतर्क बड़ा अब धर्म पड़ा चित



विश्व सनातन धर्म गहे मत त्याग इसे अपना कर भारत!

खोज महागुरु भी निज के हित ज्ञान स्वकोश बना कर भारत!

छोड़ विकार सभी मन के तन को तपनिष्ठ घना कर भारत!

इन्द्र रहें हवि से बलवान स्वपौरुष की रचना कर भारत!

रचनाकार - डॉ आशुतोष…

Continue

Posted on September 5, 2013 at 2:00pm — 17 Comments

रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है

क्षुद्र बुद्धि और है पराक्रम भी क्षुद्र आज ज्ञान से मनुष्य ने बना ली बड़ी दूरी है
मायावी प्रपंच से प्रभावित हैं जन सभी कलि पाश दृढ हुआ यही मजबूरी है
शाश्वत परम्पराएं त्यागने लगे तभी तो धनवान हुए किन्तु साधना अधूरी है
खप्पर भवानी कालिका का रिक्त हो रहा है शत्रु शीश काट रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
सर्वथा मौलिक अप्रकाशित

Posted on June 13, 2013 at 9:30am — 10 Comments

Comment Wall (3 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 8:13pm on August 12, 2013, D P Mathur said…

आदरणीय डॉ आशुतोष वाजपेयी जी सादर नमस्कार, आपको दोनो उपयोगी पुस्तकों के लेखन हेतू बहुत बहुत शुभ कामनाएं , दरअसल ज्योतिष मेरा पसंदीदा सब्जैक्ट है परन्तु मुझे इस अवधि में सिकन्दराबाद रहना पड़ेगा इस कारण से आने की क्षमा चाहते हुए आपको पुनः बधाई प्रेषित है।

At 8:45am on July 19, 2013, केवल प्रसाद 'सत्यम' said…

आ0 आशुतोष भाई जी, सादर प्रणाम!  

                                     आपको विशद हर्ष के साथ अवगत कराना चाहूंगा कि दिनांक 03.08.2013 को ओ0बी0ओ0 संस्था की सम्माननीय कार्यकारी सदस्या डा0 प्राची सिहं जी का लखनऊ में शुभागमन हो रहा हैं। आपका उद्देश्य केवल ओ0बी0ओ0, लखनऊ चैप्टर के समस्त सदस्यों से व्यक्तिगत परिचय करना मात्र ही है। अतः लखनऊ चैप्टर द्वारा उनके आदर सम्मान में एक ’’विचार गोष्ठी‘‘ का आयोजन समय सायं 4.00 से 5.30 तक फ्लैट सं0 37 रोहतास इनक्लेब, रवीन्द्र पल्ली रोड अतिनिकट नीलगिरी चौराहा, फैजाबाद रोड स्थित आदरणीया कुन्ती मुखर्जी के आवास पर आयोजित की गई है। जिसमें आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है। शुभकामनाओं सहित हार्दिक आभार। सादर,


संपर्क सूत्र-बृजेश कुमार नीरज....9838878270
केवल प्रसाद............9415541353

At 7:00pm on June 5, 2013, लक्ष्मण रामानुज लडीवाला said…

आदरणीय अशुतोश वाजपेयी जी, आपकी मित्रता स्वीकारते

हुए बेहद ख़ुशी अनुभव कर रहा हूँ |आप माँ शारदे के अनन्य

साधक है यह मै फेस बुक पर आपकी रचनाओं से जान चूका

हूँ | आपके सानिध्य में काव्य में सीख कर योगदान दे सका 

तो मेरा अहोभाग्य होगा | आशा है मित्रता से समाज असुर राष्ट्र

को  आपसी  सहयोग से कुछ दे पाएंगे | सादर -

आदि कवि स्वयं ईश है, आशुतोष है नाम

कवि दूजा योगी बना, करते शीश प्रणाम | 

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service