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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम  -  सार छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

16 अगस्त’ 25 दिन शनिवार से

17 अगस्त 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

सार छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

***************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 16 अगस्त’ 25 दिन शनिवार से 17 अगस्त 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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Replies to This Discussion

भारती का लाड़ला है वो

भारत रखवाला है !

उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा, 

उड़ता ध्वज तिरंगा 

वीर जवानों के दिल बसता

चोटी  फहराता है

भारत माँ की आन-बान है

सबको याद दिलाता 

स्वतंत्रता की जननी है यह

वीरों का आभूषण 

वीर सपूतों का है आग्रह 

कि जिगरी दोस्त शासन

दिल में रहता सबके भारत 

अरि  को थर्राता  है !

कारगिल से पाक दौड़ाया 

ढाढस हमें बँधाता 

बर्फीली चोटियों तिरंगा

वीरों का जोश बढ़ाता 

हिम्मत तो उनकी थाती है

ध्वज याद  लाता है

मौलिक व अप्रकाशित 

आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है. शैल्पिक निकष पर भी आप इसे एक बार देख जायँ. और इस पटल पर भी साझा करें.  

सादर

आदरणीय चेतन भाईजी, 

प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह में बाधक हैं, 

सार छंद

+++++++++

धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।                                                                                                    किन्तु बगल में छुरी दबाकर, वार पीठ पर करता॥

हर आतंकी पाकिस्तानी. बाज कभी ना आते।                                                                                                    क्षेत्र कारगिल को हथियाने, पर्वत पर चढ़ जाते।

सजग हुई भारत की सेना,  कुछ दिन चली लड़ाई।                                                                                              जिस शुभ तिथि को विजय मिली वो, थी छब्बीस जुलाई॥

नमन शहीदों को तन मन से, और सभी वीरों को।                                                                                                पर्वतीय क्षेत्रों में लड़ते, ऐसे रणधीरों को॥

शेर दिलों का साहस देखो, तुंग गिरि पे चढ़े हैं।                                                                                                    पवन चीर लहराते झंडे, नभ के बीच खड़े हैं॥

जहाँ शान से लहराता है, ध्वजा तिरंगा प्यारा।                                                                                                    याद करो उन वीरों को जिसने, चोटी पर फहराया॥

कारगिल से कन्याकुमारी, भारत एक रहेगा।                                                                                                      बड़ी शक्तियों के आगे भी, देश कभी न झुकेगा॥

 

+++++++++++++

मौलिक अप्रकाशित

आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण भाईजी,

इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| 

आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें. 

एक बात,

जहाँ शान से लहराता है, ध्वजा तिरंगा प्यारा।

याद करो उन वीरों को जिसने, चोटी पर फहराया॥ 

इस बंद की तुकान्तता नेष्ट है.

आदरणीय, देवनागरी लिपि के अनुसार स्वर की मात्राएँ व्यंजन वर्णों का अन्योन्याश्रय भाग हो जाती हैं. जबकि ऐसा उर्दू लिपि में नहीं होता, जहाँ स्वर की मात्राएँ भी वर्ण ही हुआ करती हैं. इसी कारण, उर्दू भाषा में लिपि के कारण स्वर की मात्राओं की तुकान्तता भी मान्य होती है. जबकि हिंदी भाषा में देवनागरी लिपि के कारण मान्य नहीं है. 

शुभातिशुभ

आदरणीय सौरभ भाईजी,

समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी ही नहीं , बस मात्रा गिनकर आगे बढ़ गया। जबकि न्यारा या सारा से इसे संशोधित कर सकता था। 

जहाँ शान से लहराता है, ध्वजा तिरंगा प्यारा।

याद करो उन वीरों को जिसने, यह कर्म किया न्यारा॥ 

हार्दिक धन्यवाद , आभार सार्थक टिप्पणी  और सुझाव के लिए।

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