For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत भावाभिव्यक्ति के सबसे सक्षम और सशक्त माध्यम रहे हैं । भक्तिकाल में  गीत सूर ,तुलसी मीरा विद्यापति आदि भक्त और अष्टछाप कवियों के माध्यम से मुखरित हुआ । रीतिकाल में कामिनी का हृदयोल्लास बन कर बिखरा ।छायावाद काव्य विमर्श के कई अंगो का दृष्टा बना जिसमे भाव प्रवणता , अभिव्यंजना,संगीतात्मकता, आदि लक्षण प्रमुख थे । प्रयोगवाद ने गीतों को एक नयी दिशा दी परन्तु एक टकराव गीत और नए प्रयोगवाद में तब पैदा हुआ जब आधुनिक बोध और अभिव्यक्ति के लिहाज से गीत की विषय वस्तु को अनुपयुक्त घोषित कर दिया गया  । इस विधागत टकराव के कारण  नवगीत  का जन्म हुआ 


नवगीत शब्द  का सर्वप्रथम उल्लेख 1958 में  प्रकाशित राजेंद्र प्रसाद सिंह की गीतांगिनी नामक काव्य संग्रह  हुआ । राजेंद्र सिंह जी ने नवगीत के लिए 5 तत्वों की प्रतिष्ठापना  की 
(1) जीवन दर्शन 
(2) आत्मनिष्ठ 
(3) व्यक्तिबोध
(4) प्रीती तत्व  
(5) परिसंचय 
प्रबुद्ध साहित्यकार और जानेमाने नवगीतकार कैलाश गौतम जी के अनुसार 
 
"नवीन विचारों  के, नवीन आयामों तथा नवीन भाव सारणियों  को अभिव्यक्त करने वाले गीत जब भी और जिस युग में लिखे जायेंगे नवगीत कहलायेंगे "
 
डॉ. जाने माने साहित्य मनीषी राजेन्द्र गौतम जी  के अनुसार,
’’वस्तुतः यांत्रिकता एवं नगर-बोध ने ही नवगीतकार को उन अनुभवों के साथ जुडने को प्रेरित किया है, जनकी संजीवनी शक्ति अक्षय है। नवगीत में उस समाज निरपेक्ष ललित-सौंदर्य का चित्रण नहीं है, जिसकी सीमा कवि की आत्ममुग्धता तक जाकर समाप्त हो जाती है, वरन् नवगीतकार उस सौंदर्य का स्रष्टा है, जिसका साक्षात्कार उसने स्वयं जीवन की उन्मुक्तता में किया और उसका वह अनुभव सामाजिक प्रासंगिकता में जीवन्त सुरुचिपूर्ण एवं संवेदनात्मक है।‘
 
स्पष्ट है नवगीत की नव्यता काल और अभिव्यक्ति की सीमा से परे है । वास्तव में नव शब्द  से ही  नव्यता के कभी न ख़त्म होने का बोध हो जाता है । नए बिम्ब ,नए प्रतीक, नए संकेत, भाषा के नए प्रयोग, नयी विषय वस्तु, मिथकीय प्रयोगों के नए आयामों की तलाश और इन सब से ऊपर  लयात्मकता  की अनिवार्यता ने नवगीत के प्रति लोगों को आकृष्ट किया । सहज सरल वर्तालाप और जनमानस की भाषा, सामायिक विषय और परिस्थितियों के समुच्चय बोधक तत्व ने नवगीत के रूप में  काव्य जगत में एक ताज़ी बयार बहा दी ।
 
समकालीन अनुभूतियों को अभिव्यंजित करने के लिए नवगीत एक सशक्त विधा है इसके प्रमाण स्वरुप कुमार रविन्द्र जी के एक गीत को प्रस्तुत करूंगी 
 
वही राजा /वही परजा 
वही दूरी 
वही
ऊंचे महल 
सपनों के झरोखे 
राजपथ पर 
वही फिसलन 
वही धोखे 
वही दरबारी तरीके---जी-हुजूरी 
 
 सुगठित भाव और  भाषा ,शिल्प और लय के माध्यम से प्रीत के दैनंदन पलों के निहायत ही मामूली दिखने वाले प्यारे अनुभवों को  और प्रेम  की बारीक इबारत को नचिकेता जी के गीत में देखिये--------
 
भात रांधते वक्त 
अधर जब-जब मुस्काएं  हैं 
गहरे आसंगों ने अपने 
पर फैलाए हैं 
सर्द पूस के नर्म 
घाम की उष्ण दुपहरी तुम 
 
