For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महिला-अत्याचार ....

महिला-अत्याचार केवल मारपीट तक सीमित नहीं है, इसके और भी कितने मानसिक प्रकार हैं, जो सामान्य दृष्टि में दिखते नहीं हैं, जो महिलाएँ चुपचाप सहती रही हैं।

क्या  महिला-अत्याचार सचमुच कम हो रहे हैं क्या। मैं जानता हूँ किस्से .. दिल्ली के, मुंबई के... जहाँ कई घरों में पति अपने मित्रों के साथ शाम को/रात को कार्ड खेलते हैं, शराब पीते हैं, और रात को देर से घर आते हैं.. पत्नियाँ घर में अकेली   .... फिर भी खाना बना रखती हैं ... और पति आकर बस इतना कह देते हैं, "मुझे भूख नहीं है"... मारपीट के लिए तो पुलिस के पास शायद कोई महिला चली भी जाए, परन्तु इन मानसिक अत्याचारों का क्या?

शहरों से भी अधिक महिला-अत्याचार गाँवों में है, जहाँ महिलाएँ अशिक्षित होने के कारण और भी पति पर निर्भर हैं। पति कुछ भी करें वह अपना हक समझते हैं... कच्चा दारू पी कर बेहोशी में घर की महिलाओं को और अपने बच्चों को मारना भी जैसे उनका हक है।  कई असली किस्से हैं। एक परिवार में दुखी महिला और बच्चों की सुविधा के लिए शराबी पति को पुलिस से धमकी दिलानी भी आसान नहीं थी... क्यूँकि पुलिस-थाने जाने पर देखा कि पुलिस वाले स्वयं मानो अर्ध-बेहोश, खटिया पर आराम कर रहे थे, और उस परिवार के वहाँ साथ चलने से इनकार कर रहे थे। पुलिस से धमकी दिलवाने का कार्य़ करने के लिए भी किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की सिफ़ारिश की ज़रूरत पड़ी। और तो क्या, महिला के पिता भी बेटी और उसके बच्चों को अपने घर रखने के लिए तैयार नहीं थे, और वह लौट आई उसी निर्दयी पति की पास।

वह अब उसी पति की सेवा करना अपना धर्म समझती है... कैसा धर्म?

समाज-सुधार के लिए एक विषय तो नहीं ...हर मोड़ पर और विषय चिंतन के लिए, सुधार के लिए प्यासे हैं। कौन करेगा सुधार ? आप, मैं, ... हम ही तो समाज हैं। मन की बात है, संकल्प की बात है... करने की बात है.. दूरी की नहीं... मैं यहाँ यू.एस.ए. से भी प्रयास कर सकता हूँ, और भारत से भी। हमें सरकार की प्रतीक्षा नहीं करनी, किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करनी। बस सुधार के लिए, किसी की सहायता के लिए, अपने खून के उबलने की प्रतीक्षा करनी है।

सरकार कोई भी हो क्या कर सकती है, कितना कर सकती है? समाज को स्वयं बदलना होगा, हर मानव को स्वंय बदलना होगा, पड़ोसी का सहारा बनना होगा।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 2547

Replies to This Discussion

आपने चिंतन मनन के लिए गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दे को विचारार्थ प्रस्तुत किया है श्री विजय निकोरे जी|  महिला अत्याचार जो

दिखाई देते है उससे कई ज्यादा वे है जो चर्चा में नहीं होते और कई तो केवल महिलाए ही महसूस करती है |अगर सुबह चाय नास्ता

बनाने में ज़रा सी देर हो गई और पति गुस्से में घर से चला गया तो महिला को कितना दुख होता है यह केवल वह महिला ही जानती

है |उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरन काम करने सेमहिला को हु मानसिक पीड़ा का तो वह जिक्र तक नहीं कर सकती | ऐसे और बहुत

से अद्रश्य मामले है, जो महिला का कष्ट देते है | 

शिक्षा का प्रसार, सही शिक्षा, घरेलु और गाँव गाँव में अनपढ़ महिलाओं में साक्षरता, जागरूकता जैसे उपाय ही मानसिकता में बदलाव

के लिए कारगर उपाय है | जितनी जल्दी हो सके नशे पर रोक लगे, महिला अत्याचारों से सम्बन्धी मामलों में फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट में

त्वरितन्याय हो और अपराधी को उचित सजा मिले ये भी सरकार और समाज के स्तर पर अन्य कदम है | चिंतन के इस प्रकार के

विचार गाँव की चोपाल तक जावे और प्रचार प्रसार हो | विचार प्रस्तुत करने का अवसर देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 

   सादर प्रणाम आदरणीय।

  आपने बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाला है।

इस सन्दर्भ में सबसे पहली बात तो मेरे दिमाग़ में आती है कि समस्या का उद्गम मन से है और प्रपिड़ित भी मन ही होता है,इसलिए इसका समाधान सिर्फ और सिर्फ मन में है किसी कानून या बाध्यता से समाधान शायद सम्भव नहीं।

दूसरी बात इस समस्या का  उत्तम उपाय है,महिलाएं स्वयं जागरूक हों,अपने अस्तित्व और क्षमताओं को समझें। मैं भारतीय महिलाओं के समर्पण और त्याग को बारम्बार नमन करती हूँ,लेकिन देखना होगा कि कहीं हमारा समर्पण हमारे परिवार को,समाज को और हमें खुद उन्नति से तो नहीं रोक रहा है,या कोई नकारात्मक स्थितियां तो नहीं उत्पन्न कर रहा है(जैसे बच्चों के भविष्य को खतरा,आपातकालीन स्थितियों के लिए सुदृढ़ न रह पाना..आदि) या फिर हमारे 'स्व' को तो नहीं कुचल रहा।

