For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विवेक ठाकुर "मन"
Share on Facebook MySpace
 

विवेक ठाकुर "मन"'s Page

Latest Activity

मनोज अहसास commented on विवेक ठाकुर "मन"'s blog post एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ
"बेशकीमती जानकारी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब"
Jan 22, 2020
Samar kabeer commented on विवेक ठाकुर "मन"'s blog post एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ
" //मत ले मैं आपने मंजर और खंजर इस्तेमाल कर लिया है इसलिए यह ग़ज़ल जर अंत वाले काफिये की कैद में आ गई है जिसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करना पड़ेगा अर्थात ऐसे ही कवाफी लेने पड़ेगे जिनके अंत मे जर हो// मनोज जी,ऐसा नहीं है, क़वाफ़ी अर के हैं,मतले में…"
Jan 21, 2020
Samar kabeer commented on विवेक ठाकुर "मन"'s blog post एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ
"जनाब विवेक ठाकुर 'मन' जी आदाब,पहली बार ओबीओ पर आपकी रचना पढ़ रहा हूँ,आपका स्वागत है । ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है लेकिन बह्र,शिल्प,व्याकरण की दृष्टि से अभी ये बहुत समय चाहती है, ओबीओ पर मौजूद 'ग़ज़ल की कक्षा' का लाभ लें,अध्यन…"
Jan 21, 2020
मनोज अहसास commented on विवेक ठाकुर "मन"'s blog post एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ
"प्रिय मित्र इस ग़ज़ल की बहर क्या है यह स्पष्ट करें ग़ज़ल की बहर गजल के ऊपर लिख दिया करें इससे गजल को समझने में आसानी रहती है मत ले मैं आपने मंजर और खंजर इस्तेमाल कर लिया है इसलिए यह ग़ज़ल जर अंत वाले काफिये की कैद में आ गई है जिसका पूरी ग़ज़ल में…"
Jan 21, 2020
विवेक ठाकुर "मन" commented on विवेक ठाकुर "मन"'s blog post एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय"
Jan 18, 2020
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on विवेक ठाकुर "मन"'s blog post एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ
"आ. भाई विवेक जी, अच्छी गजल हुई है, हार्दिक बधाई ।"
Jan 17, 2020
विवेक ठाकुर "मन" posted a blog post

एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ

रब ना करे मैं ऐसा मंज़र देखूँदोस्त के हाथ में खंज़र देखूँसबकी ख़ुशी सलामत रख मौलाना ही टूटता किसी का घर देखूँगम दे तो हिम्मत भी बक्श ख़ुदाआँखों में किसी की ना डर देखूँख़्वाब पूरे होते नहीं देखने भर सेखुद को भी तो आज़माकर देखूँये हवा भी हारेगी मिरे यकीं सेउम्मीद-ए-चिराग़ जला कर देखूँठान ही ली जब चलने की 'विवेक'फिर क्यूँ मुश्किल-ए-सफ़र देखूँ#मौलिक व अप्रकाशित#See More
Jan 15, 2020
विवेक ठाकुर "मन" is now a member of Open Books Online
Jan 14, 2020

Profile Information

Gender
Male
City State
शिमला हिमाचल प्रदेश
Native Place
शिमला
Profession
Self employed
About me
Love to read and write ghazals

विवेक ठाकुर "मन"'s Blog

एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ

रब ना करे मैं ऐसा मंज़र देखूँ
दोस्त के हाथ में खंज़र देखूँ

सबकी ख़ुशी सलामत रख मौला
ना ही टूटता किसी का घर देखूँ

गम दे तो हिम्मत भी बक्श ख़ुदा
आँखों में किसी की ना डर देखूँ

ख़्वाब पूरे होते नहीं देखने भर से
खुद को भी तो आज़माकर देखूँ

ये हवा भी हारेगी मिरे यकीं से
उम्मीद-ए-चिराग़ जला कर देखूँ

ठान ही ली जब चलने की 'विवेक'
फिर क्यूँ मुश्किल-ए-सफ़र देखूँ
#मौलिक व अप्रकाशित#

Posted on January 15, 2020 at 5:19pm — 6 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service