मेरे जीवन के 
आँगन में धुप सुनहरी तुम 
 
जनमानस के शब्दों को उन्ही की भाषा में ज्यों का त्यों रख देने की वार्तालाप युक्त शैली नवगीत  की ऐसी विशेषता थी जिसने तेज़ी से आम लोगों के बीच इसकी पैंठ  बनाने में मदद की महेश अनघ जी की एक रचना देखिये 
 

बँटवारा कर दो ठाकुर। 
तन मालिक का धन सरकारी 
मेरे हिस्से परमेसुर।

शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ 
सड़कें दे दो 
झंडों को 
पर्वत कूटनीति को अर्पित 
तीरथ दे दो 
पंडों को। 
खीर खांड ख़ैराती खाते 
हमको गौमाता के खुर

सब छुट्टी के दिन साहब के 
सब उपास 
चपरासी के 
उसमें पदक कुँअर जू के हैं 
खून पसीने 
घासी के 
अजर अमर श्रीमान उठा लें 
हमको छोड़े क्षण भंगुर

समकालीन समाज में व्याप्त बहुमुखी विडम्बनाओं, विरूपता 

के विरुद्ध स्वर उठाता मधुकर अष्ठाना जी कागीत ...
 
हर चेहरा चुगली करता है 
छिपे इरादों की 
भीतर के मरुथल 
बाहर के 
सावन भादों की 
 
इसी अंदाज़ का एक गीत रोहित रूसिया जी का ....
 
बाहर आलीशान 
भीतर से बहुत टूटे हुए घर 
 
बड़ी बेचैन होकर 
घूमतीं हैं अब हवाएं 
कोई सुनता नहीं है 
अब किसी की भी सदायें 
 
लिए ऊंची उड़ानों की उम्मीदें 
कतरे हुए पर 
 
जटिल से जटिल अनुभूतियों को नवगीत ने अपने अभ्यंतर में समेट अत्यंत सहज रूप से व्यक्त किया है श्याम सुन्दर श्रीवास्तव जी के इस गीत में समूची सृष्टि से जुड़ने का जो सगा भाव दिखता है वो समाज में अलख जगाने का भी काम करते हैं 
कुत्ता-बिल्ली 
पूरा-पड़ोसी सबकी प्यारी 
रामरती 
थकी देह भी 
खिलखिल करती 
सबसे मिलती 
रामरती 
अपनी बात का समापन बस इन शब्दों के साथ करूंगी कि ---
" नव गीत  परिस्थितियों के सन्दर्भ में भावनाओं और संवेदनाओं को चेतना और  चिंतन के धरातल पर उर्जस्विता के साथ शब्दों में बुनते हुए ,गुनगुनाते हुए चलते हैं, जनमानस को साथ लेकर उनसे संवाद करते हुए अपनी बात कहते  हैं , नए बिम्ब और प्रतीकों के माध्यम से सदैव  रोचक और उर्जावान रहते हैं । "
 
नवगीत से मेरा परिचय सर्वप्रथम पूर्णिमा वर्मन जी ने करवाया था ।पूर्णिमा जी,  अंतर्जाल पर नवगीत के प्रचार  के लिए बहुत सकारात्मक कार्य कर रहीं हैं अंतर्जाल पर प्रकाशित उनकी पत्रिका "अनुभूति" में नवगीत के शिखर रचनाकारों के गीत मौजूद हैं |
 
मेरा नवगीत विधा से परिचय अभी कुछ दिनों पहले ही हुआ है । जितना समझ सकी आप सब के साथ साझा किया  नवगीत के कई संग्रह जो इस विधा के महारथियों के  हैं अभी मेरे पास नहीं हैं । जो भी संकलन मेरे पास उपलब्ध थे उन्ही के माध्यम से अपनी बात कहने की कोशिश की है ।

Views: 3671

Replies to This Discussion

हमारे ओबओ मंच पर ही रोहित  रूसिया जी मौजूद हैं जो बहुत पहले से ही इस विधा से जुड़े हुए हैं एक अच्छे चित्रकार हैं ।  नवगीतों को रेखाओं के माध्यम से भी व्यक्त करते रहे हैं उनसे अनुरोध है नवगीत के विषय में और जानकारी दे और गीतों के साथ जो उनके चित्र  हैं वो भी हम सब के साथ शेयर करें ।

इस विधा के आदरणीय रोहितरुसिया जी जैसे जानकार की इस मंच पर उपस्थिति है यह जान कर अतीव प्रसन्नता तो हुई लेकिन आश्चर्य भी हुआ कि यह मंच आजतक आपकी उपस्थिति से लाभान्वित नहीं हो पाया. आपकी प्रविष्टियाँ रचनाकर्मियों के लिए उत्प्रेरक का कार्य करतीं. विश्वास है कि आपकी रचनाओं और मार्गदर्शन से यह मंच लाभान्वित होगा.