आपने बिलकुल सही कहा आदरणीय हम सबको हृदय से इस समस्या की निजात के लिए प्रयत्न करना होगा,आज ही से अभी से। हर व्यक्ति विशेष को समाज का प्राणी होने के नाते समाज की समस्याओं पर नजर रखना ही नही बल्कि निदान के प्रयास करना नैतिक दायित्व बनता है। हममे से हर कोई जब अपना दायित्व निष्ठा से समझेगा वास्तव तभी समाज की दुर्स्थितियों से कुछ उबरा जा  सकता है।

आपके सुविचारों और प्रयासों शत-शत नमन है आदरणीय। काश,हममे से 10%लोग भी आप जैसे हो पाते!

शुभ शुभ सादर

आदरणीय निकोर जी

आपका लेख ज्वलंत प्रश्न उठता है i पर इस युग में भी ऐसी महिलाये कम नहीं जो माला  जपती  हैं - भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है

     यह मानसिकता भी महिलाओ को बदलनी होगी i

आदरणीय विजय निकोर जी अत्याचार किसी का किसी पर भी हो , अस्वीकार ही होना चाहिए। सिर्फ पुरुष का महिला पर ही क्यों , महिला का पुरुष पर भी क्यों नहीं। परिवार ही क्यों समाज में किसी का भी किसी पर अत्याचार क्यों स्वीकार हो। प्रश्न सिर्फ किसी एक पक्ष का दूसरे पर अत्याचार करने का नहीं है, वरन सामाजिक व्यवस्था का है। हम अपने सामाजिक आदर्श, मूल्य , मान्यताएं सब भूलते और तजते जा रहें हैं। बड़ों का आदर , छोटों से स्नेह, हरेक के प्रति एक अनुराग और सौहार्द का व्यवहार सबकुछ विलुप्त , शून्य होता जा रहा है , मतलब निकालना और उल्लू सीधा करना ही संस्कृति रह गयी है। इसका मूल कारण केवल यह है कि हमने विगत एक अर्ध-शताब्दी में आधारहीन सांस्कृतिक परिवर्तन किये हैं , अपनी संस्कृति की मूल भावनाओं और अनिवार्यताओं को बिना किसी गंभीर सोच के विदेशी सोच और फैशन से एक अंधी दौड़ में विस्थापित किया है। हम अपने ही सांस्कृतिक आदर्शों और मूल्यों की बात कभी-कभी तो सिर्फ इसलिए नहीं करते क़ि कहीं किसी दूसरे की भावनाओं को बुरा न लग जाए , कहीं-कहीं तो हम संवेदनशीलता के नाम पर कितनों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं और देश और समिष्टि के प्रति अनजाने में क्षतिपूर्ण कार्य कर जाते हैं। यह तो रही हालात की बात। दूसरी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि सामाजिक समस्याओं का समाधान कौन करेगा , राजनीतिज्ञ ?
हमारी सोच आज़ादी के बाद एक भ्रामक दिशा की और मुड़ गयी और हमें पता भी नहीं चला , हम हर बात के लिए सरकार- मुखी हो गए , विदेशी शासन , औपनिवेशिक साम्राज्यवादी शासन का यह जबरदस्त प्रभाव हम आजतक ओढ़े हुए हैं और उससे आजतक मुक्त नहीं हैं , हमने अपनी सम्पूर्ण सामाजिकता सरकार के आधीन कर दी जबकि होना यह चाहिए था कि सरकार समाज के आधीन हो। समाज , लोग, people सर्वोपरि होते हैं , न अर्थ सर्वोपरि होता है , न राज। राज का काम अवैध को रोकना है , वैध को हांकना नहीं हैं , जब राज वैध को ही चलाने में अपनी सारी शक्ति लगा देगा तो अवैध को रोकने का काम कब करेगा।
समाज को एक जिम्मेदार समाज की आवश्यकता होती है , उसे तो हमने बनने ही नहीं दिया , परिणामतः हम हर सामाजिक बात के लिए सरकार-मुखी बने हुए हैं , जबकि ऐसा तो ब्रिटिश शासन में भी नहीं था। सरकार की अपनी विवशताएँ होती हैं , समय का सीमा और अनेक बाधताएं होती हैं ,समाज चलाने का काम उस पर
नहीं छोड़ा जाना चाहिए। यह जिम्मेदारी तो समाज को खुद ही उठानी चाहिए । समाज चलता है अपनी मान्यताओं से, संस्कृति से , संस्कारों से,परम्पराओं से , आदर्शों से , न कि राजनैतिक और कूटनीतिक विचारों से। आज यदि हमसे कोई पूछे कि हमारे सामाजिक जीवन का आदर्श क्या है , तो हम एक वाक्य में क्या जवाब दें ? यह प्रश्न बिलकुल वैसे ही है जैसे कोई पूछे कि हमारे राजनैतिक जीवन का आदर्श क्या है और हम एक स्वर में कहें - जनतंत्र। ऐसा ही कोई ब्रम्ह - वाक्य सामाजिक जीवन का भी होना चाहिए , है। विचार करें , सबको बताएं। संभवतः बहुत सी सामाजिक समस्याएं उठेंगीं ही नहीं।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
26 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service