नवगीत पर एक तथ्यपरक जानकारी तथा सटीक संवाद की कमी आज जाकर पूरी हुई है, सीमाजी. इस विन्दु पर आपके सकारात्मक प्रयास हेतु आपको मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ. यह सही है कि नवगीत की संज्ञा ने जिस तरह से आजके रचनाकारों को आकर्षित ही नहीं, आंदोलित भी किया है, वह मानवीय असंतोष किन्तु अन्वेषणा का अत्युत्तम पहलू है. मानव का मनस नवीनता का हामी है. जब नव गति नव लय ताल छंद नव... उकेरा गया तो यही कारण है कि उक्त गीत जनमानस के मस्तिष्क ही नहीं उर-गह्वर में भी एकदम से व्याप गया.

आपके लेख से निम्नलिखित पंक्तियों को उद्धृत करना चाहूँगा जो नवगीत की पारिभाषिकता को निरुपित कते हैं.

नवगीत की नव्यता काल और अभिव्यक्ति की सीमा से परे है । वास्तव में नव शब्द  से ही  नव्यता के कभी न ख़त्म होने का बोध हो जाता है । नए बिम्ब ,नए प्रतीक, नए संकेत, भाषा के नए प्रयोग, नयी विषय वस्तु, मिथकीय प्रयोगों के नए आयामों की तलाश और इन सब से ऊपर  लयात्मकता  की अनिवार्यता ने नवगीत के प्रति लोगों को आकृष्ट किया । सहज सरल वर्तालाप और जनमानस की भाषा, सामायिक विषय और परिस्थितियों के समुच्चय बोधक तत्व ने नवगीत के रूप में  काव्य जगत में एक ताज़ी बयार बहा दी

उपरोक्त संदेश उस ज्योतिपुँज सदृश है जिसके आलोक में इस मंच पर रचनाकार इस विधा में अभ्यासरत होंगे.

आपके इस योगदान के लिए यह मंच आभारी है. सबसे अव्वल, आपने नवगीत पर लिखने के मेरे निवेदन को मान दिया, इस हेतु मैं आपका हार्दिक रूप से आभारी हूँ.

सादर

सौरभ जी आपकी प्रेरणा से ही मैं यह लेख तैयार कर सकी हूँ | नव गीत के के प्रति मेरा रुझान हुआ है यह निश्चित है पर पारंपरिक गीत विधा को अभी भी मैं उससे कम नहीं परखती | नवगीत गीतकारों को जहां पारंपरिक गीत के कई बन्धनों से मुक्त हो सृजन की छूट देता है और उन्मुक्त रचना कर्म के लिए प्रेरित करता है वहीं गेयता को शर्त  के रूप में रख कर कहीं न कहीं माधुर्य को भी संजो कर रखता है | विषय वस्तु का भी विस्तार मिलता है | साहित्यिक शब्द संसार के अतिरिक्त आंचलिक शब्द ,नए शब्दों  का सृजन भी अभिव्यक्ति को सहज बनाते हैं | नचिकेता जी  के एक गीत का मुखड़ा  देखिये 

विलगाओ मत मुझे

प्यार से 

हे मेरी तुम ...ये शायद मिथकीय प्रयोंगों की कारा से स्वतंत्र होने का एक सुखद अहसास है 

सीमा जी
मैं भी नवगीत के प्रति पूर्णिमा वर्मन जी द्वारा उकसाने { :) } पर आकृष्ट हुआ था और नवगीत की पाठशाला के लिए कुछ एक नवगीत लिखे थे फिर ओ बी ओ पर भी एक नवगीत पोस्ट किया है और एक दो नवगीत और लिखा है मगर अभी मैं उससे संतुष्ट नहीं हो सका हूँ
ग़ज़ल के बाद मुझे इस विधा ने ही प्रभावित किया है

आपने नवगीत पर जैसा तथ्य परक लेख प्रस्तुत किया है वैसा तो आज तक नवगीत की पाठशाला में भी प्रस्तुत नहीं किया जा सका है
मुझे इस लेख की सख्त जरूरत थी इसके महती कार्य के लिए विशेष बधाई स्वीकार करें

निवेदन है कि इस महती कार्य को आगे भी जारी रखें 
मुझे नवगीत के शिल्प की बहुत कम समझ है इसलिए इस क्रम में अगली पोस्ट नवगीत के शिल्प विधान पर केंद्रित हो कर आए तो मजा आ जाये

पूर्णिमा  जी जिस आस्था  और समर्पण के साथ हिंदी भाषा और नवगीत के प्रचार और प्रसार के लिए कार्य कर रहीं हैं वो प्रशंसनीय है वीनस  जी नवगीत की पाठशाला से मैं अभी ही जुडी  हूँ शायद आप प्रारंभ के दिनों में इस कार्यशाला से जुड़े होंगे इस समय तो वहाँ कई लेख मौजूद  हैं आप देख सकते हैं :) इस लेख को तैयार करने के लिए भी मैंने उन्हें पढ़ा है   | नव गीत तो शिल्प प्रधान नहीं है गीत में  गेयता का  तत्व ही अनिवार्य है | छंद संबंधी कोई विशेष आग्रह नहीं है ,तुकांत शब्दों का कोई विशेष बंधन नहीं है , झ के साथ ज का तुक चलेगा श के साथ ष मान्य है :)

आपका गीत देखा ......पारंपरिक गीत विधा में यह तुक बिलकुल भी स्वीकृत नहीं होता जिसका प्रयोग आपने किया है   (हर जगह व्यापार तारी)


पिट चुके हैं,

बिक रहे हैं

बहुत खूब गीत है आपका पर यदि अंतरे को थोडा छोटा रखा जाये तो .........ये मेरा अपना मत है बिलकुल व्यक्तिगत विचार नव गीत के शिल्प को अभी मुझे भी समझना है 

लेख की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद 

//झ के साथ ज का तुक चलेगा//

ऐसा करने से नव-गीतकार ही नहीं,  नव-नव-नव गीतकार भी बचें तो श्रेयस्कर. ..  :-)))

अब मात्रिकता और शब्द-निर्वहन संबन्धी एक छोटे पोस्ट की आवश्यक बन रही है जो किसी गेय कविता की जान होती है. समय दें.

सादर

 तुक के सन्दर्भ में कही गयी आपकी बात से मैं भी सहमत हूँ ........मैं सिर्फ उन बिन्दुओं को इंगित कर रही थी जिन्होंने नवगीत लेखन को सरल और सहज बनाने में सहायता की 

आप जैसा कहिये.......मैं पूर्ण सहयोग के लिए हाज़िर हूँ 

सीमाजी, हमने अपने उपरोक्त कहे में अपने लिए टास्क लिया है ...   :-)))

आप इसे निभायें तो अति उत्तम !!!

सौरभ  जी गुरु जनो का काम गुरुजनों को ही शोभता है .........हम तो पीछे पीछे चल रहे हैं जब आप सर घुमा कर किसी कार्य की तरफ इशारा करेंगे हाज़िर हो जायेंगे 

एक आदरणीय सीमा जी आपका आलेख सुरूचिपूर्ण है एवं इसपर चल रहे विमर्श को पढ़ कर बड़ा आनन्‍द आया  । पूर्णिमा दी का कार्य इस विधा पर अनुपम है अपने समूह में वे इसपर काफी अच्‍छी चर्चा भी करती हैं साथ ही राजेन्‍द्र गौतम जी जैसे नवगीतकारों के नवगीत भी साझा करती हैं, गौतम सर भी बीच-बीच में अपने नवगीत फेसबुक पर साझा करते हैं, ये ऐसे लोग हैं जो हमेशा ऊर्जावान रहते हैं एवं दूसरों को भी ऊर्जान्वित करते रहते हैं अभी कुछ दिन पूर्व ही गौतम सर ने अपना एक नवगीत साझा किया था ' इस शहर में' । इस कड़ी में इस मंच द्वारा बड़ी अच्‍छी शुरुआत की गई है जिसके लिए सभी आदरणीय गुरूजनों को मेरा नमन अर्पित है ।

आदरणीय सीमा जी 

सादर अभिवादन 

विधा की जानकारी हेतु आभार 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
43 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service